गोरखपुर (ब्यूरो)।पुलिस, क्राइम ब्रांच, एसटीएफ उसकी तलाश में लगी थी। उसकी गिरफ्तारी के लिए 25 हजार से घोषित हुआ इनाम बढ़ाकर एक लाख रुपए कर दिया गया था। कभी उसके नेपाल में छिपे होने की बात सामने आई तो कभी बैंकॉक जाने की बात भी सामने आई। उसकी गिरफ्तारी के लिए इंटरपोल की मदद लेने की भी बात कही गई थी, लेकिन इससे पहले शुक्रवार तड़के 3.30 बजे सुल्तानपुर में एसटीएफ से विनोद की मुठभेड़ हो गई और वह इनकाउंटर के दौरान गोली लगने से मारा गया।
सरेंडर की हिम्मत नहीं जुटा सका विनोद
माफिया विनोद के इनकाउंटर से पहले गोरखपुर पुलिस उसे भले ही गिरफ्तार नहीं कर सकी, लेकिन पुलिस ने उसका साम्राज्य जरूर खत्म कर दिया था। उसपर पुलिस का बढ़ता प्रेशर देख शिकायतकर्ता खुलकर सामने आने लगे थे और लगातार विनोद पर केस दर्ज हो रहे थे। जबकि माफिया विनोद का भाई संजय उपाध्याय खुद सरेंडर कर जेल जा चुका है। पुलिस उसके कई गुर्गों को गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी थी। इस बीच विनोद ने भी कई बार सरेंडर करने की कोशिश की, लेकिन सूत्रों का कहना है कि उसे खुद के इनकाउंटर का भय सता रहा था, जिसकी वजह से वह कोर्ट में सरेंडर करने की हिम्मत नहीं जुटा सका। पिता के साथ सूद कारोबार से उतरे विनोद का यूं तो नाम गोरखपुर के पीडब्ल्यूडी कांड से चर्चा में आया, लेकिन इसके बाद उसके अपराध बढ़ते ही चले गए।
एक थप्पड़ से जरायम की दुनिया में एंट्री, सुल्तानपुर में काम तमाम
गोरखपुर पुलिस के एक लाख इनामी माफिया विनोद उपाध्याय को एसटीएफ ने मार गिराया। सात माह से ढूंढा जा रहा विनोद गोरखपुर के टॉप 10 माफिया और यूपी के टॉप 61 लिस्ट में शामिल था। गोरखपुर पुलिस, एसटीएफ के साथ गोरखपुर क्राइम ब्रांच लगातार उसकी तलाश कर रही थी। पर उसकी अपराध की दुनिया में आने की कहानी भी बड़ी रोचक है। बताया गया है कि मूलरूप से अयोध्या का रहने वाला विनोद साल 2004 में उस समय चर्चा में आया, जब उसने गोरखपुर जेल में बंद चल अपराधी जीतनारायण मिश्र को किसी बात पर थप्पड़ जड़ दिया था। साल 2005 में जीतनारायण जेल से बाहर आया तो विनोद उपाध्याय ने संत कबीरनगर में उसकी हत्या कर दी। जरायम की दुनिया में विनोद उपाध्याय की एंट्री इसी हत्याकांड से होना बताई जाती है।
पिता का सूद कारोबार संभाला
माफिया विनोद मूल रूप से अयोध्या के मया बाजार का रहने वाला था। उसके पिता करीब 20 साल पहले परिवार के साथ गोरखपुर आकर बस गए। विनोद का पूरा परिवार यहां गोरखनाथ इलाके के धर्मशाला बाजार में रहने लगा। पिता राजकुमार उपाध्याय सूद के बड़े कारोबारी थे। वह रेलवे में सूद का कारोबार करने लगे। ऐसे में विनोद समेत उसके दोनों छोटे भाई भी पिता के साथ सूद के कारोबार में उतर गए। विनोद ग्रेजुएशन के बाद धर्मशाला से ऑटो चलवाने लगा। इस दौरान उसके कई साथी जुड़े। 2001 में विनोद पर पहला मुकदमा गोरखनाथ थाने में हत्या के प्रयास, बलवा व मारपीट का दर्ज हुआ। इसके बाद विनोद गिरोह बनाकर एफसीआई का ठेका लेने लगा और सिनेमा रोड स्थित एक ब्रेकरी दुकान से खड़े होकर काम करने लगा। इस बीच उसने ठेके को लेकर यूनिवर्सिटी के एक छात्रनेता वेद प्रकाश को शास्त्री चौक स्थित होटल में घुसकर गोली मारी, लेकिन वह बच गया। इसके बाद विनोद का नाम पहली बार चर्चित हुआ।
एलएलबी कर वकील बनने की इच्छा
विनोद के मन में एलएलबी कर वकील बनने की इच्छा थी। इसलिए उसने सेंट एंड्रयूज कॉलेज में दाखिला लिया। बाकायादा उसकी कापियां यूनिवर्सिटी के गेस्ट हाउस में लिखी जाती थीं और परीक्षा हॉल में नहीं बैठता था। लेकिन फाइनल परीक्षा से पहले चारफाटक मोहद्दीपुर में अजीत शाही गैंग से हुई गोलीबारी में विनोद व इसके गुर्गे जेल चले गए। यह घटना दिनदहाड़े हुई थी। बंद क्रासिंग के दोनों गैंग के लोग ताबड़तोड़ गोली चला रहे थे। माहौल उस समय ठाकुर और ब्राम्हण के बीच का हो गया।

2002 में छात्र राजनीति से शुरुआत
विनोद ने छात्र राजनीति में एंट्री ली, लेकिन खुद चुनाव लडऩे की बजाय वो गोरखपुर यूनिवर्सिटी में अपने लोगों को चुनाव मैदान में उतारने लगा। 2002 में गोरखपुर यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ अध्यक्ष के पद पर अपने एक साथी को लड़वाया। वह चुनाव जीत गया। यहां से विनोद की पहुंच राजनीति में बड़े-बड़े लोगों से हो गई। 2004 में फिर से एक प्रत्याशी उतारा, लेकिन लिंगदोह समिति के तय नियमों की वजह से वह चुनाव नहीं लड़ सका।
नए लड़कों की बना ली गैंग
यूनिवर्सिटी से करीब 10 साल जुड़े रहने के कारण विनोद ने छात्रों की एक बड़ी गैंग बना ली। यह वह वक्त था, जब गोरखपुर में जातीय आधार पर गैंग हुआ करती थी। पूर्वांचल के एक ब्राह्मण नेता रॉबिनहुड थे और विनोद उनका खास चेला।
पूर्वांचल के एक ब्राह्म्ण नेता का था हाथ
यह वह वक्त था, जब विनोद का नाम अपराध जगत में नहीं दर्ज था। लेकिन यह सब देखकर अपराध करने की हिम्मत आ गई। श्रीप्रकाश शुक्ला के एनकाउंटर के बाद विनोद उपाध्याय, सत्यव्रत राय का खास हो गया। ये सत्यव्रत राय कभी श्रीप्रकाश को सलाह देने वाले बताया जाता था। दोनों साथ हुए तो अपराध में नाम आने लगा, 1999 में एक के बाद एक दो मुकदमा गोरखनाथ थाने में दर्ज हो गया। पहला धमकी से और दूसरा दलित के साथ मारपीट का मुकदमा दर्ज हुआ। कुछ सालों बाद पैसे के लेनदेन को लेकर सत्यव्रत से झगड़ा हो गया। यहां से दोनों दुश्मन हो गए। बाहुबली ब्राह्मण नेता का हाथ विनोद के सिर पर था, इसलिए वह अपराध के बाद भी बच जाता था।
हाथी पर भी हुए सवार
विनोद उपाध्याय ने अपनी राजनीति की शुरुआत बसपा से की। 2007 में विनोद को गोरखपुर सदर सीट से बसपा का विधायकी टिकट मिला। वह पर्चा दाखिल से पहले जेल चला गया। फिर बसपा ने विनोद का टिकट काटकर उसके बड़ भाई जय प्रकाश को दे दिया क्योंकि विनोद के पर्चा दाखिल में आ पाने की बात तय नहीं थी। लेकिन इसके बाद पर्चा दाखिला से पहले जय प्रकाश का टिकट काटकर फिर एक बार विनोद को प्रत्याशी बनाया। नार्मल मैदान पर बसपा नेताओं ने विनोद के समर्थन में जनसभा की थी।
गुंडई की तो बसपा ने कर दिया था बर्खास्त
कुछ दिनों बाद ही विनोद का शाहपुर थाने के कौवाबाग पुलिस चौकी के पुलिसकर्मियों से विनोद के भाइयों का विवाद हो गया। इस मामले में विनोद ने ना सिर्फ पुलिसवालों से मारपीट ही की थी बल्कि थाने पहुंचकर उनसे निपट लेने की धमकी भी दी। इस मामले में विनोद और उसके भाइयों पर केस भी दर्ज हुआ। मामला राजनैतिक रूप लेने लगा तो विनोद को बसपा से बर्खास्त कर दिया गया। इसके बाद दोबारा विनोद कभी राजनीति में एंट्री नहीं ले सका।
पीडब्ल्यूडी कांड से चर्चित हुआ माफिया
2007 तक विनोद पर 9 मुकदमे हो चुके थे। कई बार जेल जा चुका था। 2007 में सिविल लाइंस इलाके में विनोद उपाध्याय गैंग पर लाल बहादुर गैंग ने ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी। विनोद गैंग के लोगों को पिस्टल निकालने तक का वक्त न मिला। गोलियां गाडिय़ों के चीरती हुई शरीर में घुसने लगी। गोलियों की तड़तड़ाहट थमती उसके पहले ही विनोद गैंग के रिपुंजय राय और देवरिया के सत्येंद्र की सांस थम गई थी। इस मामले में केस लिखा गया अजीत शाही, संजय यादव, संजीव सिंह, इंद्रकेश पांडेय समेत 6 लोगों के खिलाफ। लाल बहादुर को आरोपी नहीं बनाया गया। इसके बाद से दोनों गुटों में दुश्मनी और बढ़ गई थी।
लालबहादुर ने धनंजय से मांगी थी रंगदारी
विनोद उपाध्याय का करीब धनंजय तिवारी लालबहादुर से खार खाए हुए था। पता चला कि तारामंडल स्थित निर्माणाधीन चिडिय़ाघर में मिट्टी भरने का ठेका धनंजय तिवारी ने लिया था। इसको लेकर लालबहादुर से उसकी कहासुनी भी हुई थी। बताते हैं कि लालबहादुर ने एक बार अकेला पाकर धनंजय को पीट दिया था। वह रिंकू से रंगदारी मांग रहा था, जिसके चलते उसने लालबाहदुर की हत्या की योजना बनाई।
विनोद ने करा दिया लाल बहादुर यादव का मर्डर
साल 2014 में पूर्व उप ज्येष्ठ ब्लाक प्रमुख लाल बहादुर यादव की हत्या हो गई। मर्डर की प्लानिंग गैंगस्टर विनोद उपाध्याय गैंग ने किया था। विनोद उपाध्याय गैंग अपने दुश्मन सुजीत चौरसिया को मारने के लिए हमले करने की तैयारी में लगा था। लेकिन, इसके कुछ दिनों बाद पुलिस ने इस मामले में विनोद समेत उसके 6 साथियों को गिरफ्तार कर जेल भी भेजा था।
हिंदू युवा वाहिनी के नेता को दौड़ाकर पीटा
रेलवे के ठेकों के अलावा विनोद पीडब्ल्यूडी का भी ठेका लेता था। एकबार ठेके को लेकर ही हिन्दू युवा वाहिनी के सुनील सिंह से विवाद हो गया। विनोद और उनके लोग दिन में दो बजे सुनील सिंह को उठा ले आए। उन्हें गोरखपुर शहर के अंदर विजय चौराहे से गणेश होटल तक पीटते हुए ले गए। सुनील छोड़ देने की विनती कर रहे थे, लेकिन पीटने वालों को तरस नहीं आया।
गोरखपुर के पार्षद की लखनऊ में कराई थी हत्या
वहीं, 7 मार्च 2007 को गोरखपुर के तिवारीपुर से सपा पार्षद अफजल फैजी की लखनऊ के हजरतगंज श्रीराम टावर्स के पास हत्या कर दी गई थी। पार्षद फैजी की हत्या में भी विनोद उपाध्याय, प्रभाकर दुबे और विश्वजीत सिंह उर्फ पपलू का नाम आया। पपलू गोरखपुर के माधोपुर से सपा पार्षद भी था। इस मामले में एक तरफ पुलिस जांच कर रही थी और दूसरी तरफ विनोद अपराध करते जा रहा था। इस दौरान विनोद की नजर विवादित जमीनों पर टिक गई। कई जमीनें अपने और अपने लोगों के नाम करवा ली। दूसरे गैंग में क्या चल रहा इसे पता करने के लिए हर गैंग में विनोद ने चालाकी के साथ अपने लोगों की एंट्री करवा दी।
माफिया विनोद पर दर्ज थे 39 मुकदमे
पुलिस रिकार्ड के मुताबिक विनोद उपाध्याय पर गोरखनाथ, शाहपुर, कैंट, कोतवाली, संतकबीरनगर के बखिरा आदि थानों में 39 मुकदमे दर्ज थे। हालांकि इनमें कुछ मुकदमों में वह बरी हो चुका था। उस पर हत्या, हत्या का प्रयास, बलवा, साजिश, मारपीट, हमला, गैंगेस्टर एक्ट, आम्र्स एक्ट के तहत मुकदमे दर्ज हुए थे।
छोटा भाई भी दबंग
विनोद के पांच भाइयों में तीन दबंग हैं। विनोद के सबसे छोटे भाई संजय उपाध्याय ने एकबार असुरन चौकी पर एक पुलिसवाले को थप्पड़ मार दिया। इस थप्पड़ के बाद पुलिस की नजर में चढ़ गए। राजनीतिक पार्टियों ने भी इसके बाद किनारा करना शुरू कर दिया।
चार करोड़ की संपत्ति जब्त
विनोद उपाध्याय के एनकाउंटर से पहले गोरखपुर पुलिस उसकी करीब 4 करोड़ रुपए की संपत्ति जब्त कर चुकी है। विनोद के गैंग के लाल बाबू यादव की दो कार सहित 13 लाख की संपत्ति, सूरज पासवान का एक ट्रैक्टर, पक्का मकान, अर्जुन पासवान की चार, चार पहिया गाड़ी, जमीन के साथ 96 लाख रुपए की संपत्ति जब्त कर ली है

इलहाबाद जा रहा था विनोद, रास्ते में हुई मुठभेड़
एसटीएफ सूत्रों के मुताबिक, माफिया विनोद का इन दिनों राजधानी सहित नोएडा, दिल्ली, प्रयागराज, झारखंड समेत कई जगहों पर रियल एस्टेट का काम चल रहा था। फरारी के दौरान वह इन शहरों में छिपकर रहता था और पुलिस के डर से रात का सफर करता था। गुरुवार देर रात भी वह प्रयागराज जा रहा था। इस बीच उसकी लोकेशन एसटीएफ को मिल गई। एसटीएफ ने उसे सुल्तानगंज के पास घेरा तो विनोद और उसके साथियों ने एसटीएफ पर फायरिंग शुरू कर दी, जिसमें विनोद मारा गया।
गोरखपुर के हिस्ट्रीशीटर ने दी थी पनाह
सूत्रों का दावा है कि फरारी के दौरान गोरखपुर के गोरखनाथ थाने का एक हिस्ट्रीशीटर माफिया विनोद को पनाह दिए हुए था। क्योंकि, हिस्ट्रीशीटर और माफिया विनोद दोनों सूद का कारोबार मिलकर करते थे। विनोद अक्सर हिस्ट्रीशीटर के लखनऊ, दिल्ली और मुबंई सहित अन्य ठिकानों पर ही पनाह लेता था। दोनों अंदर अंदर एक बार फिर किसी अन्य पार्टी के जरिए राजनीति में एंट्री लेने की तैयारी कर रहे थे।