गोरखपुर (ब्यूरो).जिला अस्पताल के ओपीडी में प्रतिदिन लगभग 100 पेशेंट आते हैं। इनमें से लगभग 25 में सिजोफ्रेनिया होती है। विशेषज्ञों के अनुसार इस बीमारी में पेशेंट संदेह से घिर जाता है। उसे लगता है कि हर व्यक्ति उसकी जासूसी कर रहा है। उसे कोई आवाज भी सुनाई पड़ सकती है, जो होती नहीं है। इसकी वजह से अपने को सबसे अलग कर लेता है। उसकी सोच विकृत होने लगती है। यदि समय से इलाज शुरू हो गया तो दवाओं से यह बीमारी ठीक हो जाती। लापरवाही बरतने पर लोग गंभीर रूप से बीमार हो जाते हैं, उन्हें पूरे जीवन दवा खानी पड़ती है। सड़कों पर कई सेट कपड़ा पहनकर घूमने वाले, नाली का पानी पीने वाले लोग शुरुआत में इसी बीमारी की चपेट में होते हैं, बाद में उनकी स्थिति गंभीर हो जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार मुख्य रूप से इस बीमारी के दो कारण हैं।

-यदि माता-पिता को यह बीमारी है तो बच्चे में हो सकती है।

-अत्यधिक तनाव व कार्य का दबाव।

सिजोफ्रेनिया सोच को विकृत कर देती है। हर व्यक्ति पर संदेह होने लगता है। पेशेंट को लगता है कि सभी उसके खिलाफ हैं और साजिश कर रहे हैं। ऐसा महसूस होने पर तत्काल डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। इस बीमारी का उपचार संभव है। नजरअंदाज करने पर यह गंभीर हो सकती है।

- डॉ। अमित कुमार शाही, मानसिक रोग विशेषज्ञ, जिला अस्पताल