गोरखपुर (ब्यूरो)।उन्होंने बताया कि प्रीमेच्योर बच्चों में रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमेच्योरिटी की समस्या बढ़ती जा रही है। यदि सही समय पर इलाज हो तो काफी हद तक रोशनी वापस आ जाती है। लेकिन, इलाज महंगा होने के कारण बहुत से बच्चों को इलाज नहीं मिल पाता है। जो बच्चे प्रीमेच्योर पैदा होते हैं, उनका रेटिना पूर्ण विकसित नहीं होता है और उसमें हेमरेज होने का रिस्क भी रहता है। साथ ही धीरे-धीरे बच्चों के आंखों की रोशनी कम हो जाती है। ऐसे बच्चों का इलाज लेजर या इंट्राविट्रियल इंजेक्शन लगाकर किया जाता है और कभी-कभी ऑपरेशन भी करना पड़ता है जो कि काफी खर्चीला होता है। आरओपी सेंटर खुलने से इन बच्चों को बेहतर इलाज सुविधा मिल सकती है। जिन माताओं को ज्यादा दूध होता है या नार्मल भी होता है और वह कुछ दूध डोनेट करना चाहती हैं तो उस दूध को प्रोसेसिंग करके कम से कम 6 महीने तक संरक्षित किया जा सकता है। यह दूध ऐसे बच्चों के लिए इस्तेमाल होता है जिनकी माताओं में किसी कारणवश दूध नहीं बनता है। इसके लिए ह्यूमन मिल्क बैंक की स्थापना भी की जाएगी।