गोरखपुर (ब्यूरो)।पिछले दिनों मंडलीय साइकोलॉजी सेंटर की टीम ने 30 से अधिक स्कूलों के बच्चों पर स्टडी की। उसमे कई चौंका देने वाली बात सामने आई। एक तरफ तो सोशल मीडिया में मस्त बच्चों का खाने-पीने का रूटीन बदल गया। वहीं, दूसरी तरफ ये बच्चे जिद्दी हो गए हैं। अपनी बात मनवाने के लिए ये कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं।

स्टडी में सामने आए ये तथ्य

मडंलीय साइकोलॉजी सेंटर की टीम ने 30 से अधिक सीबीएसई, यूपी बोर्ड और परिषदीय स्कूलों में जाकर बच्चों से बात की। उनसे सवाल जवाब किए, जिसके आधार पर ये पता चला कि बच्चे सोशल मीडिया के दम पर सपने पूरा करने का हवा-हवाई मंसूबा बना रहे हैं।

6 से 12 तक के बच्चों की काउंसिलिंग

टीम ने स्कूलों में जाकर 6 से 12वीं क्लास के बच्चों से अलग-अलग बातें की। इस दौरान टीचर्स से भी टीम ने बच्चों के फीडबैक लिए। इस स्टडी से पता चला कि बच्चों के कॉन्फिडेंस में काफी कमी आई है। ब्वॉयज स्टूडेंट सीखने का प्रयास नहीं बल्कि क्वेश्चन का आंसर आसानी से पाना चाह रहे हैं। वहीं कई बच्चों की शिकायतें मिली कि उनके पेरेंट्स अगर मोबाइल यूज करने से रोकते हैं, तो ये बच्चे लडऩे के लिए तैयार हो जाते हैं।

खाने पीने का बदला व्यवहार

एक रिसर्च में पाया गया है कि सोशल मीडिया की वजह से बच्चों के खाने-पीने और व्यवहार में गड़बड़ी यानी डिसऑर्डर की दिक्कतें बढ़ रही हैं। इस रिसर्च में 7वीं और 8वीं क्लास में पढऩे वाले 996 वैसे किशोरों को शामिल किया गया जो फेसबुक, इंस्टाग्राम, स्नैपचैट किसी न किसी सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर एक्टिव थे। रिसर्च में 51.7 परसेंट लड़कियां और 45 परसेंट लड़कों के व्यवहार में गड़बड़ी पाई गई। इसमें ज्यादातर बच्चों में कहीं वजन न बढ़ जाए इस टेंशन की वजह से हद से ज्यादा एक्ससाइज करने और खाना छोडऩे की आदत देखी गई। 75 परसेंट लड़कियों और 70 परसेंट लड़कों का कम से कम एक सोशल मीडिया अकाउंट था।

सोशल मीडिया का बच्चों पर बहुत गहरा असर पड़ रहा है। बच्चे घर से बाहर ही निकलना नहीं चाह रहे हैं। बच्चों ने एक अलग दुनिया बना ली है। वहीं उनको अच्छी लग रही है। पेरेंट्स की जिम्मेदारी है कि वो बच्चों पर निगरानी रखें। बच्चों को अधिक समय तक मोबाइल के साथ इंगेज ना रहने दें।

सीमा श्रीवास्तव, साइकोलॉजिस्ट

चिंताजनक तथ्य

1. सोशल मीडिया के अधिक यूज से बच्चों के कॉन्फिडेंस में काफी कमी आई है।

2. पेरेंट्स अगर मोबाइल यूज करने से रोकते हैं, तो बच्चे लडऩे के लिए तैयार हो जाते हैं।