गोरखपुर (ब्यूरो)। इसके अलावा क्रिकेट मैच के वक्त सभी रेडियो ऑन करके एक जगह बैठ कर रेडियो सुनते थे। वल्र्ड रेडियो डे पर जानने है कि अखिर आज कल यूथ रेडियो से कैसे जुड़े हैं।

डिजिटल रेडियो का इस्तेमाल करते हैं यूथ

समय बदल गया,रेडियो का अब उतना क्रेज नहीं रहा जितना उस दौर में हुआ करता था। पर बदलते टाइम के साथ रेडियो में भी काफी बदलाव आया है। आज कल हर किसी के फोन पर एफएम के रूप में डिजिटल रेडियो अवैलेवल है और आज भी लोग इसे उतने ही उत्साह से सुनते हैं और एंजॉय कर रहें हैं। अभिजीत सिंह का कहना है कि गाड़ी चलाते वक्त वह सबसे ज्यादा एफएम का इस्तेमाल करते हैं।

ड्राइविंग के वक्त ज्यादा इस्तेमाल

भले ही अपने खाली समय में कोई रेडियो या एफएम ना यूज करता हो पर आज कल ड्राइविंग करते वक़त लगभग हर कोई रेडियो का ही आनंद लेता है। शायद ही कोई ऐसा होता होगा जो ड्राइविंग के वक्त गानें न सुनता हो। रेडियो पर गानें सुनने का मजा ही अलग होता है। एफएम पर गानें सुनकर लोगों सफर इंट्रेस्टिंग हो जाता है। वहीं यूजर के जरूरत का ध्यान रख कर हर कंपनी वाले भी फोरव्हीलर्र में रेडियो की फैसिलिटी जरूरत रखते हैं।

एफएम बन रहा रोजगार का माध्यम

एफएम पर गानें सुनने का क्रेज जैसे जैसे बढ़ते जा रहा है वैसे ही आज कल इस फील्ड में काम करने के लिए यूथ भी एक्साइटेड हो रहे हैं.आज भी लोगों में आरजे बनने का शौक रह रहा है। यहां तक कि कितने यूथ आज इससे जुड़े भी हैं और कुछ आगे जुडऩा भी चाहते हैं। आर जे सोनी का कहना है कि जब वो पहले रेडियो पर किसी और का आवाज सुनती थी तो काफी अच्छा लगता था और आज वो खुद रेडियो की आवाज है। इसके अलावा और भी कई ऐसे यूथ हैं जिनका सपना आर जे बनने का है।

ऐसे हुआ विश्व रेडियो दिवस की शुरुआत

विश्व रेडियो दिवस की शुरुआत साल 2011 में हुई थी। साल 2010 में स्पेन रेडियो अकादमी ने 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस मनाने का प्रस्ताव दिया था। साल 2011 में यूनेस्को के सदस्य देशों ने इस प्रस्ताव को स्वीकार किया और 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस मनाने की घोषणा की। बाद में साल 2012 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने भी इसे अपना लिया। जिसके बाद 13 फरवरी को पहली बार यूनेस्को ने विश्व रेडियो दिवस मनाया।

भारत में रेडियो का इतिहास

भारत में रेडियो प्रसारण की शुरुआत मुम्बई और कोलकाता में सन 1927 में दो निजी ट्रांसमीटरों से हुई.1930 में इसका राष्ट्रीयकरण हुआ और तब इसका नाम भारतीय प्रसारण सेवा (इण्डियन ब्राडकास्टिंग कॉरपोरेशन) रखा गया.बाद में 1957 में इसका नाम बदल कर आकाशवाणी रखा गया।

रेडियो का क्रेज अभी भी वैसे ही है जैसा पहले था बस उसका रूप बदल गया है। आज भी हम रेडियो के तमाम शो में उतने ही इंट्रेस्ट से जुड़ते है.तब लगता है कि रेडियो ऐसी चीज़ है जो कभी आउट ऑफ डेटेड नहीं होगा।

अरून राय, स्टूडेंट

रेडियो मेरे लिए मेरा पहला प्यार है।

एक रेडियो जॉकी होने की वजह से रेडियो या एफएम का नाम आते ही कान खड़े हो जाते.अपना सा लगता है.लोगो तक इंटरटेनमेंट के साथ साथ इनफॉर्मेशंस पहुंचने का अपना अलग ही मजा है।

सोनी पाठक, रेडियो जॉकी

ट्रैवल करते वक्त एफएम पर सोंग सुनकर बहुत अच्छा लगता है। किसी भी प्लेलिस्ट का टेंशन नहीं होता है। उसमें जो गानें बजते है वो काफी ऑर्गेनिक लगते हैं। आर जे की आवाज सुनने में अच्छा लगता है।

प्रगति गुप्ता, स्टूडेंट