गोरखपुर (ब्यूरो)। इसका असर यंगस्टर्स की लाइफ पर ज्यादा देखने को मिल रहा है। बहुत से यंगस्टर्स करियर और अफेयर को लेकर परेशान रहते हैं। अपनी बात दूसरों से न कह पाने के चलते वे कई बार डिप्रेशन का भी शिकार हो जाते हैं। इस तरह के केसेज साइक्लॉजिस्ट के पास आ रहे हैं

केस-1

मास्टर्स की स्टूडेंट प्रीती अपने घर में सबसे बड़ी है। वह मिडिल क्लास फैमली को बिलांग करती है। उसके ऊपर फाइनेंशियल बर्डन भी है। वह यह सोचने लगी कि बड़ी होने के कारण उसे सक्सेसफुल होना ही है। कुछ अच्छा करना है जिससे वह अपनी फैमली को सपोर्ट कर सके। यही सोचते-सोचते वह डिप्रेशन का शिकार हो गई। पांच माह तक लगातार डिप्रेशन में रहने के कारण उसकी मेंटल स्टेब्लिटी खत्म होने लगी और उनके मन में सुसाइड जैसे थॉट्स आने लगे। इसके बाद उसने काउंसलिंग कराना स्टार्ट किया।

केस 2

कुशल एक स्टूडेंट है। वह पांच माह तक एक लड़की के साथ रिलेशनशिप में रहा। बाद में धीरे-धीरे उन दोनों में झगड़ा होने लगा और कुछ दिन बाद ब्रेकअप भी हो गया। जिसकी वजह से कुशल डिप्रेशन में चला गया। उसके बिहेवियर में चेंज आने लगा। उसे एंग्जाएटी और पैनिक अटैक आते थे। लेकिन अपनी इस प्रॉब्लम को वह फैमिली से शेयर नहीं करता था। उसे लगता था कि यह सुनकर परिवार के लोग गुस्सा करेंगे। एक दिन उसने एक साइकोलॉजिस्ट के पास जाकर अपनी समस्या बताई और कहा, उसके मन में सुसाइड करने की बात आती है। काउंसलिंग करने के बाद उसका ट्रीटमेंट शुरू किया गया।

फैमिली के ओवररिएक्शन का डर

साइकोलॉजिस्ट ने बताया कि अक्सर हमारी इंडियन फैमिली रिलेशनशिप मैटर पर ओवर रिएक्शन देती है, जिसकी वजह से यूथ्स अपनी प्रॉब्लम परिवार से शेयर करने से डरते हैं, क्योंकि उन्हे पाता होता है कि उनकी फैमिली उनके मेंटल कंडीशन समझने के बजाय उनको ही डाटेगी। साइकोलॉजिस्ट का कहना है कि ऐसे कंडीशन में फैमिली, फ्रेंड्स का सपोर्ट सबसे ज्यादा इम्पॉर्टेंट होता है। यह समय पर न मिलने पर हालात और खराब हो जाते हैं।

आगे बढने की होड़ ले जा रहा डिप्रेशन की ओर

साइकोलॉजिस्ट के अनुसार उनके पास सबसे ज्यादा काउंसलिंग के लिए वो यूथ्स आ रहे हैं जिनके डिप्रेशन की वजह ब्रेकअप और करियर में आगे बढने का स्ट्रेस था। जिनमें केसेज की संख्या इस प्रकार थी। 170 यूथ्स में करियर का स्ट्रेस देखने को मिला, वहीं 130 यूथ्स में ब्रेकअप को लेकर स्ट्रेस था।

18 से 30 साल के लोगों में अधिक प्रॉब्लम

साइकोलॉजिस्ट के अनुसार इस तरह की प्रॉब्लम 18 से 30 साल के युथ्स में अधिक देखने को मिल रही है। समय पर अगर ऐसे लोगों की काउंसलिंग न कराई जाए तो समस्या और बढ़ जाती है।

हिचक को छोड़ें, काउंसलिंग कराएं

साइकोलॉजिस्ट ने बताया कि लोगों में आज भी हिचक रहती है कि वो कांउसलिंग के लिए जाएंगे तो उन्हे लोग नार्मल कंसीडर नहीं करेंगे। यही हिचक कई बार बहुत खतरनाक साबित हो जाती है। इसके लिए अवेयरनेस बहुत जरूरी है।

यूथ्स दिन ब दिन डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं, फिर भी आज बहुत से ऐसे लोग हैं जो काउंसलिंग को लेकर अवेयर नहीं है। हालांकि यह बहुत जरूरी है। अगर किसी में सुसाइडल थॉट्स आए तो काउंसलर की हेल्प जरूर ले।

डॉ। शुभांकर रॉय, साइक्लॉजिस्ट