गोरखपुर (ब्यूरो)। अध्यक्ष प्रो। लोकश त्रिपाठी और महामंत्री डा। निरंकार राम त्रिपाठी ने इसे और कई अन्य कई समस्याओं को लेकर कुलपति को ज्ञापन सौंपा है।

उन्होंने कहा है कि 13 जून को संपन्न विद्या परिषद की बैठक में विश्वविद्यालय के तीन तरह की डिग्री देने की बात ने सभी को चौंका दिया है। नई व्यवस्था के अनुसार विश्वविद्यालय और संबद्ध महाविद्यालयों में चार वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम लागू हो गया है, लेकिन जिन महाविद्यालयों में केवल स्नातक तक की कक्षाएं चलती हैं, उन महाविद्यालयों को चार वर्षीय स्नातक कोर्स चलाने के लिए संबद्धता के लिए नए सिरे से आवेदन की शर्त रखी गई है। जिन महाविद्यालयों में परास्नातक स्तर तक की कक्षाएं चलती हैं, वहां चार वर्षीय कोर्स चलाने की संबद्धता के लिए नए सिरे से आवेदन तो नहीं करना होगा, लेकिन वहां से उत्तीर्ण होने वाले परीक्षार्थियों को बीए आनर्स की डिग्री मिलेगी, दूसरी ओर विश्वविद्यालय केंद्र से उत्तीर्ण होने वाले विद्यार्थियों को आनर्स विद रिसर्च की उपाधि मिलेगी। इसका खामियाजा आगे महाविद्यालयों को भुगतना पड़ेगा और अधिकांश विद्यार्थी प्रवेश हेतु विश्वविद्यालय का रुख कर लेंगे। इस नयी व्यवस्था से महाविद्यालयों का प्रवेश प्रभावित होगा।

उन्होंने कहा कि दो वर्ष बाद होने जा रहे रेट की परीक्षा में संबद्ध अनुदानित महाविद्यालय के शिक्षकों को भी प्रवेश परीक्षा देने के लिए बाध्य करना किसी भी ²ष्टिकोण से उचित नहीं है। अगर महाविद्यालय रिसर्च सेंटर नहीं होगा तो विश्वविद्यालय की भांति महाविद्यालयों को नैक, ग्रेङ्क्षडग, स्टेटस आदि में हिस्सा लेने में कठिनाई का सामना करना पड़ेगा और इससे और भी विसंगतियां उत्पन्न होगी। गुआक्टा अध्यक्ष व महामंत्री ने शिक्षकों के मूल्यांकन के पारिश्रमिक के भुगतान और विभिन्न अकादमिक समितियों में प्रतिनिधित्व की मांग भी की है।

विश्वविद्यालय सहित सभी कालेजों में चार वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम ही संचालित होगा। जहां परास्नातक की पढाई नहीं होती, वहां भी इसकी शुरुआत होगी। आनर्स विद रिसर्च डिग्री केवल विश्वविद्यालय परिसर में मिलेगी। जिन कालेजों में परास्नातक की व्यवस्था नहीं है, उनके पास तीन वर्ष का समय रहेगा। यदि वह इस दौरान सुविधाओं को अपडेट कर लेते हैं तो वहां से चार वर्ष की आनर्स डिग्री दी जाएगी। ऐसा न होने पर विद्यार्थियों के पास एग्जिट का विकल्प मौजूद रहेगा। जल्द ही कालेजों के प्राचार्यों के साथ बैठक कर इस नई व्यवस्था के संचालन पर विचार किया जाएगा और गाइडलाइन जारी की जाएगी।

प्रो। पूनम टंडन, कुलपति, दीदउ गोरखपुर विश्वविद्यालय