गोरखपुर (ब्यूरो)।यह बीमारी भी अनुवाशिंक है। इसलिए समय रहते इसका इलाज जरूरी है। बीआरडी मेडिकल कॉलेज के चिकित्सक डॉ। अश्विनी मिश्रा ने बताया कि इस साल अस्थमा दिवस का विषय अस्थमा के इलाज में कमियों को दूर करना है।

एलर्जी का प्रकार है अस्थमा

अस्थमा एलर्जी का ही एक प्रकार है और इसी कारण से अस्थमा के कारणों का पता लगाना अभी तक संभव नहीं हो पाया है। अस्थमा लंबे समय तक चलने वाली बीमारी है। इस बीमारी में फेफड़ों की सांस की नलियों में सूजन आ जाती है, सूजन के चलते सांस की नलियां सिकुड़ जाती हैं, जिससे फेफड़े संवेदनशील हो जातें हैं। बताया कि जिसके माता-पिता को अस्थमा है, उनको अस्थमा होने की आशंका बढ़ जाती है। ऑपरेशन से पैदा होने वाले बच्चों में सामान्य प्रसव से पैदा होने वाले बच्चों की तुलना में अस्थमा होने की आशंका ज्यादा होती है।

बचाव ही उपाय

सीएमओ व चेस्ट रोग विशेषज्ञ डॉ। आशुतोष कुमार दूबे ने बताया कि यह अनुवांशिक बीमारी है। इसमें बचाव ही कारगर है। गर्मी के मौसम में धूल, मिट्टी, रसोई का धुंआ, नमी, सीलन, शराब, वायरस और बैक्टीरिया वह कारक है, जिसके चलते अस्थमा मरीज की परेशानी बढ़ जाती है। चेस्ट रोग विशेषज्ञ नदीम अर्शद ने बताया कि इसे पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता है। पर लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है।

इन्हेलर थेरेपी कारगर

डॉ। अश्वनी मिश्रा ने बताया कि इनहेलेशन थेरेपी अस्थमा के इलाज का मुख्य आधार है। इससे सीधे फेफड़ों में दवाएं पहुंचती हैं। इसलिए काफी तेजी से और बहुत कम डोज पर काम करती है। जिससे साइड इफेक्ट का डर कम हो जाता है। उन्होंने कहा कि बाजार में मौजूद इन्हेलर डिवाइसेज में दबावयुक्त मीटर्ड डोज इन्हेलर्स (एमडीआई), ड्राई पाउडर इन्हेलर्स (डीपीआई) और नेब्यूलाइजर्स शामिल है।

जिले में 50 हजार से अधिक अस्थमा के मरीज

एक आंकड़े के मुताबिक गोरखपुर में 50 हजार से अधिक मरीज इस बीमारी के चपेट में है। इस बीमारी से बचने के लिए हर साल मई में विश्व अस्थमा दिवस मनाया जाता है। इसमें मरीजों की फ्री जांच की जाती है और साथ ही उन्हें इससे बचाव की सलाह भी दी जाती है।

अस्थमा से जुड़ी सही जानकारी

चेस्ट रोग विशेषज्ञ व आईएमए के सचिव डॉ। वीएन अग्रवाल ने बताया कि बच्चों की इम्युनिटी कम होने से बच्चों में यह बीमारी सबसे ज्यादा असर करती है। बच्चों को जब यह बीमारी हो जाती है तो उनके माता-पिता को यह भ्रम हो जाता है कि उनका बच्चा इस बीमारी की चपेट में आ गया तो अब उसका आगे का जीवन बेकार है। ऐसा पूरी तरह से गलत है। सही तरह से इलाज हो और वह दवा लेता रहा तो पूरी उम्र सामान्य जीवन जी सकता है।

परहेज भी जरूरी

चेस्ट रोग विशेषज्ञ डॉ। सूरज जायसवाल ने बताया कि इस बीमारी में एलोपैथ कोई खास परहेज नहीं बताता है, लेकिन आयुर्वेद इस बीमरी में चिकनी चीजों को खाने से मना करता है। जैसे केला, दूध, दही, मक्खन और घी। इसका सेवन न किया जाए तो काफी आराम मिलता है।

लक्षण

सांस लेने में कठिनाई होती है।

सीने में जकडऩ जैसा महसूस होता है।

दमा का रोगी जब सांस लेता है तब एक घरघराहट जैसा आवाज होती है।

सांस तेज लेते हुए पसीना आने लगता है।

बेचैनी-जैसी महसूस होती है।

सिर भारी-भारी जैसा लगता है।

जोर-जोर से सांस लेने के कारण थकावट महसूस होती है।

स्थिति बिगड़ जाने पर उल्टी भी हो सकती है।