गोरखपुर (ब्यूरो)।इससे आपकी किडनी से लेकर बॉडी की प्रतिरोधक क्षमता तक कम हो सकती है। यह बात सामने आई है आरएमआरसी और बीआरडी मेडिकल कॉलेज की वर्कशॉप में। आरएमआरसी में हुई वर्कशॉप में एक्सपर्ट और वायरोलॉजिस्ट ने स्क्रब टॉयफस इंफेक्शन समेत जेई और एईएस से बचाव पर चर्चा की, लेकिन सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाली एंटीबॉयोटिक दवाओं के सेवन पर चर्चा हुई कि कोरोना काल के बाद से एंटीबॉयोटिक दवाओं का इस्तेमाल तेजी के साथ हो रहा है, जिस पर लगाम लगनी चाहिए। एजिथ्रोमाइसिन 250 व 500 एमजी की दवा का ज्यादा इस्तेमाल करने पर बॉडी के भीतर क्या-क्या प्राब्लम आ सकती है। इस पर आरएमआरसी ने रिसर्च भी शुरू कर दी है।

इंफेक्शन में दी जाने वाली एंटीबॉयोटिक्स हो सकता है प्रिजर्व

आरएमआरसी लैब के वॉयरोलाजिस्ट डॉ। अशोक पांडेय ने बताया, भारत में एंटीबायोटिक दवा में एजिथ्रोमाइसिन समेत बड़े पैमाने पर एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल किया जा रहा है। एजिथ्रोमाइसिन जैसे एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल किफायत के साथ किया जाना चाहिए। इसके ज्यादा इस्तेमाल से बॉडी को नुकसान पहुंच सकता है। वैसे भी एंटीबायोटिक्स दवाएं, जिसका इस्तेमाल अज्ञात बैक्टीरिया के खिलाफ (Broad Spectrum Drug) किया जाता है। उसका इस्तेमाल भी संभलकर करने की जरूरत है। ऐसे ड्रग का इस्तेमाल उसी सूरत में किया जाना चाहिए, जब किसी मरीज की जान संकट में हो और उसके अंदर अज्ञात बैक्टीरिया हो। उन्होंने कहा कि गले के इंफेक्शन में दी जाने वाली एंटीबायोटिक्स भी प्रिजर्व हो सकती है। वहीं, बाल रोग विशेषज्ञ डॉ। भूपेंद्र शर्मा ने एंटीबायोटिक के अधिक इस्तेमाल से भविष्य में होने वाली एंटीबायोटिक प्रतिरोध को रोकने लिए पॉलिसी बनाने का सुझाव दिया।

रिसर्च कार्यो पर भी हुआ डिस्कशन

वर्कशाप के दौरान पूर्वांचल की पुरानी बीमारी जेई, एईएस से बचाव और अब तक हुए रिसर्च कार्र्यों पर डिस्कशन हुआ। चीफ गेस्ट के रूप में एडी हेल्थ डॉ। आईवी विश्वकर्मा मौजूद रहे। स्पेशल गेस्ट के तौर वीसीआरसी पांडुचेरी के डायरेक्टर डॉ। अश्वनी कुमार व आरएमआरसी के एक्स डायरेक्टर डॉ। रजनीकांत मौजूद रहे। वहीं वर्कशाप में आए डॉ। मनोज मुरेकर ने आरएमआरसी की ओर से जेई, एईएस से बचाव और रिसर्च कार्र्यों की जानकारी देते हुए बताया कि जेई वैक्सीन और स्क्रब टायफस संक्रमण के लिए एजीथ्रोमाइसिन के सही इस्तेमाल से इनके केस में काफी कमी आई है, लेकिन जिन्होंने एजिथ्रोमाइसिन का ज्यादा सेवन किया है, उन केसेज में अभी कारण नहीं समझ आ सका है। उन पर रिसर्च जारी है। वहीं, एडी हेल्थ डॉ। आईवी विश्वकर्मा ने बताया कि सीएचसी और पीएचसी पर रैपिड टेस्ट और जिला अस्पताल में छह जांच जेई, स्क्रब टॉयफस, डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया, लेप्टास्पायरोसिस की जांच से शुरू में ही केस की पहचान कर ली जा रही है। इस मौके पर सीएमओ डॉ। आशुतोष कुमार दुबे, डब्लूएचओ के डॉ। मुनिंदर, मेडिसिन विभाग के डॉ। महिम मित्तल, डॉ। नीरज मधुकर और डॉ। नेहा मौजूद रहीं।

जरूरी बातें

- एजि़थ्रोमाइसिन सभी प्रकार के बैक्टीरिया का इलाज नहीं कर सकती। इसलिए कोर्स शुरू करने से पहले डॉक्टर से परामर्श करना महत्वपूर्ण है।

- एजि़थ्रोमाइसिन का उपयोग गर्भावस्था के दौरान केवल तभी किया जाना चाहिए, जब इसकी स्पष्ट आवश्यकता हो।