- मनाई गई काकोरी कांड के नायक अमर बलिदानी पं। रामप्रसाद बिस्मिल की जयंती

- सेवा भारती ने किया ऑनलाइन वैचारिक गोष्ठी का आयोजन

GORAKHPUR: काकोरी कांड के नायक अमर बलिदानी पं। रामप्रसाद बिस्मिल की जयंती पर सेवा भारती ने कॉलेज में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स के साथ ऑनलाइन वैचारिक गोष्ठी का आयोजन किया। सेवा भारती के प्रांतीय मंत्री डॉ। राजेश चन्द्र गुप्त ने वेबिनार में बतौर मुख्य वक्ता अपना लेक्चर दिया। उन्होंने वेबिनार को संबोधित करते हुए कहा कि पं। बिस्मिल को गोरखपुर के कारागार में क्रूर ब्रितानी सत्ता ने फांसी पर चढ़ाया। उनके जन्म का लक्ष्य था भारत की ब्रिटिश दासता से मुक्ति। वे विचारों से क्रांतिकारी, मान्यता से आर्यसमाजी और मां भारती के अनन्य भक्त थे। इस वेबिनार में कुल 57 युवा प्रतिभागियों में प्रतिभाग किया।

संस्कारों में घर कर गई है अंग्रेजियत

उन्होंने कहा कि आज के समय में भले भारत की भूमि से राजनैतिक तथा प्रशासनिक दृष्टि से अंग्रेजों का पूर्ण पलायन हो गया हो, लेकिन शिक्षा प्रणाली और आचार व्यवहार के संस्कारों में अंग्रेजियत घर कर गई है। हमारी परम्परागत शिक्षा प्रणाली जो पूर्वजों और महात्माओं के सम्मान का संस्कार दिया करती थी, आज वह छद्म प्रगतिवादी विचारधारा के नाम पर प्रदूषित हो गई है। राष्ट्रीय स्तर पर ख्यातिप्राप्त और विश्वसनीय शिक्षण संस्थानों की ओर से प्रकाशित पुस्तकों में आज भी दासता और आंग्लपरस्ती की मानसिकता से लिखा गया इतिहास षड्यंत्र पूर्वक पढ़ाया जा रहा है। यह इतिहास हमारे क्रांतिकारी योद्धाओं और अमर बलिदानियों को निरन्तर अपमानित करता आ रहा है।

विद्रोह क्रांति का दूसरा नाम

राष्ट्रीय स्वाभिमान और बिस्मिल की प्रासंगिकता पर विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि किसी राष्ट्र का स्वाभिमान और उसके आदर्शो का सम्मान ही उस राष्ट्र की थाती होता है। अन्याय के विरुद्ध एक व्यापक आक्रोश और जनकल्याण के लिए विद्रोह क्रांति का दूसरा नाम होता है। लेकिन यह विडंबना है कि क्रांति के नाम पर वर्तमान समय में युवाओं को बहकाकर राष्ट्रविरोधी कृत्यों में झोंकने का षड्यंत्र चल रहा है और इस कार्य में सामान्य निर्दोष प्रजा को समय समय पर घोर क्षति भी पहुंचाई जा रही। यह पंडित बिस्मिल के आदर्शो और उनकी नीतियों से सर्वथा विरुद्ध है। आज जरूरत है कि अमर बलिदानियों की ओर से किए गए सभी सार्थक प्रयत्नों और बलिदानों का हममें अपार सम्मान होना चाहिए। ऐसे में जब हम अपने ही पूर्वजों बलिदानियों को विस्मृत करेंगे तो हमसे बड़ा कृतघ्न और कोई न होगा।