शब्दों में नहीं बयां हो सकती खुशी
एवरेस्ट की ऊंचाईयों को छूने की खुशी इस कदर थी कि लफ्जों में बयां करना शायद मुमकिन नहीं। अरुणिमा का कहना था कि इस ऊंचाई पर पहुंचने के बाद जो सुकून और खुशी उसे हासिल हुई थी शायद वह काफी दिनों से इसका ही इंतजार कर रही थी। एवरेस्ट की ऊंचाइयों पर अरुणिमा ने 20 मिनट स्पेंड किए, इसके बाद ऑक्सीजन की कमी की वजह से उसे वहां से वापस लौटना पड़ा लेकिन उन यादगार पलों को अपने कैमरे में कैद करने से वह बिल्कुल भी नहीं चूकीं।

तो शायद न मिलता यह मुकाम
वह कहते हैं न कि यंू ही कोई चीज हासिल नहीं होती, उसके लिए कीमत चुकानी ही पड़ती है। एवरेस्ट फतह करने से पहले ही अरुणिमा ने अपने पैरों के रूप में इसकी काफी बड़ी कीमत चुका दी थी। इस रोंगटे खड़े कर देने वाली घटना ने अरुणिमा को परेशान तो किया ही साथ ही उन्हे आलोचना का शिकार भी होना पड़ा। शायद यही आलोचना ही थी जिसने अरुणिमा को समाज में अपनी पहचान और इज्जत बनाए रखने के लिए एवरेस्ट की ऊंचाइयों तक पहुंचाया।

कड़ी मेहनत का मिला रिजल्ट
अरुणिमा को यह कामयाबी यंू ही नहीं हासिल हुई बल्कि इसके पीछे उनकी कड़ी मेहनत और रेग्युलर टे्रनिंग शामिल थी। एवरेस्ट फतह करने के लिए कई मंथ रेग्युलर ट्रैकिंग प्रैक्टिस और उसके बाद 3 मार्च से रेग्युलर ट्रेनिंग कैंप में पार्टिसिपेशन ने कामयाबी को उनके कदमों में लाकर रख दिया। आई लैंड पीक जो करीब 20 हजार फीट से भी ज्यादा ऊंचा है, उस पर टै्रकिंग कर उसने अपनी तैयारियों को परखा वहीं ट्रेनिंग के दौरान फुर्सत के पलों में वह दूर दिख रहे एवरेस्ट को निहारती और यह इरादा करती कि मुझे इस ऊंचाई को एक दिन जरूर छूना है।

नहीं भूलती वह जर्नी
अरुणिमा की इस शानदार सफलता जहां उन्हें हमेशा याद रहेगी, वहीं अपने दोनों पैरों से की गई लास्ट जर्नी उसे भुलाए नहीं भूलती। अरुणिमा बताती हैं कि 11 अप्रैल 2011 को पद्मावत एक्सप्रेस से वह दिल्ली जा रही थीं, अभी बरेली के पास पहुंची होगी तभी करीब 1-1.30 बजे के बीच कुछ बदमाश भी उसी बोगी में पहुंच गए। ट्रेन के गेट के पास विंडो सीट पर बैठी अरुणिमा ने गोल्ड चेन पहन रखी थी, बदमाश उससे चेन छीनने लगे, विरोध करने पर उन्होंने उन्हें चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया जिससे उसका बायां पांव बुरी तरह से लहु-लुहान हो गया। जब वह उठने की कोशिश करने लगी तो पता चला कि उसका पैर अब बिल्कुल भी चलने के लायक नहीं बचा है।

गांव वालों ने दिया सहारा
ट्रेन से गिरने के बाद वह रात भर वहीं पर चींखती रही लेकिन उस दौरान न तो किसी को उनकी  आवाज सुनाई दी और न ही कोई उसकी मदद के लिए आया। सिर्फ ट्रेन के आने-जाने की आवाज आ रही थी। मार्निंग में कुछ गांव वालों ने उन्हें इस हाल में देखा तब हॉस्पिटल पहुंचाया। प्राइमरी ट्रीटमेंट के बाद वहां के डॉक्टर्स ने उसे डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल के लिए रेफर कर दिया।

डॉक्टर ने दिया ब्लड
अरुणिमा की मानें तो जिस वक्त वह हॉस्पिटल पहुंची उनका काफी सारा खून बह चुका था और उन्हें तत्काल खून की जरूरत थी। मौके पर न तो उसका कोई जानने वाला था और न ही रिलेटिव। इसे इत्तेफाक ही कहेंगे कि इस दौरान डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल के एक डॉक्टर का ब्लड ग्रुप अरुणिमा के ब्लड ग्रुप से मैच कर गया और उस डॉक्टर ने बिना कुछ सोचे-समझे अपना एक यूनिट ब्लड डोनेट कर दिया जिसके बाद अरुणिमा की हालत में कुछ सुधार आया। इसके बाद पेरेंट्स ने उन्हेें एम्स में एडमिट कराया।

एम्स में बनी एवरेस्ट की प्लानिंग
अपना एक पैर गवांने का गम तो अरुणिमा को था ही साथ ही यह दर्द भी था कि उनके फ्यूचर का क्या होगा। बस यही बात उसे परेशान कर रही थी, इस दौरान उनकी मां ज्ञान बाला सिन्हा ने उन्हें कमजोर पड़ने से बचाया। अरुणिमा की मानें तो उसे उसी वक्त कुछ अलग और एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी करने की ठानी। न जाने कहां से मन में एवरेस्ट का ख्याल आया और बस तय कर लिया कि अब तो इन ऊंचाईयों को छूना है। यही मेरी अगली मंजिल है जो मुझे अलग पहचान दिलाएगी। चार महीने तक एम्स में रहने के दौरान उन्होंने सिर्फ यही प्लानिंग की कि किस तरह से अपने इस सपने को हकीकत में बदला जाए। आखिर हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होने के बाद वह अपने सपने को पूरा करने में लग गई और वह सपना अब हकीकत बने चुका है।

इंटरनेशनल स्पोर्ट्स एकेडमी बनाएंगी अरुणिमा
एवरेस्ट की ऊंचाईयों को दूने वाली अरुणिमा नेशनल लेवल की एथलीट है। उन्होंने इंटरनेशनल स्पोर्ट्स एकेडमी खोलने का सपना संजो रखा है। इसकी ओर उन्होंने कदम भी बढ़ाने शुरू कर दिए हंै। अरुणिमा की मानें तो उन्होंने कानपुर-रायबरेली रोड पर जमीन भी खरीद ली है। उन्होंने बताया कि इस एकेडमी में उन फिजिकली चैलेंज्ड प्लेयर्स जो कुछ करना चाहते हैं, को फ्री ऑफ कॉस्ट ट्रेनिंग दी जाएगी, साथ ही उनका हॉस्टल चार्ज भी नहीं लिया जाएगा। इसके साथ ही वह ब्लेड रनर भी बनना चाहती हैं। इसके लिए यूएस में रहने वाले डॉ। राकेश कुमार श्रीवास्तव उनकी हेल्प कर रहे हैं।

स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने दिया झटका
नेशनल लेवल के एथलीट अरुणिमा को सबसे बड़ा झटका तब लगा जब उनके ही डिपार्टमेंट ने उनका साथ देने से मना कर दिया। स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया यानी कि साई ने पहले तो इनका साथ दिया, लेकिन बाद में साथ छोड़ दिया और अरुणिमा को प्लेयर मानने से इंकार कर दिया। अरुणिमा का कहना है कि भले ही कोई उसे प्लेयर माने या न माने, वह पहले भी प्लेयर थीं, अब भी है और आगे भी रहेंगी।


report by : syedsaim.rauf@inext.co.in