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- लगातार बढ़ती गई शहर की आबादी लेकिन नहीं बढ़े शवदाह गृह
- होती है मुश्किल, बाढ़ के दिनों में बढ़ जाता है संकट
GORAKHPUR: शहर के विकास के लिए योजनाएं तो तमाम बनीं, लेकिन इनमें हमेशा पब्लिक की वर्तमान जरूरतें ही शामिल रहीं, भविष्य का ख्याल नहीं रखा गया। 96 वर्ग किमी वाला नगर निगम पिछले तीस साल में 147 वर्ग किमी का हो गया। जिला मुख्यालय से 5 किमी। तक सिमटे जीडीए की सीमा रेखा 15- 16 किमी तक पहुंच गई लेकिन इसके बाद भी 'दो गज जमीन' का इंतजाम करने में जिम्मदार नाकाम ही रहे। शहर की आबादी बढ़ती गई तो मौतों का आंकड़ा भी बढ़ा लेकिन श्मशान, कब्रिस्तान की संख्या आज भी वही है। इस कारण आम दिनों में तो दिक्कत होती ही है, बाढ़ जैसी विपदा में किसी का अंतिम संस्कार करने में पब्लिक की मुश्किल बढ़ जाती है तो पर्यावरण के लिए भी संकट खड़ा हो जाता है।
हालात जस के तस
1989 में गोरखपुर को नगर निगम का दर्जा मिला। निगम का विस्तार हुआ तो वह 96 वर्ग किमी से फैलकर 147 वर्ग किमी का हो गया और 1991 की जनसंख्या के अनुसार आबादी भी 5.22 लाख हो गई। लेकिन, श्मशान, कब्रिस्तान की जरूरत पर तभी भी ध्यान नहीं दिया गया। तब 48 कब्रिस्तान, 4 क्रिश्चियन कब्रिस्तान थे। वहीं शहर में एक ही श्मशान घाट था जबकि दो शहर से दूर थे। आबादी बढ़ने के बाद भी इनकी संख्या नहीं बढ़ी।
दो गज जमीन पर नहीं ध्यान
शहर में 2001 और फिर 2011 में भी जनगणना हुई। 2001 में शहर की जनसंख्या 6.22 लाख हो गई लेकिन कब्रिस्तान, श्मशान नहीं बढ़े। वहीं 2011 में भी जनसंख्या बढ़ गई लेकिन इनकी संख्या नहीं बढ़ी।
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2012 में योजना शुरू, 2016 में शिलान्यास
नगर निगम ने 2012 में राजघाट पर कब्रिस्तान बनाने की योजना बनाई। निगम कार्यकारिणी ने प्रस्ताव पास किया कि राजघाट पर विद्युत शवदाह गृह का निर्माण किया जाए, लेकिन प्रस्ताव शासन के पास गया तो अधर में लटक गया। 2016 में शासन की तरफ से एक नई योजना को स्वीकृति मिली। राजघाट पर ही विद्युत शवदाह गृह की जगह, लकड़ी से शव जलाने वाले शवदाह गृह को स्वीकृति मिली। लेकिन एक साल बाद भी इस शवदाह गृह का आधा अधूरा ही ढांचा खड़ा हो पाया है।
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बाढ़ के समय बढ़ जाती है प्रॉब्लम
आबादी बढ़ने के बाद शवों के अंतिम संस्कार में यूं तो थोड़ी दिक्कत हर समय होती है लेकिन बाढ़ के समय यह प्रॉब्लम अधिक हो जाती है। राजघाट पर सबसे अधिक दिक्कत होती है। सामान्य मौसम में जब नदी का पानी पेट में रहता है तब ता नदी किनारे या सहारा एस्टेट पर लोग दाह संस्कार कर देते हैं, लेकिन बाढ़ आने पर जगह नहीं मिल पाती। तब परिजन हाइवे किनार बांध पर मजबूरी में शवदाह करते हैं।
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इस तरह बढ़ती गई जनसंख्या
जनगणना वर्ष आबादी
1991 505566
2001 622701
2011 673446
और श्मशान घाट जस के तस
48 कब्रिस्तान
4 शवदाह गृह
4 ईसाई कब्रिस्तान
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यह हैं श्मशान घाट
- राजघाट पुल
- सहारा शवदाह गृह राजघाट
- लहसड़ी
- कालेसर मोड़ के
यह हैं कब्रिस्तान
- कच्ची बाग तिवारीपुर
- नॉर्मल
- गोरखनाथ
- रसूलपुर
- दिलेजाकपुर समेत 48 कब्रिस्तान
ईसाई कब्रिस्तान
- पैडलेगंज
- खरैया पोखरा बशारतपुर
- राप्तीनगर
- पादरी बाजार