गोरखपुर (ब्यूरो)। गोरखपुर में शराब, चरस, गांजा, भांग और स्मैक के नशे में युवा डूबते जा रहे हैैं। यह 18-45 वर्ष तक के लोग हैं। बिलंदपुर स्थित नशा मुक्ति केंद्र पर प्रतिदिन 30-35 पेरेंट्स अपने परिवार के सदस्यों की नशा मुक्ति के लिए क्वैरी करने आते हैैं। वहीं, 4-5 लोग नशे के आगोश में डूब चुके अपने परिवार के सदस्य को इससे छुटकारा दिलाने के लिए छह महीने के कोर्स में दाखिला दिलाते हैैं। नशा मुक्ति केंद्र पर प्रतिमाह 150 लोग एडमिट किए जाते हैैं। पूरे साल भर में 1800 लोग एडमिट होते हैैं। ऐसे तीन और नशा केंद्रों पर 5400 लोग प्रतिवर्ष एडमिट किए जा रहे हैैं और इनका इलाज किया जाता है। यह सभी सेंटर बेतियाहाता, दाउदपुर, रुस्तमपुर एरिया में हैैं। बावजूद इसके कई ऐसे भी लोग हैैं, जो नशे की लत से बाहर नहीं निकल सके हैैं, और ना ही इस तरह के सेंटर पर जाना चाहते हैैं। यही वजह है कि इस तरह के बड़े घटनाओं का शिकार परिवार के सदस्य या फिर समाज के लोग हो जाते हैैं।

कैसे होता है ट्रीटमेंट

नशा मुक्ति केंद्र में तैनात काउंसलर शिल्पा गुप्ता व गौरव द्विवेदी ने बताया, उनके सेंटर पर आने वाले ज्यादातर स्मैक और अल्कोहलिक एडिक्टेड ज्यादा हैं। इनके पेरेंट्स जब इन्हें लेकर आते हैैं, तो काउंसलिंग की जाती है। उसके बाद उन्हें छह महीने के कोर्स के लिए दाखिला दिया जाता है। उसके बाद उन्हें 45 दिन में शारीरिक क्षति को दुरुस्त करने का काम किया जाता है। फिर उसके बाद परिवार के सदस्यों से उसकी मीटिंग कराई जाती है। उसके बाद मानसिक व्यवहार देखा जाता है। फिर 45 दिन बाद मानसिक क्षति पर काम किया जाता है। एडमिट व्यक्ति का आध्यात्यमिक मेडिटेशन कराया जाता है। उसके बाद उनकी स्थिरता देखी जाती है। नशा मुक्ति केंद्र सेंटर इंचार्ज आशीष शुक्ला बताते हैैं कि नशा एक मानसिक बीमारी है। वह खुद भी नशे के आगोश में डूब चुके थे, लेकिन वह इससे छुटकारा पाने के बाद दूसरे लोगों को इसे छोडऩे के लिए प्रेरित करते हैैं।

इनके ज्यादा हैैं केस

- शराब

- चरस

-गांजा

- स्मैक

- इंजेक्शन

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- ग्रुप काउंसिलिंग

- प्रोफेशनल काउंसलिंग

- नशे से संबंधित क्वैरी

केस-1: सर्वोदय नगर निवासी एक युवक ने स्मैक का सेवन पहले शौक के तौर पर किया। फिर उसके बाद शौक लत में बदल गई। परिवार के सदस्यों से इस लत को छुड़ाने के लिए उसकी शादी कर दी कि पत्नी के आने के बाद शायद वह सुधर जाएगा। लेकिन न सिर्फ उसने अपनी जिंदगी तबाह की बल्कि उसने अपने पत्नी, एक बेटे और मां-बाप की जिंदगी को बर्बाद कर दिया। आलम यह है कि घर को छोड़कर परिवार के सदस्यों को दूसरी जगह जाना पड़ा।

केस-2: छोटेकाजीपुर निवासी एक युवक शराब के नशे में इस कदर चूर हो गया कि उसने पत्नी के सारे गहने बेच दिया, पत्नी ने अपनी जीविका के लिए सिलाई-कढ़ाई बुनाई सेंटर खोला तो वहां भी उसने उससे पैसे छीन लिया। आलम यह रहा कि महिला को अपने पत्नी से छुटकारा पाने के लिए दूसरे शहर जाना पड़ा।

नशे के आगोश में डूबे युवाओं का उपचार दवा से नहीं बल्कि मेडिटेशन और इच्छा शक्ति से हो सकता है। हमारी तरफ से लगातार हर जगह पर ओरिएंटेशन प्रोग्राम चलाए जा रहे हैैं। लोगों को इसकी ड्रग्स एडिक्शन से कैसे बाहर आना है। इसके बारे में बताया जा रहा है।

डॉ। एके चौधरी, नशा उन्मूलन प्रभारी