- लॉक डाउन में बच्चे घर में कैद होने के बाद हो गए मानसिक रोगी

-जिला अस्पताल समेत प्राइवेट हास्पिटल में पेरेंट्स अपने बच्चों के इलाज के दौरान बता रहे ढेर सारी बातें

केस वन

राप्तीनगर के रहने वाली सुनीता का बेटा क्लास 5वीं का स्टूडेंट है। वह पिछले कुछ दिनों से नींद में भी अजीबों गरीब हरकते करता है। नींद में ऑनलाइन गेम के किरदारों की भूमिका अदा करने लगता है। कभी इसको गोली मारो तो कभी उसके ठिकाने को उड़ाने की बात करता है। एक दिन इससे आजीज आकर सुनीता ने अपने मोबाइल से गेम को डिलीट कर दिया। उसके बाद से वह गुमसुम उदास बैठा रहता है। उसे जब साइकियाट्रिस्ट से दिखाया तो उसे दिमाग पर गहरा चोट पहुंचने की बात कही। इलाज के बाद वह अब ठीक है।

केस टू

मैत्रीपुरम के रहने वाले आशीष बताते हैं कि उनका बेटा क्लास 4 में है। लेकिन जब स्कूल बंद हुआ है। तब से वह गेम में दिन भर व्यस्त रहता है। ऑफिस चले जाने के बाद वह अपने मम्मी के मोबाइल पर गेम खेलना शुरू कर देता है। लेकिन एक दिन गेम डिलीट कर देने के बाद उसने खाना नहीं खाया, मानसिक रूप से वह बीमार हुआ, डॉक्टर से दिखाया तो उन्होंने भी उसे मोबाइल से दूर रहने की सलाह दी। अब ठीक है।

यह दो केस बानगी भर है। दरअसल, कोरोना से बचाव के लिए भले ही स्कूलों में बच्चों को नहीं भेजा जा रहा है। लेकिन बच्चे घर में रहते हुए ही अपनी मानसिक और शारीरिक बीमारी को दावत दे चुके हैं। साइकोलॉजिस्ट और साइकियाट्रिस्ट की माने तो इसके पीछे पेरेंट्स ही जिम्मेदार है। पेरेंट्स के लाड प्यार और मोबाइल पर गेम खेलने की इजाजत देने का नतीजा है कि बच्चे मानसिक रूप से बीमार पड़ रहे हैं।

गेमिंग एडिक्शन का शिकार

जिला अस्पताल के साइकेट्सि्ट डॉ। अमित शाही बताते हैं कि जिला अस्पताल में इन दिनों इस मानसिक रूप से बीमार बच्चों के मामले आने शुरू हो चुके हैं। स्थिति इतनी गंभीर हो जा रही है कि बच्चों को एडमिट तक करने की नौबत आ जा रही है। बच्चों चूंकि इंटरनेट गेमिंग एडिक्शन के शिकार हो चुके हैं। जिसका साइड इफेक्ट दिखाई दे रहा है। ऑनलाइन में सबसे ज्यादा फ्री फॉयर गेम के एडिक्शन में बच्चों को जो किरदार दिखता है। उसे वह रोल मॉडल बना लेते हैं, यही वजह है कि उनके सपने में या फिर हकीकत में भी वह उसी की तरह अपनाने लगते हैं। पेरेंट्स अगर गेम से दूरी बनाने की कोशिश करते हैं तो बच्चे चिड़चिड़ा और मानसिक रोगी हो रहे हैं। इसलिए बच्चे इंट्रोवर्ड हो रहे हैं। घर के किसी भी सदस्य से वह इंट्रेक्ट नहीं होना चाहते हैं।

सिर व गर्दन में दर्द की शिकायत

न्यूरो फिजिशियन डॉ। रितिका दीवान बताती हैं कि कोरोना महामारी और लॉकडाउन से सभी परेशान हैं। इनका प्रभाव बच्चों पर पड़ा है। बच्चे घर में कैद होकर रह गए। ऐसे कंडीशन में बच्चों के इर्द-गिर्द ऑनलाइन का जाल बुनता जा रहा है। फिजिकल एक्टिविटी खत्म हो रही है, लिहाजा बच्चे डिप्रेशन और शारीरिक समस्याओं से जूझ रहे है। उनका कहना है कि उनके पास रोजाना इस तरह के मामले आ रहे हैं। कुछ बच्चों में न्यूरो की प्रॉब्लम के कारण मस्तिष्क की नसों में सूजन आ रहे हैं, जिसके कारण सिर दर्द और गर्दन में दर्द की शिकायत आ रही है।

बच्चों के ड्रिप्रेशन के लिए पेरेंट्स हैं जिम्मेदार

जिला अस्पताल में पीडियाट्रिशियन डॉ। राजेश पांडेय ने बताया कि स्कूल बंद हैं, बच्चे घर से निकल नहीं रहे हैं। क्लास ऑनलाइन चल रही थी, लेकिन इधर वह भी बंद है। मगर बच्चे मोबाइल पर गेम खेलना जारी रखे हुए हैं। पेरेंट्स ने बच्चों को बिजी रखने के लिए मोबाइल और लैपटॉप दे दिए हैं। ऐसे में बच्चे या तो डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं या फिर किसी शारीरिक परेशानी का सामना कर रहे हैं। हमारे पास जो मामले आए, इनमें अधिकतर मामले डिप्रेशन के हैं।

क्या है लक्षण?

प्रो। अनुभूति दुबे बताती हैं कि बच्चों में डिप्रेशन के लक्षण थोड़ा अलग होते हैं। अचानक पढ़ाई से बचना, गुमसुम रहना, किसी से कम घुलना मिलना, क्लास में सवाल का जवाब जानने पर भी न देना, सोते-सोते चौंक कर उठना, चिड़चिड़ापन, गुस्सा ज्यादा करना, खेल में रूचि कम होना, एकाग्रता में कमी या अति सक्रियता इसके लक्षण हो सकते हैं।

ऐसे बचाएं अपने बच्चे को

- बच्चों के साथ बात करें, उनके साथ खेलें।

- शारीरिक एक्टिविटी केलिए प्रेरित करें।

- घर में ही योग व अन्य व्यायाम सिखाएं और करने के लिए प्रोत्साहित करें।

- मोबाइल और लैपटॉप का कम प्रयोग करने दें।

- उनके सवालों के जवाब देने का प्रयास करें, डांटे नहीं।

- बच्चों की दिनचर्या नियंत्रित रखें, देर से सोने और जागने की प्रवृत्ति न पड़ने दें।

- डिप्रेशन के लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर की सलाह लें।

बच्चों के मोबाइल और लैपटॉप से दूर रखें। इंटरनेट गेमिंग एडिक्शन से बच्चों के शारीरिक व मानसिक बीमारी तेजी के साथ बढ़ रही है। ऐसे में पेरेंट्स को अपने बच्चे के सेहत और फ्यूचर के प्रति संजीदा रहना होगा। अन्यथा इलाज के लिए हॉस्टिपल के चक्कर लगाने पड़ सकते हैं।

- प्रो। डॉ। भूपेंद्र शर्मा, एक्सपर्ट, बाल रोग विभाग, बीआरडी मेडिकल कॉलेज