- 4 करोड़ लगभग के पंडाल बनाए हैं मालियों ने

- 5 करोड़ लगभग के पंडाल बनाए हैं बाहरी कारीगरों ने

- 2500 प्रतिमाएं व पंडाल बने हैं शहर में

- 2000 पंडाल मालियों ने बनाया है

- 500 पंडाल बंगाली कारीगरों के हैं

- 5 हजार तक का सबसे सस्ता पंडाल

- 4 लाख तक का सबसे महंगा पंडाल है शहर में

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- कोलकाता से आए कलाकारों की जगह इस बार लोकल मालियों का क्रेज

- 2500 पूजा पंडालों पर दुर्गा पूजा समितियों ने दिल खोलकर किया है खर्च

GORAKHPUR: शहर में करीब 2500 प्रतिमाएं स्थापित हैं और करीब इतने ही पंडाल बने हैं। इनकी साज-सज्जा में कोई कमी न रह जाए, इसके लिए दुर्गा पूजा समितियों ने दिल खोलकर खर्च किया है। एक अनुमान के अनुसार, सिर्फ पंडालों पर 10 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। प्रतिमाओं और लाइटिंग वगैरह का खर्च अलग है। खास बात यह है कि इस बार अधिकतर पैसे यहीं के लोकल माली के हाथ लगे हैं। बंगाल के कलाकार महंगे होने के कारण कुछ ही पंडाल उनसे बनवाए गए हैं। बताते हैं कि 2500 पंडाल में से 2000 पंडाल लोकल मालियों ने ही बनाया है।

कलाकारी में भी टक्कर

लोकल मालियों ने कम खर्च में ही जो पंडाल तैयार किए हैं, वह बंगाल से आए कारीगरों द्वारा बनाए गए पंडालों को टक्कर दे रहे हैं। शहर के अधिकतर पंडालों में बंगाली कारीगरों की कलाकारी नहीं बल्कि शहर के मालियों की कारीगरी दिख रही है।

कम रेट में ज्यादा खूबसूरती

इसकी सबसे बड़ी खास बात यह है कि बंगाल से आए कलाकारों को पंडाल बनाने में समय तो काफी अधिक लगता ही है, साथ ही इसकी लागत भी काफी अधिक होती है। ऐसे में इस बार शादी-पार्टियों में डेकोरेशन का काम करने वाले माली अपने रेडीमेड सामानों के साथ पंडाल निर्माण के कारण पूरे शहर में छाए हुए हैं।

सिर्फ फेमस पंडाल ही बनाए बंगाली

पंडाल बनाने वाले कारीगरों के मुताबिक बीते कुछ वर्षो से दुर्गा पूजा आयोजन समितियों की ओर से मालियों पर अधिक भरोसा किया जा रहा है। इससे बंगाली कलाकारों को अब पहले की अपेक्षा पंडाल बनाने का काम तो काफी हुआ ही। साथ ही इसकी कम हो रही डिमांड को देखते हुए अब इस बार बंगाल से पंडाल बनाने वाले कलाकार भी कम आए हैं। हालांकि इसके बाद भी शहर के सभी फेमस दुर्गा पंडाल इस बार भी बंगाली कलाकार ही बनाए हैं।

सबसे महंगे हैं ये पंडाल

रेलवे स्टेशन

कूड़ाघाट

सिंघडि़या

बंधु सिंह पार्क

असुरन

गोलघर

मेडिकल कॉलेज

काली बाड़ी

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हम लोग जो पंडाल बनाते हैं, वह यहां के माली नहीं बना सकते। हम पंडाल के माध्यम से देश के प्रसिद्ध स्थलों की झलक दिखाते हैं इस कारण पंडाल में खर्च अधिक होता है। माली सस्ता में काम कर देते हैं, इसलिए अब हम लोगों को पहले से कम काम मिल रहा है लेकिन तब भी प्रमुख पंडाल हम लोग ही बनाते हैं।

प्रोवीर विश्वास, बंगाली कारीगर

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हम लोगों के काम में बांस-बल्ली का कोई काम नहीं होता। लोहे के ट्रश और पाइप पर कपड़ों और फूलों से हम लोग पंडाल सजा रहे हैं। साथ ही इसकी खूबसूरती और अधिक बढ़ाने के लिए इसमें फाइवर के रेडीमेड आईटम लग जाते हैं। हम लोगों का सबसे महंगा पंडाल भी 50 हजार तक हो जाएगा जबकि उसकी खूबसूरती भी होगी।

- सुजीत, माली