गोरखपुर (ब्यूरो)।यह सभी सॉफ्टवेयर रेड मिर्ची, रीयल मैैंगो, एनएमएस, डेल्टा, ब्लैक-टीएस, ऑरेंज और ब्लैक बोल्ट हैैं, जो रेलवे के साइबर सेल के लिए चैलेंज बने हुए हैैं। इन सॉफ्टवेयर के सिडिंकेट को तोडऩे व तत्काल टिकटों के सौदागरों पर नकेल कसने के लिए साइबर सेल को एक्टिव किया गया है। इसके लिए इनके टेलीग्राम एप्पस के जरिए पकडऩे की रणनीति तैयार की है।

सितंबर 2023 तक बढ़ जाएगी टिकटों की स्पीड

बता दें, आईआरसीटीसी की वेबसाइट पर टिकट चंद सेकेंड लेट बनने से हैकर्स अपने पर्सनल आईडी के जरिए तत्काल टिकटों को निकालने में सफल हो जाते हैैं। लेकिन इस बार के रेल बजट में 22 सितंबर 2023 तक इंडियन रेलवे की वेबसाइट, नेटवर्किंग के आईटी को मजबूत करने का फैसला किया है। टिकटिंग के इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए 25 हजार प्रति मिनट बनाए जाने पर हाई टेक्नोलाजी वाले अपटेडेट साइट अब दो लाख 25 हजार ई-टिकट प्रति मिनट निकाल सकेंगे। रेलवे की साइबर सेल ने साइबर अटैकर्स को ट्रेस करने के लिए सभी जगहों के सर्वर पर निगाहें गड़ाई हैैं। सर्वर पर प्रतिबंधित सॉफ्वेयर के इस्तेमाल करते ही वह ट्रेस हो जाएंगे।

कई शहरों में फैला है जाल

आरपीएफ साइबर सेल के एक सीनियर आफिसर ने बताया कि रेड मिर्ची, रीयल मैैंगो, डेल्टा, ब्लैक-टीएस, ऑरेंज समेत छह तरह के सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर आईआरसीटीसी की साइट को धीमा कर देते हैं। फिर एक साथ मन मुताबिक तत्काल टिकट निकाल लेते हैं। तत्काल टिकट निकालने के बाद मनमानी कीमत पर यात्रियों को बेच देते हैं। एनई रेलवे हेडक्वार्टर समेत शहरों मेंं ऐसे गिरोह सक्रिय हैं। वहीं साइबर एक्सपर्ट की मानें तो शातिरों द्वारा किए गए इस क्राइम को डीओस यानी डिनाएल ऑफ सर्विस अटैक और डीडीओएस यानी डिस्ट्रीब्यूशन डिनाएल ऑफ सर्विस अटैक भी कहा जाता है।

कैसे करते हैैं तत्काल टिकटों का खेल?

- साइबर क्रिमिनल्स का यह गिरोह एक ही इंटरनेट प्रोटोकॉल एड्रेस से एक साथ कई सिस्टम मेें कई निक नेम से खोल लेता है।

- फिर ऑनलाइन खरीदे गए रेड मिर्ची, नियो व अन्य सॉफ्टवेयर की मदद से लॉगइन कर तत्काल टिकट बनाता है।

- एक साथ यह गिरोह सॉफ्टवेयर की क्षमता के आधार पर 6 से 50 से अधिक टिकट चंद मिनट में बना लेता है।

- जैसे ही इतने टिकट बनने का आईआरसीटीसी की साइट पर लोड जाता है, वह धीमा हो जाता है।

- इससे आईआरसीटीसी से तत्काल टिकट तेजी से नहीं बन पाता है और सुबह से कतार में खड़े लोग वापस हो जाते हैं।

ढाई हजार से ढाई लाख तक का सॉफ्टवेयर

- यह सॉफ्टवेयर ढाई हजार से ढाई लाख में आता है।

- इसकी वैलिडिटी एक सप्ताह से 55 दिन से लेकर तीन माह की होती है, जितनी रकम खर्च कर इस सॉफ्टवेयर को खरीदा जाता है, उतनी इसकी वैलिडिटी और टिकट बनाने की क्षमता होती है।

- इन शातिरों के पास फास्ट इंटरनेट होता है। तत्काल टिकट के नाम पर डबल रकम वसूली जाती है।

तत्काल ई-टिकटों के सौदागरों को पकडऩे के लिए साइबर सेल की टीम इनके सिंडिकेट को तोडऩे के लिए काम कर रही है। जो सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करते हैैं। उन साफ्टवेयर से भी एडवांस वर्जन का सॉफ्टवेयर तैयार होगा।

पंकज कुमार सिंह, सीपीआरओ, एनई रेलवे