गोरखपुर का दिल मत देखो
मैं गोरखपुर की सबसे बड़ी शान गोरखनाथ मंदिर हूं। जो भी सैलानी पूर्वांचल की दहलीज पर कदम रखता था, वह मेरी खोजखबर लेने जरूर आता था। मैं बहुत समृद्घ और विशाल हूं। यह सुनकर फ्राइडे को वल्र्ड टूरिज्म डे पर हमने भी सोचा कि चलो मंदिर का हाल चाल ले लें, लेकिन यह क्या? यहां तो एक भी सैलानी नहीं है? हैं तो कुछ स्टूडेंट्स, कपल्स और लोकल के फैमिली मैंबर्स। हमने पूछा ये क्या हो गया? कहां गए सैलानी? इस पर पलटकर आवाज आई, अब कोई नहीं आता। क्यों? अरे चारों तरफ अतिक्रमण, सड़कों के गड्ढ़े तुम्हें नहीं दिखाई दे रहे हैं क्या? इन परेशानियों के बीच गुजरकर कौन यहां आना चाहेगा।

भूल गए गीता
गोरखपुर का नाम आए और गीता प्रेस के बारे में बात न हो यह असंभव है। हमने भी सोचा चलो आज लगे हाथ गीता प्रेस के भी हाल चाल ले लें। आधे घंटे तक जाम में फंसने के बाद हम गीता प्रेस पहुंचे। अरे यह क्या, यहां तो सन्नाटा पसरा हुआ है। पूछने पर हमें पता चला कि आखिरी बार यहां चार महीने पहले दो सैलानी आए थे। अब यहां कोई आता जाता नहीं। इंटरनेशनल लेवल पर पहचाने जाने वाले गीता प्रेस की यह हालत कैसे हो गई? इस पर जवाब मिला, वह दिन लद गए साहब। अब तो हम भी तरसते हैं कि कोई विदेशी चेहरा हमें देखने को मिले। क्यों और कैसे हो गया यह सब? आप तो ऐसे अनजान बन रहे हैं जैसे कुछ पता नहीं? क्या आपको यहां आने में कोई दिक्कत नहीं हुई? बस, यह बात कान में पहुंचते ही हमारे दिमाग में ट्रैफिक जाम के सारे सीन घूम गए। संकरी गलियां, चारों तरफ अतिक्रमण। यह सब हमें दो सेकेंड में याद आ गया। अब हमें किसी जवाब की जरूरत नहीं थी। ऐसे में तो यह टूरिस्ट प्लेस नहीं रह जाएगा? सही कहा आपने, इन संकरी सड़कों ने मेरी छवि को और संकरा कर दिया है, जो इतिहास के पन्नों में ही झांकने पर दिखाई देता है? जाइए बाबू, अब आपके लिए भी यहां कुछ नहीं रखा है? इन तंग गलियों केेबीच जब अपने ही यहां आने से कतराते हैं तो विदेशी क्या आएंगे?

आखिर क्यों नहीं आना चाहते टूरिस्ट?
जब हमने गोरखपुर से टूरिस्ट्स के दूर होने की बात पूछी तो जवाब मिला कितने दर्द बताए जनाब? जहां छुएंगे वहीं से कराह निकलेगी। अरे, फिर भी ऐसा क्या हुआ? जवाब मिला मेरे 5 जानी दुश्मनों ने आज मेरी हालत बदतर कर दी है।

1.फ्लाइट का न होना
पहले जो भी सैलानी कुशीनगर, अयोध्या और काठमांडू आता था, वह पहले फ्लाइट से दिल्ली आता, फिर गोरखपुर और इसके बाद अपना कारवां आगे बढ़ाता था। समय के साथ मेरे सभी भाई डेवलप हो गए, लेकिन मैं पीछे ही रहा। मेरी धरती आज भी इंटरनेशनल फ्लाइट के लिए तरस रही हैं। हर दिन केवल एक फ्लाइट चलती है, ऐसे में क्या टूरिस्ट आएंगे?

2. सिटी का अविकसित होना
टूरिस्ट्स का मन खिन्न होने के पीछे सबसे बड़ा कारण है मेरा अविकसित होना। लाजमी भी है। मैं विकास की रेस में कैसे भागंू, जब मेरे पांव में भ्रष्टाचार का पोलियो हो गया है। सड़क, बिजली, पानी कुछ भी तो नहीं है, जिसे देखकर कोई भी बाहरी व्यक्ति आकर्षित हो। जो भी यहां आता है केवल मेरी बदहाल पर मुझे ही कोसता है?

3. फाइव स्टार होटल न होना
लोग बड़े गर्व से मेरा नाम लेते हैं। अरे, गोरखपुर तो एक देश और प्रदेश से जोडऩे वाली सिटी है। लेकिन, शर्म से जब चेहरा झुक जाता है, जब कोई यह सवाल पूछ लेता है कि यहां कोई फाइव स्टार होटल है क्या? वहींमेरे छोटे भाई के विकास को देखिए। आज वहां फाइव स्टार होटल से लेकर सारी इंटरनेशनल सुविधाएं है। ऐसे में आप ही बताइए कौन आएगा मेरे पास?  

4. इंटरनेशनल टूरिस्ट प्लेस का न होना
मेरे गोद में कई ऐसे रत्न है जिन्हें इंटरनेशनल पहचान मिल सकती है। लेकिन मेरे अपनों ने ही कभी इन रत्नों की कद्र नहीं जानी। तभी तो आज यह हालत हो चुकी है कि मेरा नाम किसी भी इंटरनेशनल टूरिस्ट प्लेस के तौर पर शुमार नहीं है। जबकि गोरखनाथ मंदिर, गीता प्रेस, रामगढ़ ताल, कुसम्ही जंगल जैसे रमणीक स्थल डेवलप किए जा सकते हैं।

5. ट्रेन हैं, पर सड़कें नहीं
देश के हर कोने से जोडऩे के लिए कई ट्रेनें मेरे घर तक आती हैं। लेकिन, जैसे ही कोई बाहरी व्यक्ति रेलवे स्टेशन से बाहर निकल मुझसे मिलने आता है, वैसे ही वह मेरी बदसूरती देख वापस लौट जाता है। मेरी राहों में इतने गड्ढ़े हैं कि अच्छे खासे इंसान की पसली जवाब दे जाएं?

इतनी धरोहरों के बावजूद बदहाली
अगर मेरे घर के नेता और अधिकारी चाहते तो मैं एक फेमस इंटरेनशनल टूरिस्ट प्लेस बन सकता था। आज मैं आपको बताता हूं कि मेरी झोली में कितने नायाब हीरे छुपे हुए हैं। जिन्हें मेरे अपने कोयला समझे बैठे हुए हैं।

1. साहित्यकारों की कर्मभूमि
मुंशी प्रेमचंद्र और फिराक गोरखपुरी की कर्मभूमि था मैं। मेरी गोद में ही इन महान शख्सियतों ने अपनी लेखनी को एक मुकाम दिया। लेकिन, आज इन महान साहित्यकारों के नाम पर बस एक बदहाल लाइब्रेरी है। जबकि अगर इनके नाम से बड़ी लाइब्रेरी के अलावा उनसे जुड़े यादों और पहलुओं को एक जगह पर संजोया जाता तो साहित्यप्रेमियों का तांता लग जाता।

2. हम भूल गए कुर्बानी
देश को आजादी दिलाने की जब भी बात आती है तो राम प्रसाद बिस्मिल का नाम सबसे ऊपर लिया जाता है। आपको भी पता होगा कि बिस्मिल को फांसी गोरखपुर में दी गई थी। अगर इस पावन जगह को एक पर्यटक स्थल बना दिया जाए तो यहां सैलानियों का हुजूम उमड़ पड़ेगा।

3. कुसम्ही जैसा मजा कहीं नहीं
मेरे रोमांचक रत्न का नाम है कुसम्ही जंगल। लगभग सौ साल पुराने इस जंगल की चौड़ाई 5 किलोमीटर और लंबाई 7 किलोमीटर हैं। अगर शासन इसमें पर्यटन के लिए जंगल कैंप बना दें और जंगल के अंदर ही रुकने ठहरने के लिए हट बना दें तो टूरिस्टों को लुभाने का एक अच्छा माध्यम तैयार हो सकता है।

4. धार्मिक धरोहर भी है
गोरखपुर में एक बड़ी धार्मिक धरोहर है, जिसके बारे में देश-विदेश में लोग जानते ही नहीं है। यहां एक 12वीं शताब्दी में बनाया गया विष्णु टेंपल हैं। इस टेंपल की खासियत यह है कि विष्णु भगवान की मूर्ति 'कसौटी' स्टोन से बनी है। इसके अलावा यह भी मान्यता है कि सूर्य भगवान की पहली किरण विष्णु जी के चरणों में आती है।

5. इमामबाड़ा देखो
गोरखपुर में लखनऊ जैसा इमामबाड़ा भी है। इसमें 18वीं शताब्दी की एक दरगाह है, जो सैयद रोशन अली ने बनवाई गई थी। ये अपने गोल्डेन और सिल्वर ताजियों के लिए फेमस है। अगर इसे पर्यटन स्थल के तौर पर डेवलप किया जाए तो यहां भी सैलानियों की अच्छी खासी भीड़ देखने को मिल सकती है।

दूसरों को क्या संवारे जब खुद बदहाल हैं
गोरखपुर के टूरिज्म डिपार्टमेंट की हालत खुद बहुत खस्ता है। सर्किट हाउस रोड पर बने सात एकड़ में टूरिज्म बंगला पूरी तरह से भूत बंगले में तब्दील हो गया है। इसे सन् 2002 में टूरिज्म डिपार्टमेंट की तरफ से बनाया गया था। इसकी लागत करीब दो करोड़ थी, लेकिन यहां आज भी कोई टूरिस्ट नहीं रुकता है। केवल सांप बिच्छू का निवास स्थल बनकर रह गया है। यही वजह है कि इसे आज भी चालू नहीं किया जा सका है। टूरिज्म डिपार्टमेंट इसके संचालन के लिए टूरिज्म मिनिस्टर से करीब एक करोड़ रुपए की डिमांड की गई है।

रामगढ़ताल के पास होटल बनेगा
टूरिज्म डिपार्टमेंट के डिप्टी डॉयरेक्टर पीके सिंह ने बताया कि रामगढ़ताल के पास टूरिस्ट्स के लिए नौकायान और होटल की स्थापना की जानी है। नौकायान बनाए जाने के लिए एक करोड़ दस लाख की लागत लगेगी। इसके अलावा बोटिंग के लिए भी बजट निर्धारित है। इसके निर्माण कार्य के लिए बजट की स्वीकृति हो गई है।


आखिर कब पूरे होंगे ड्रीम प्रोजेक्ट
ड्रीम प्रोजेक्ट 1:  चिडिय़ाघर
गोरखपुर में इंटरनेशनल लेवल का जू बनाने का काम अधूरा है। मई 2011 में फॉरेस्ट मिनिस्टर फतेह बहादुर सिंह के कार्यकाल में पांच किलोमीटर के दायरे में बनने वाले इस चिडिय़ाघर का काम मई 2016 में पूरा होना है। करीब 101 करोड़ के इस प्रोजेक्ट में 125 एकड़ की भूमि में जू बनना है, लेकिन जो हाल है उससे तो लग रहा है कि यह जू 2020 तक नहीं बन पाएगा।

ड्रीम प्रोजेक्ट 2:  झील बनी तो सुनाई पड़ेगी कलरव
गोरखपुर की खूबसूरती रामगढ़ताल को सिटी के सीवरेज ने बदसूरत बना दिया है। लेकिन, यह एक बार फिर खूबसूरत होगा। इसके लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से करीब 197 करोड़ का बजट पास हो चुका है। हाल ही में शासन ने सवा सात करोड़ रुपए का फंड भी जारी किया है। इससे ताल का पॉल्युशन रोका जाएगा और रामगढ़ताल को एक टूरिस्ट प्लेस बनाया जाएगा।

गोरखपुर पूर्वी उत्तर प्रदेश का एक बड़ा पर्यटन स्थल है। कुशीनगर में चाहे इंटरनेशनल एयरपोर्ट बन जाए, लेकिन अब भी किसी सैलानी को सारनाथ और लुंबनी जाने के लिए गोरखपुर का ही रास्ता चुनना होगा। यह बात सही है कि विदेशी पर्यटकों का रुझान कम हुआ है और इसके लिए राज्य सरकार दोषी है। सड़कों की दुर्दशा देखकर पर्यटक यहां आने से कतराते हैं। हालांकि आस्था से जुड़े पर्यटकों को किसी भी अव्यवस्था से ज्यादा लेना देना नहीं होता है। मैंने विदेशी पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए रामगढ़ताल के सौंदर्यीकरण पर जोर दिया। लेकिन, वहां भी लापरवाही के कारण कार्य अधूरा है। मेरा प्रयास है कि जल्द ही गोरखपुर से कलकत्ता, मुंबई और काठमांडू को जोडऩे वाली फ्लाइट शुरू हो।
'योगी आदित्यनाथ, सदर सांसद'

हम इंटरनेशनल टूरिज्म को बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयासरत है। इसी तारतम्य में रामगढ़ताल के बड़े प्रोजेक्ट पर भी स्वीकृति मिल गई है। बाकी इंटरनेशनल टूरिस्ट्स को कोई असुविधा न हो इसके लिए हम अवेयरनेस प्रोग्राम चलाते रहते हैं। यह सही है कि गोरखपुर सिटी में कोई भी इंटरनेशनल टूरिस्ट प्लेस नहीं है। लेकिन, अब इसके लिए भी में केंद्र सरकार को एक प्रोजेक्ट बनाकर भेजूंगा।
'पीके सिंह, डिप्टी डायरेक्टर, टूरिज्म डिपार्टमेंट,गोरखपुर रीजन'

report by : ashwani.pandey@inext.co.in

गोरखपुर का दिल मत देखो
मैं गोरखपुर की सबसे बड़ी शान गोरखनाथ मंदिर हूं। जो भी सैलानी पूर्वांचल की दहलीज पर कदम रखता था, वह मेरी खोजखबर लेने जरूर आता था। मैं बहुत समृद्घ और विशाल हूं। यह सुनकर फ्राइडे को वल्र्ड टूरिज्म डे पर हमने भी सोचा कि चलो मंदिर का हाल चाल ले लें, लेकिन यह क्या? यहां तो एक भी सैलानी नहीं है? हैं तो कुछ स्टूडेंट्स, कपल्स और लोकल के फैमिली मैंबर्स। हमने पूछा ये क्या हो गया? कहां गए सैलानी? इस पर पलटकर आवाज आई, अब कोई नहीं आता। क्यों? अरे चारों तरफ अतिक्रमण, सड़कों के गड्ढ़े तुम्हें नहीं दिखाई दे रहे हैं क्या? इन परेशानियों के बीच गुजरकर कौन यहां आना चाहेगा।

भूल गए गीता
गोरखपुर का नाम आए और गीता प्रेस के बारे में बात न हो यह असंभव है। हमने भी सोचा चलो आज लगे हाथ गीता प्रेस के भी हाल चाल ले लें। आधे घंटे तक जाम में फंसने के बाद हम गीता प्रेस पहुंचे। अरे यह क्या, यहां तो सन्नाटा पसरा हुआ है। पूछने पर हमें पता चला कि आखिरी बार यहां चार महीने पहले दो सैलानी आए थे। अब यहां कोई आता जाता नहीं। इंटरनेशनल लेवल पर पहचाने जाने वाले गीता प्रेस की यह हालत कैसे हो गई? इस पर जवाब मिला, वह दिन लद गए साहब। अब तो हम भी तरसते हैं कि कोई विदेशी चेहरा हमें देखने को मिले। क्यों और कैसे हो गया यह सब? आप तो ऐसे अनजान बन रहे हैं जैसे कुछ पता नहीं? क्या आपको यहां आने में कोई दिक्कत नहीं हुई? बस, यह बात कान में पहुंचते ही हमारे दिमाग में ट्रैफिक जाम के सारे सीन घूम गए। संकरी गलियां, चारों तरफ अतिक्रमण। यह सब हमें दो सेकेंड में याद आ गया। अब हमें किसी जवाब की जरूरत नहीं थी। ऐसे में तो यह टूरिस्ट प्लेस नहीं रह जाएगा? सही कहा आपने, इन संकरी सड़कों ने मेरी छवि को और संकरा कर दिया है, जो इतिहास के पन्नों में ही झांकने पर दिखाई देता है? जाइए बाबू, अब आपके लिए भी यहां कुछ नहीं रखा है? इन तंग गलियों केेबीच जब अपने ही यहां आने से कतराते हैं तो विदेशी क्या आएंगे?

आखिर क्यों नहीं आना चाहते टूरिस्ट?

जब हमने गोरखपुर से टूरिस्ट्स के दूर होने की बात पूछी तो जवाब मिला कितने दर्द बताए जनाब? जहां छुएंगे वहीं से कराह निकलेगी। अरे, फिर भी ऐसा क्या हुआ? जवाब मिला मेरे 5 जानी दुश्मनों ने आज मेरी हालत बदतर कर दी है।

1.फ्लाइट का न होना
पहले जो भी सैलानी कुशीनगर, अयोध्या और काठमांडू आता था, वह पहले फ्लाइट से दिल्ली आता, फिर गोरखपुर और इसके बाद अपना कारवां आगे बढ़ाता था। समय के साथ मेरे सभी भाई डेवलप हो गए, लेकिन मैं पीछे ही रहा। मेरी धरती आज भी इंटरनेशनल फ्लाइट के लिए तरस रही हैं। हर दिन केवल एक फ्लाइट चलती है, ऐसे में क्या टूरिस्ट आएंगे?

2. सिटी का अविकसित होना
टूरिस्ट्स का मन खिन्न होने के पीछे सबसे बड़ा कारण है मेरा अविकसित होना। लाजमी भी है। मैं विकास की रेस में कैसे भागंू, जब मेरे पांव में भ्रष्टाचार का पोलियो हो गया है। सड़क, बिजली, पानी कुछ भी तो नहीं है, जिसे देखकर कोई भी बाहरी व्यक्ति आकर्षित हो। जो भी यहां आता है केवल मेरी बदहाल पर मुझे ही कोसता है?

3. फाइव स्टार होटल न होना
लोग बड़े गर्व से मेरा नाम लेते हैं। अरे, गोरखपुर तो एक देश और प्रदेश से जोडऩे वाली सिटी है। लेकिन, शर्म से जब चेहरा झुक जाता है, जब कोई यह सवाल पूछ लेता है कि यहां कोई फाइव स्टार होटल है क्या? वहींमेरे छोटे भाई के विकास को देखिए। आज वहां फाइव स्टार होटल से लेकर सारी इंटरनेशनल सुविधाएं है। ऐसे में आप ही बताइए कौन आएगा मेरे पास?  

4. इंटरनेशनल टूरिस्ट प्लेस का न होना
मेरे गोद में कई ऐसे रत्न है जिन्हें इंटरनेशनल पहचान मिल सकती है। लेकिन मेरे अपनों ने ही कभी इन रत्नों की कद्र नहीं जानी। तभी तो आज यह हालत हो चुकी है कि मेरा नाम किसी भी इंटरनेशनल टूरिस्ट प्लेस के तौर पर शुमार नहीं है। जबकि गोरखनाथ मंदिर, गीता प्रेस, रामगढ़ ताल, कुसम्ही जंगल जैसे रमणीक स्थल डेवलप किए जा सकते हैं।

5. ट्रेन हैं, पर सड़कें नहीं
देश के हर कोने से जोडऩे के लिए कई ट्रेनें मेरे घर तक आती हैं। लेकिन, जैसे ही कोई बाहरी व्यक्ति रेलवे स्टेशन से बाहर निकल मुझसे मिलने आता है, वैसे ही वह मेरी बदसूरती देख वापस लौट जाता है। मेरी राहों में इतने गड्ढ़े हैं कि अच्छे खासे इंसान की पसली जवाब दे जाएं?

इतनी धरोहरों के बावजूद बदहाली
अगर मेरे घर के नेता और अधिकारी चाहते तो मैं एक फेमस इंटरेनशनल टूरिस्ट प्लेस बन सकता था। आज मैं आपको बताता हूं कि मेरी झोली में कितने नायाब हीरे छुपे हुए हैं। जिन्हें मेरे अपने कोयला समझे बैठे हुए हैं।

1. साहित्यकारों की कर्मभूमि
मुंशी प्रेमचंद्र और फिराक गोरखपुरी की कर्मभूमि था मैं। मेरी गोद में ही इन महान शख्सियतों ने अपनी लेखनी को एक मुकाम दिया। लेकिन, आज इन महान साहित्यकारों के नाम पर बस एक बदहाल लाइब्रेरी है। जबकि अगर इनके नाम से बड़ी लाइब्रेरी के अलावा उनसे जुड़े यादों और पहलुओं को एक जगह पर संजोया जाता तो साहित्यप्रेमियों का तांता लग जाता।

2. हम भूल गए कुर्बानी
देश को आजादी दिलाने की जब भी बात आती है तो राम प्रसाद बिस्मिल का नाम सबसे ऊपर लिया जाता है। आपको भी पता होगा कि बिस्मिल को फांसी गोरखपुर में दी गई थी। अगर इस पावन जगह को एक पर्यटक स्थल बना दिया जाए तो यहां सैलानियों का हुजूम उमड़ पड़ेगा।

3. कुसम्ही जैसा मजा कहीं नहीं
मेरे रोमांचक रत्न का नाम है कुसम्ही जंगल। लगभग सौ साल पुराने इस जंगल की चौड़ाई 5 किलोमीटर और लंबाई 7 किलोमीटर हैं। अगर शासन इसमें पर्यटन के लिए जंगल कैंप बना दें और जंगल के अंदर ही रुकने ठहरने के लिए हट बना दें तो टूरिस्टों को लुभाने का एक अच्छा माध्यम तैयार हो सकता है।

4. धार्मिक धरोहर भी है
गोरखपुर में एक बड़ी धार्मिक धरोहर है, जिसके बारे में देश-विदेश में लोग जानते ही नहीं है। यहां एक 12वीं शताब्दी में बनाया गया विष्णु टेंपल हैं। इस टेंपल की खासियत यह है कि विष्णु भगवान की मूर्ति 'कसौटी' स्टोन से बनी है। इसके अलावा यह भी मान्यता है कि सूर्य भगवान की पहली किरण विष्णु जी के चरणों में आती है।

5. इमामबाड़ा देखो
गोरखपुर में लखनऊ जैसा इमामबाड़ा भी है। इसमें 18वीं शताब्दी की एक दरगाह है, जो सैयद रोशन अली ने बनवाई गई थी। ये अपने गोल्डेन और सिल्वर ताजियों के लिए फेमस है। अगर इसे पर्यटन स्थल के तौर पर डेवलप किया जाए तो यहां भी सैलानियों की अच्छी खासी भीड़ देखने को मिल सकती है।

दूसरों को क्या संवारे जब खुद बदहाल हैं
गोरखपुर के टूरिज्म डिपार्टमेंट की हालत खुद बहुत खस्ता है। सर्किट हाउस रोड पर बने सात एकड़ में टूरिज्म बंगला पूरी तरह से भूत बंगले में तब्दील हो गया है। इसे सन् 2002 में टूरिज्म डिपार्टमेंट की तरफ से बनाया गया था। इसकी लागत करीब दो करोड़ थी, लेकिन यहां आज भी कोई टूरिस्ट नहीं रुकता है। केवल सांप बिच्छू का निवास स्थल बनकर रह गया है। यही वजह है कि इसे आज भी चालू नहीं किया जा सका है। टूरिज्म डिपार्टमेंट इसके संचालन के लिए टूरिज्म मिनिस्टर से करीब एक करोड़ रुपए की डिमांड की गई है।
रामगढ़ताल के पास होटल बनेगा
टूरिज्म डिपार्टमेंट के डिप्टी डॉयरेक्टर पीके सिंह ने बताया कि रामगढ़ताल के पास टूरिस्ट्स के लिए नौकायान और होटल की स्थापना की जानी है। नौकायान बनाए जाने के लिए एक करोड़ दस लाख की लागत लगेगी। इसके अलावा बोटिंग के लिए भी बजट निर्धारित है। इसके निर्माण कार्य के लिए बजट की स्वीकृति हो गई है।


आखिर कब पूरे होंगे ड्रीम प्रोजेक्ट
ड्रीम प्रोजेक्ट 1:  चिडिय़ाघर
गोरखपुर में इंटरनेशनल लेवल का जू बनाने का काम अधूरा है। मई 2011 में फॉरेस्ट मिनिस्टर फतेह बहादुर सिंह के कार्यकाल में पांच किलोमीटर के दायरे में बनने वाले इस चिडिय़ाघर का काम मई 2016 में पूरा होना है। करीब 101 करोड़ के इस प्रोजेक्ट में 125 एकड़ की भूमि में जू बनना है, लेकिन जो हाल है उससे तो लग रहा है कि यह जू 2020 तक नहीं बन पाएगा।

ड्रीम प्रोजेक्ट 2:  झील बनी तो सुनाई पड़ेगी कलरव
गोरखपुर की खूबसूरती रामगढ़ताल को सिटी के सीवरेज ने बदसूरत बना दिया है। लेकिन, यह एक बार फिर खूबसूरत होगा। इसके लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से करीब 197 करोड़ का बजट पास हो चुका है। हाल ही में शासन ने सवा सात करोड़ रुपए का फंड भी जारी किया है। इससे ताल का पॉल्युशन रोका जाएगा और रामगढ़ताल को एक टूरिस्ट प्लेस बनाया जाएगा।

गोरखपुर पूर्वी उत्तर प्रदेश का एक बड़ा पर्यटन स्थल है। कुशीनगर में चाहे इंटरनेशनल एयरपोर्ट बन जाए, लेकिन अब भी किसी सैलानी को सारनाथ और लुंबनी जाने के लिए गोरखपुर का ही रास्ता चुनना होगा। यह बात सही है कि विदेशी पर्यटकों का रुझान कम हुआ है और इसके लिए राज्य सरकार दोषी है। सड़कों की दुर्दशा देखकर पर्यटक यहां आने से कतराते हैं। हालांकि आस्था से जुड़े पर्यटकों को किसी भी अव्यवस्था से ज्यादा लेना देना नहीं होता है। मैंने विदेशी पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए रामगढ़ताल के सौंदर्यीकरण पर जोर दिया। लेकिन, वहां भी लापरवाही के कारण कार्य अधूरा है। मेरा प्रयास है कि जल्द ही गोरखपुर से कलकत्ता, मुंबई और काठमांडू को जोडऩे वाली फ्लाइट शुरू हो।
योगी आदित्यनाथ, सदर सांसद

हम इंटरनेशनल टूरिज्म को बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयासरत है। इसी तारतम्य में रामगढ़ताल के बड़े प्रोजेक्ट पर भी स्वीकृति मिल गई है। बाकी इंटरनेशनल टूरिस्ट्स को कोई असुविधा न हो इसके लिए हम अवेयरनेस प्रोग्राम चलाते रहते हैं। यह सही है कि गोरखपुर सिटी में कोई भी इंटरनेशनल टूरिस्ट प्लेस नहीं है। लेकिन, अब इसके लिए भी में केंद्र सरकार को एक प्रोजेक्ट बनाकर भेजूंगा।
पीके सिंह, डिप्टी डायरेक्टर, टूरिज्म डिपार्टमेंट,गोरखपुर रीजन