-ओलंपियन और एशियाड गोल्ड मेडलिस्ट योगेश्वर दत्त ने कहा

-उत्तर प्रदेश केसरी कुश्ती प्रतियोगिता में शामिल होने पहली बार आए गोरखपुर

-यूपी में सुविधा की कमी और फ्यूचर की चिंता खत्म कर रही खिलाडियों और खेल को

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GORAKHPUR: यूपी में टैलेंट की कमी नहीं है। बस कमी है तो ईमानदार खेल नीति की। यहां ट्रेन्ड होने से पहले ही खिलाड़ी पर मेडल जीतने दबाव पड़ना शुरू हो जाता है। सुविधा के नाम पर भले कुछ न हो, मगर मेडल की बराबरी उस खिलाड़ी से की जाती है, जिसकी स्टार्टिग बेस ही एक्सपीरियंस्ड कोच की देखरेख में हुई हो। ऐसे में खिलाड़ी प्रेशर में आकर अपने टैलेंट का सही यूज नहींकर पाते हैं। यह बातें सीनियर स्टेट रेसलिंग चैंपियनशिप का हिस्सा बनने पहुंचे ओलंपियन और एशियाड गोल्ड मेडलिस्ट योगेश्वर दत्त ने कहीं। उन्होंने कहा कि यूपी में टैलेंट की कोई कमी नहींहै, लेकिन हरियाणा की तरह सुविधाएं नहींहै। यही कारण है कि यूपी के पहलवान उस मुकाम तक नहींपहुंच पाते जिसके वे असल हकदार होते हैं। टाउनहाल स्थित लेट भारत भीम जनार्दन सिंह उत्तर प्रदेश केसरी के संयोजक आदित्य प्रताप सिंह के घर पहुंचे योगेश्वर दत्त ने अपने बिजी शेड्यूल से कुछ वक्त निकाल कर आई नेक्स्ट के साथ कुश्ती से जुड़ी कुछ पहलुओं पर चर्चा की।

गोरखपुर पहली बार आए हैं। कैसा लग रहा है?

-गोरखपुर जरूर पहली बार आया हूं। मगर यहां बिल्कुल अपना सा लग रहा है। क्योंकि यहां कुश्ती का जबरदस्त क्रेज है। यहां के कई पहलवान नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर अपनी पहचान बना चुके हैं। सिटी के चन्द्रविजय सिंह इंडियन टीम के कोच भी हैं।

एशियाड में गोल्ड मेडल का ख्8 साल का लंबा इंतजार आपने खत्म कर दिया। क्या कोई खास प्लानिंग की थी?

-सुशील कुमार ने ओलंपिक में दो मेडल और व‌र्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीत कर कुश्ती को नया आयाम दिया। सिर्फ एशियाड में गोल्ड मेडल का लंबे समय से इंतजार था। ख्8 साल के लंबे इंतजार के बाद गोल्ड मेडल आया। मैंने इसके लिए खास तैयारी की थी।

फुटबाल, क्रिकेट, कबड्डी की तरह कुश्ती में भी लीग होनी चाहिए?

-बिल्कुल। क्योंकि हर पहलवान इंटरनेशनल टूर्नामेंट में नहीं खेल सकता। लीग से ऐसे कई पहलवानों को मौका मिलेगा, जिनमें टैलेंट की कमी नहीं है। इससे नए पहलवानों में क्रेज भी बढ़ेगा।

किस एज में प्रैक्टिस शुरू करनी चाहिए?

-पहलवान बनने के लिए सात या आठ साल की उम्र से प्रैक्टिस स्टार्ट कर देनी चाहिए। वैसे अगर क्फ् या क्ब् साल की उम्र में भी सीखना शुरू किया जाए तो अच्छा पहलवान बना जा सकता। छोटी एज में दांव-पेच सीखना और बॉडी को मजबूत करना आसान होता है।

ओलंपिक में मेडल जीतने के बाद भी कुश्ती को अभी वह पहचान नहीं मिली है, क्यों?

-ऐसा नहीं है। कुश्ती को अब हर खेल की तरह बराबरी का दर्जा मिल रहा है। जो पहलवान नेशनल लेवल पर मेडल जीतते हैं, उन्हें जॉब मिलने के साथ आगे की तैयारी भी कराई जाती है। हालांकि इससे पहले वाले लेवल के खिलाडि़यों को मशक्कत करनी पड़ती है।

ग्रीको रोमन का क्रेज अभी काफी कम है। क्यों?

-इंडिया में अभी ग्रीको रोमन को लोग फ्री स्टाइल की अपेक्षा कम पसंद करते हैं। मगर व‌र्ल्ड में फ्री स्टाइल की तरह ही ग्रीको रोमन भी काफी पसंद किया जाता है। इंडिया में ग्रीको रोमन के पहलवान भी कम हैं।

क्या ग्रीको रोमन कठिन है या फिर टेक्निकल अधिक है?

-ऐसा कुछ नहीं है। बस इंडिया में पहलवान बनने की इच्छा रखने वाला हर बच्चा फ्री स्टाइल सीखना चाहता है। कुछ साल बाद उसके दांव-पेच देखने के बाद पहलवान फ्री स्टाइल से ग्रीको रोमन में जाता है। अगर फ्री स्टाइल की तरह ग्रीको रोमन में भी पहलवान शुरू से प्रैक्टिस करें, तो इसका स्तर काफी सुधरेगा।

क्या वजह है कि टैलेंट होने के बाद भी खिलाड़ी उस लेवल तक नहीं पहुंचते?

-यूपी में टैलेंट की कमी नहीं है। मगर यहां की खेल नीति खिलाडि़यों की दुश्मन है। यूपी में न तो कुश्ती के लिए पूरी सुविधाएं हैं और न ही फ्यूचर सेफ है। हरियाणा में कुश्ती का स्तर सबसे अच्छा है। क्योंकि वहां के हर गांव के अखाड़े में मैट लगा है। जबकि यूपी में गांव के अखाड़ा तो दूर कई जिलों में मैट तक की सुविधा नहीं है। वहीं फ्यूचर भी यहां सेफ नहीं है। हरियाणा में रेसलर के लिए कई जॉब है, जबकि यूपी में वह मेडल लेकर भटकता रहता है।

आपका नेक्स्ट टारगेट क्या है?

-मेरा नेक्स्ट टारगेट ख्0क्म् ओलंपिक है। इसके लिए मैं लगातार प्रैक्टिस कर रहा हूं। मेरा लक्ष्य गोल्ड मेडल है। इस टाइम मैं रेगुलर प्रैक्टिस करने के साथ खुद को चोट से बचाने का भी प्रयास कर रहा हूं।

क्या कुश्ती का यह गोल्डेन पीरियड है?

-हां। बिल्कुल। इस टाइम कुश्ती का गोल्डेन पीरियड चल रहा है। ओलंपिक में मेडल मिलने के बाद कुश्ती का क्रेज भी बढ़ा है और सुविधाएं भी। तभी गांव का खेल कहे जाने वाले कुश्ती में अब शहर के लड़के-लड़कियां भी अपना करियर बनाने आ रहे हैं।