वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसी मच्छरदानियाँ अब बेकार साबित होने लगी हैं जिनमें ज़हरीली दवाओं का लेप लगा होता है क्योंकि मच्छरों में ऐसी दवाओं की प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो गई है। सेनेगल में किए गए शोध में ये नतीजे सामने आए हैं। दवाओं के लेप वाली मच्छरदानियों का अफ़्रीक़ी देशों में सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया जाता रहा है.malaria

फ़ायदा या नुक़सान?

लेकिन अब नए शोध से पता चला है कि मच्छरों पर इस दवाओं का असर नहीं होता और साथ ही ऐसी मच्छरदानियाँ बच्चों में रोग प्रतिरोधक शक्ति को भी कम कर देती हैं। पर दूसरी ओर कुछ वैज्ञानिक कहते हैं कि इस शोध का दायरा काफ़ी सीमित रहा है इसलिए अभी दूरगामी नतीजे नहीं निकाले जा सकते।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि अगर इस मच्छरदानियों का इस्तेमाल ठीक ढंग से किया जाए तो मलेरिया के मामलों में पचास फ़ीसदी की कमी आ सकती है। सेनेगल में पिछले पाँच वर्षों के दौरान साठ लाख मच्छरदानियाँ बाँटी गई हैं। शोधकर्ताओं ने सेनेगल के एक छोटे से गाँव में ऐसी मच्छरदानियाँ बाँटी जाने से पहले और बाद हुए मलेरिया के मामलों का अध्ययन किया।

ढीठ मच्छर

पता चला कि मच्छरदानियों के इस्तेमाल के बाद पहले तीन हफ़्तों तक मलेरिया से बीमार होने वाले लोगों की संख्या कम हुई। शोधकर्ताओं ने ऐसे मच्छरों के नमूने इकट्ठा किए जिनसे अफ़्रीक़ा में मलेरिया फैलता है।

इन नमूनों के अध्ययन से पता चला कि 2007 से 2010 के बीच इन मच्छरों में मच्छरदानियों के लेप में काम आने वाली ज़हरीली दवाओं को पचाने की शक्ति में आठ प्रतिशत से बढ़कर 48 प्रतिशत हो गई। वर्ष 2010 आते आते ऐसी दवाओं की प्रतिरोधी क्षमता वाले मच्छरों की संख्या 37 प्रतिशत हो गई। यानी कि मच्छर ढीठ हुए हैं।

शोधकर्ताओं का कहना है कि मच्छर काटने से लोगों में प्राकृतिक रूप से मलेरिया प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती थी, लेकिन जब से इन मच्छरदानियों का इस्तेमाल किया जाने लगा है तब से बच्चों और बुज़ुर्गों में ये क्षमता कम हुई है।

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