- आईआईटी समेत शहर के कई शिक्षण संस्थानों में बसीं है डॉ। कलाम की सुनहरी यादें

- बच्चों से सीधा संवाद कर दी थी नसीहत, लाइफ में कुछ करने के लिए टारगेट जरूर सेट करो

KANPUR: देश में मिसाइल प्रोग्राम के जनक, भारत रत्‍‌न और पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम अब्दुल चाचा का कानपुर से गहरा नाता रहा है। आईआईटी कानपुर से लेकर शहर के कई स्कूलों में वह कई बार आए। शहर से डॉ। कलाम के इस प्यार ने हजारों बच्चों के दिल में अपनी जगह बनाई है। बीएनएसडी शिक्षा निकेतन, सर पदमपत सिंहानिया एजुकेशन सेंटर लेकर मर्सी मेमोरियल स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की यादों में डॉ। कलाम की यादें अब हमेशा दर्ज रहेंगी। उनके दिखाए सपने और उसे पूरा करने का जज्बा हर किसी को प्रेरित करेगा। डॉ। कलाम का आईआईटी कानपुर से भी गहरा नाता रहा है वह यहां आधा दर्जन से ज्यादा बार आ चुके हैं। मिसाइल मैन के साथ काम करने का आईआईटी कानपुर के कई प्रोफेसरों को सौभाग्य भी ि1मला है।

आईआईटी याद करेगा कलाम को

लाइफ को बड़े ही सादगी से गुजारने वाले दूसरों की प्रेरणा श्रोत रहे पूर्व राष्ट्रपति मिसाइल मैन एपीजे कलाम का आईआईटी के कुछ प्रोफेसर से काफी नजदीकियां थीं। उन्होंने आईआईटी के एयरो स्पेस इंजीनियरिंग के अलावा विंड टनल जाकर भी जायजा लिया था। आखिरी बार आईआईटी कानपुर वह 2013 में आए थे। आईआईटी के रवी शुक्ला ने बताया कि वह कैंपस में 6 बार आए थे। आईआईटी के एयरो स्पेस इंजीनियरिंग के प्रोफेसर एके घोष उनके करीबी थे। स्टूडेंट्स से वह हमेशा सीधे इंट्रैक्शन करते थे। वह पहली बार आईआईटी में बतौर डीआरडीओ चेयरमैन आए थे।

बड़े सपने देखो फिर उन्हें पूरा करने में जुट जाओ

सिटी के कुछ प्रॉमिनेंट स्कूलों की विजिट कर चुके मिसाइल मैन की स्टूडेंट्स के साथ बात करने की अपनी अलग विधा थी। बीएनएसडी शिक्षा निकेतन में जब वह आए थे तब एक घंटे तक स्टूडेंट्स के बीच रहे। उन्होंने इस दौरान बच्चों को नसीहत दी कि सीधे टारगेट पर फोकस करें। बीएनएसडी शिक्षा निकेतन इंटर कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ। अंगद सिंह ने बताया कि कॉलेज के सिल्वर जुबली सेलीब्रेशन में अब्दुल कलाम 8 अक्तूबर 2010 को कॉलेज कैंपस आए थे। जहां पर उन्होंने बच्चों से सीधे संवाद करते हुए कहा था कि लाइफ में लक्ष्य निर्धारित किए बिना कुछ भी हासिल नहीं होता है।

आखिरी बार कन्नौज आए थे कलाम

पूर्व राष्ट्रपति डॉ। अब्दुल कलाम सिर्फ मिलाइल मैन के रूप में ही नहीं जाने जाते थे बल्कि उन्हें गांव और खेती-किसानी से भी खासा लगाव था। वह भारतीय दलहन अनुंसधान संस्थान के प्रोग्राम में भी आ चुके हैं। इसके अलावा इसी महीने वह कन्नौज के एक कस्बे में सोलर ऊर्जा की एक योजना का शुभारंभ करने शायद आखिरी बार उत्तर प्रदेश आए थे।