- दो कंपनियों के पास ऑक्सीजन सप्लाई का ठेका, अल्टरनेट हर महीने बदलती है

- कंपनी बदलते ही 1 से 1.5 हजार सिलेंडरों की बढ़ जाती है सप्लाई, मरीज रहते हैं उतने ही

- ऑक्सीजन का बजट सरकार से मिलने के बाद भी मरीजों से वसूली जाती है कीमत

KANPUR: कार्डियोलॉजी में दवाओं, ऑपरेशन किट और अन्य तरह से होने वाले 'खेल' का खुलासा आई नेक्स्ट कर चुका है। आज आपको आई नेक्स्ट बता रहा है कि ऑपरेशन के दौरान मरीज को जो ऑक्सीजन दी जाती है उसकी खरीद में भी भ्रष्टाचार हावी है। यह खेल दो स्तरों पर है एक तो मरीजों के साथ और दूसरा ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी को जो पेमेंट किया जाता है वहां से। नहीं तो सरकारी अस्पताल होने और ऑक्सीजन के लिए भी फंड मिलने के बाद भी मरीजों से ऑक्सीजन के नाम पर उगाही कैसे की जाती है। जो कंपनियां इस ऑक्सीजन को सप्लाई करती हैं एक महीने में ही उसकी सप्लाई में हजार से ज्यादा सिलेंडरों का फर्क कैसे आ जाता है। जबकि मरीजों की संख्या में कोई खास अंतर नहीं अाता है।

हर रोज 100 सिलेंडरों की जरूरत

एलपीएस इंस्टीटयूट ऑफ कार्डियोलॉजी में हर रोज 100 से 110 बड़े सिलेंडरों की जरूरत पड़ती है। सभी सिलेंडर बड़े साइज के ही होते हैं। मानक के मुताबिक एक भरे हुए ऑक्सीजन सिलेंडर में 130 से 135 के बीच प्रेशर होता है। यह सिलेंडर कार्डियोलॉजी बिल्डिंग के ऑक्सीजन प्लांट में लगाए जाते हैं जहां से पाइपलाइन के जरिए मरीजों तक ऑक्सीजन की सप्लाई हाेती है।

दो कंपनियों के पास ठेका

कार्डियोलॉजी में ऑक्सीजन सप्लाई के लिए दो कंपनियों मुरारी गैस और पनकी ऑक्सीजन के पास ठेका है। दोनों एक-एक महीने करके अल्टरनेट तरीके से ऑक्सीजन सिलेंडर सप्लाई करती हैं। इन कंपनियों को हर महीने के हिसाब से पेमेंट किया जाता है। ऑक्सीजन के रेट तो शासन से स्वीकृत रेटों के हिसाब से ही होते हैं।

ऐसे होता है खेल

कार्डियोलॉजी में ऑक्सीजन की सप्लाई करने वाली दोनों कंपनियों के सिलेंडरों की सप्लाई में हर महीने आने वाला अंतर ही इस खेल की पोल खोल देता है। जहां सितंबर में एक कंपनी ने 3000 सिलेंडरों की सप्लाई की वहीं अक्टूबर में दूसरी कंपनी के आते ही यह संख्या 4500 के करीब पहुंच गई। जबकि मरीजों की संख्या में कोई खास फर्क नहीं आया। जो सिलेंडर सप्लाई किए गए उनका प्रेशर व वजन चेक किया जाता है या नहीं। इसके अलावा सिलेंडरों की सप्लाई में आए इस गैप को पेमेंट करने के समय नजरअंदाज क्यों कर दिया जाता है। यह भी गड़बड़ी की ओर इशारा करते हैं। कार्डियोलॉजी में इस तरह के पेमेंट ऑफिस सुप्रीटेंडेंट करते हैं

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बजट मिलने के बाद भी मरीजों से पेमेंट

कार्डियोलॉजी में ऑक्सीजन की पूरी कीमत मरीजों से वसूली जाती है। इसमें मरीजों को ऑपरेशन के समय दी जाने वाली नाइट्रस आक्साइड जिसे लॉफिंग गैस कहते हैं उसकी फीस अलग होती है। ऑपरेशन के समय जो रकम जमा कराई जाती है उसमें ऑक्सीजन और पॉवर जेनरेशन चार्जेस दोनों 4 से 5 हजार रुपए तक जोड़े जाते हैं जबकि कार्डियोलॉजी को इसी साल औषधि व रसायन जिसमें ऑक्सीजन का फंड भी जुड़ा है, के रूप में 2.66 करोड़ रुपए स्वीकृत हुए थे।

कोट-

ऑक्सीजन की सप्लाई के लिए जो भी पेमेंट होता है वह नियमत ही किया जाता है। इसमें गड़बड़ी नहीं होती है। कर्मचारी भी सिलेंडर लेते समय गैस और प्रेशर चेक करते हैं।

- डॉ। आरएन पांडेय ,कार्यवाहक डॉयरेक्टर