-शिवराजपुर हादसे में रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू होने में देरी की दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट ने की पड़ताल
-आपदा से निपटने के लिए कानपुर के सिविल डिफेंस के पास न जरूरी संसाधन और न पर्याप्त मैन पॉवर
- खुद की समस्याओं से ही लड़ रहा विभाग, एक तिहाई परमानेंट कर्मचारी भी नहीं है विभाग में
यन्हृक्कक्त्र: शिवराजपुर में थर्सडे को कोल्ड स्टोरेज की बिल्डिंग ढहने से दर्जनों मजदूर मलबे में दब गए थे। अचानक आई इस आपदा में अगर तुरंत रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू हो जाता तो शायद कई लोगों की जिंदगी बच जाती। अब सवाल ये उठता है कि आखिर रेस्क्यू में देरी क्यों हुई? इस देरी के पीछे की वजह जानने के लिए दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट ने पड़ताल की चौकाने वाला सच सामने आया। मालूम चला कि आपदा में फंसे लोगों को बचाने के लिए कानपुर में सिविल डिफेंस नाम की 'व्यवस्था' तो है लेकिन वो 'मर' चुकी है। ऐसी स्थिति में हादसे के बाद एनडीआरएफ की टीम का इंतजार किया गया। आपदा के समय लोगों की जिंदगी बचाने वाले विभाग क्यों हो गया मरणासन्न? जानने के लिए पढि़ए ये खबर।
कबाड़ की दुकान या ऑफिस?
दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट की टीम फ्राइडे को फूलबाग स्थित सिविल डिफेंस के ऑफिस पहुंची तो वहां का नजारा किसी खंडहर से कम नहीं था। ऑफिस में जगह-जगह जाले लगे थे। खिड़कियों के शीशे टूट हुए थे। ऑफिस के अंदर एक टूटी कुर्सी में सिविल डिफेंस कानपुर के डिप्टी कंट्रोलर कश्मीर सिंह बैठे मिले। जब उनसे रिपोर्टर ने पूछा कि सिविल डिफेंस का हाल क्यों खराब है? ऐसे में उनका कहना था कि जब बचाव के संसाधन ही नहीं हैं तो फिर वॉलेंटियर क्या करें? कैसे आपदा से निपटा जाए?
टूटा फावड़ा, पुरानी रस्सी
उन्होंने बताया कि सन् 1964 से कानपुर सिविल डिफेंस के पास कोई नया बचाव का सामान नहीं आया है। दुनिया आगे बढ़ रही है और सिविल डिफेंस बहुत पीछे चला गया। विभाग के पास आज साजो-सामान के नाम पर कुछ पुराने जंग लगे फावड़े, टूटी हुई सीढ़ी है। रस्सी इतनी पुरानी है कि अगर उसको जोर से खींच दिया जाए तो ऐसे ही टूट जाएगी। हाल ये है कि गैस मॉस्क तो छोडि़ए साधारण कपड़े का टुकड़ा तक नहीं है कि गैस रिसाव वाले स्थान पर जाने से पहले वॉलिंटियर्स मुंह में बांध लें। अगर स्टाफ की बात करें तो परमानेंट कर्मचारियों की संख्या 61 स्वीकृत है लेकिन सिर्फ 20 ही हैं। अब कैसे आपदा के दौरान लोगों की सुरक्षा हो, ये आप खुद समझ सकते हैं।
भत्ते के नाम पर 'मजाक'
डिप्टी कंट्रोलर कश्मीर सिंह बताते हैं कि परमानेंट इम्प्लाइज करीब एक तिहाई हैं और संविदा में जो वॉलेंटियर्स रखें गए हैं उनको एक दिन में 31 रुपए भत्ता मिलता है। वॉलेंटियर्स को ट्रेनिंग के दौरान 28 रुपए प्रतिदिन मिलता है। इसके अलावा कोई सुविधा कर्मचारियों को नहीं मिलती है। वॉलेंटियर्स का ग्रुप बीमा भी नहीं है ऐसे में दुर्घटना में कर्मचारी और उनकी फैमिली सुरक्षित नहीं है।
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कब हुआ गठन?
-तीन साल में वॉलंटियर्स का रिन्युअल होता है।
-1962 में सिविल डिफेंस का गठन हुआ
-24 मई 1968 को एक्ट लाकर ये विभाग बना।
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इस वक्त क्या- क्या सामन है?
जंग लगे फावड़े, टूटी पुरानी स्ट्रेचर, दशकों पुरानी रस्सी, टूटी सीढ़ी, एक खचाड़ा जीप वो भी बिना ड्राइवर की
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ये भी जान लीजिए
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61 परमानेंट इम्प्लाइज होने चाहिए
20 परमानेंट इम्प्लाइज हैं वर्तमान में
1548 वॉलिंटयर्स हैं कानपुर में
13 डिवीजन में शहर को बांटा है
13 डिविजनल वार्डेन है कानपुर में
01 चीफ वॉर्डेन है सिटी में
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सिविल डिफेंस के पास आपदा से निपटने के लिए कोई साजो-सामान ही नहीं है। परमानेंट इम्प्लाइज भी बहुत कम हैं। सिविल डिफेंस की स्थिति बहुत खराब है फिर भी जब जरूरत पड़ती है वॉलेंटियर्स पहुंच जाते हैं।
कश्मीर सिंह, डिप्टी कंट्रोलर, सिविल डिफेंस, कानपुर