कानपुर (ब्यूरो)। मनुष्य में एक उम्र के बाद आंखों में मोतियाबिंद की समस्या हो जाती है। जिसका ट्रीटमेंट कराने के बाद कई पेशेंट सालों उसके पकने का इंतजार करते है या फिर ठंड के मौसम में ही मोतियाबिंद का ऑपरेशन कराने को लेकर कई माह या फिर एक-दो सालों के लिए टाल देते हैं। शायद ही उनको इस बात का आभास होता है कि यह हीलाहवाली उनकी आंखों की रोशनी पूरी तरह छीन सकती है। एक्सपर्ट का कहना है मोतियाबिंद के पकने का इंतजार करने की बजाए उसका ट्रीटमेंट कराना चाहिए। क्योंकि इन दिनों जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के आई डिपार्टमेंट में डेली 4 से 5 केस ग्लूकोमा के ऐसे केस आ रहे हैं। जिनको पहले मोतियाबिंद की शिकायत थी।

40 से 50 केस में 4 से 5 केस ग्लूकोमा के
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के आई डिपार्टमेंट की एचओडी प्रो। शालिनी मोहन ने बताया कि डेली ओपीडी में 40 से 50 पेशेंट सिर्फ मोतियाबिंद से ग्रसित आते हैं। इनमें से चार से पांच पेशेंट ग्लूकोमा से ग्रसित होते हैं। जोकि पहले सिर्फ मोतियाबिंद से ग्रसित थे लेकिन उसके पकने के इंतजार करने में अब वह ग्लूकोमा से ग्रसित हो गए है। जिसमें आंखों की रोशनी तक जाने का खतरा रहता है। समय से ट्रीटमेंट मिलने पर आंखों की रोशनी को रिकवर किया जा सकता है।

क्या होता है ग्लूकोमा
ग्लूकोमा एक ऐसी स्थिति है जो आपकी आंखों की ऑप्टिक तंत्रिका को नुकसान पहुंचाती है और समय के साथ और खराब हो जाती है। इससे आंखों में दबाव बढ़ जाता है। जिसे इंट्राओकुलर दबाव कहा जाता है। आपके ऑप्टिक तंत्रिका को नुकसान पहुंचा सकता है जो आपके दिमाग को विजेन भेजता है। यदि नुकसान अधिक होता है आंखों की रोशनी तक जा सकती है।

एक्सपर्ट डॅाक्टर से सलाह देकर कराए ऑपरेशन
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के आई डिपार्टमेंट की एचओडी डॉ। शालिनी मोहन ने बताया कि अगर आपको भी मोतियाबिंद के लक्षण समझ में आते है तो एक्सपर्ट डॉक्टर्स से चेकअप करा सलाह ले और आवश्यकता अनुसार समय रहने उसका ऑपरेशन करा लें। उन्होंने बताया कि मोतियाबिंद का ऑपरेशन अब के समय में नार्मल प्रोसेस है। अब तो पांच मिनट में बिना चीरा लगाए ही मोतियाबिंद का ऑपरेशन हो जाता है। क्योंकि मोतियाबिंद का ट्रीटमेंट समय रहते करा लिया गया तो ग्लूकोमा जैसी गंभीर बीमारी से बचा जा सकता है।