महिला फुटबॉल खिलाड़ियों के हिजाब पहनकर खेलने पर सुरक्षा कारणों से प्रतिबंध लगाई गई थी। साथ ही फीफा के नीयमों के तहत खेल के मैदान पर किसी धार्मिक चिन्ह के प्रयोग की अनुमति नहीं थी। आलोचको का कहना है कि हिजाब पर प्रतिबंध लगाने से दुनिया के इस सबसे लोकप्रिय खेल में भेदभाव बढ़ेगा।

खिलाड़ियों के हिजाब पहनकर खेलने के हक को समर्थन देने वाले फेसबुक पन्ने ‘लेट अस प्ले’ को अब तक 60,000 से ज्यादा लोगों ने पसंद किया है।

इसी बीच अटकले लगाई जा रही है कि अगर डच डिजायनर सिंडी वैन डेन ब्रेमेन के नए हिजाब को फीफा की स्वीकृति मिल गई तो हिजाब पर से प्रतिबंध हटाया जा सकता है।

'कम भागीदारी'

जॉर्डन की महिला फुटबॉल टीम की पूर्व कोच हिस्टेरिन डी रूस का मानना है कि अगर ये प्रतिबंध बरकरार रहा तो खिलाड़ी अपनी प्रतिभा को घरेलु खेल के मैदान से आगे नहीं ले जा पाएंगे।

उन्होंने कहा, ''जॉर्डन में इस खेल में लड़कियों को लाने में हमे बहुत मेहनत करनी पड़ी। हमें मुसलमान लड़कियों को खेलने के लिए प्रोत्साहित करना पड़ेगा.''

हिस्टेरिन डी रूस ने कहा, ''वैसे भी उनकी (मुसलमान लड़कियों की) भागीदारी इस खेल में बहुत कम है, और हमें लगता है कि इन नीयमों से स्थिती को और खराब कर रहें है.''

साल 2012 ओलंपिक के लिए ईरान के खिलाफ क्वालीफआयर्स में हिस्टेरिन डी रूस जॉर्डन की टीम को कोच कर रही थी, लेकिन मैच शुरू होने से पहले ही जॉर्डन की टीम को हिजाब उतारने से मना करने के लिए प्तियोगिता से बाहर कर दिया गया था।

फीफा के इस फैसले पर विवाद और बढ़ गया जब ईरान के राष्ट्रपति अहमदीनेजाद ने अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल संगठन को तानाशाह करार दे दिया। वीवी हूग्रावेन के कोच यूसरा स्लाओई को लगता है कि हिजाब का नया डिजायन पारंपरिक हिजाब से फुटबॉल के लिहाज से ज्यादा बेहतर है।

उन्होंने कहा, ''नए हिजाब का रेडीमेड डियाजन इसे दूसरों से अलग बनाता है, इसलिए अब आपको हिजाब पर पिन या गांठ नहीं लगाना पड़ता। ये इलास्टिक की तरह खींचा जा सकता है इसलिए काफी आरामदायक है.''

फीफा के अनुसार दुनिया भर में करीब दो करोड़ 90 लाख महिलाएं फुटबॉल खेलतीं हैं और इस संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। हालांकि लोगों में डर है कि हिजाब पहनकर खेलने पर प्रतिबंध से मुसलमान समुदाय इस खेल में पिछड़ेगा।

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