कानपुर(ब्यूरो)। इसको क्या हुआ, सर एक्सीडेंट हो गया है। इसको बेड में लेटा दो, नर्स गाज-पट्टी का बॉक्स लेकर आइए जल्दी, ब्लड ज्यादा बह रहा है। सर बचा लीजिए इसको, एकलौता बुढ़ापे का सहारा है, आप चिंता न करे, गार्ड, भीड़ को इमरजेंसी से बाहर करो, पेशेंट के साथ कौन है, उनको बुलाओ और पेशेंट की फाइल बनवा कर लाएं, एक्सरे के लिए स्लिप लिख दी है। इसके पैर का एक्सरा कराने के बाद ही आगे का प्रोसेस शुरू किया जाएगा। यह कोई फिल्म की स्क्रिप्ट नहीं बल्कि हैलट इमरजेंसी का कुछ पल का लाइव है। यहां नई पीढ़ी के डॉक्टर्स कैसे भूखे-प्यासे एक-एक पेशेंट की जांच बचाने में दिन-रात लगे रहते हैं। ये भागदौड़ एक दिन की नहीं बल्कि नई पीढ़ी के डॉक्टर्स को डेली हैलट इमरजेंसी में फेस करनी पड़ती है।

बेस्ट ट्रीटमेंट देकर जल्दी फिट करने का उद्देश्य
जिस तरह बदलते वातावरण में नई-नई बीमारियां पनप रही है। वैसे-वैसे उसके ट्रीटमेंट के लिए नई-नई तकनीकी ईजाद हो रही हैं। पेशेंट को बेस्ट ट्रीटमेंट देकर उसको पहले की तरफ स्वस्थ करना नए पीढ़ी के डॉक्टर्स का टारगेट होता है। हैलट हो या उर्सला जिला अस्पताल, जहां नई पीढिय़ों के डॉक्टर अपने फर्ज को बखूबी निभा रहे हैं। रात हो या दिन पेशेंट को ट्रीटमेंट की दरकार पर वह चंद मिनटों में अस्पताल में उपलब्ध होते हैं। वह न तो रात देखते है और न ही बरसात। यह सिर्फ इस लिए की पेशेंट को किसी प्रकार की दिक्कत न हो।

पेशेंट के लिए दवा लेने जाते वक्त जू। डॉक्टर, एक्सीडेंट में टूटे थे हाथ-पैर
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के गायनिक डिपार्टमेंट में जेआर वन डॉक्टर प्रज्ञा फरवरी 2023 में देर रात एक महिला के प्रसव के दौरान लगने वाला एक उपकरण देने के लिए 23 फरवरी की देर रात हैलट के सामने मेडिकल स्टोर अपनी स्कूटी से जा रही थी। तभी एक तेज रफ्तार कार ने उनको टक्कर मार दी थी। डॉ। प्रज्ञा का एक हाथ व पैर एक्सीडेंट में टूट गया था। एक माह के बेड रेस्ट के बाद प्रज्ञा आज फिर उसी जज्बे के साथ गायनिक डिपार्टमेंट में पेशेंट का ट्रीटमेंट रात-दिन जाग कर रही हैं।

डॉक्टर के पास जादू की छड़ी नहीं, रिलीफ मिलने में लगता समय
हैलट अस्पताल के जूनियर डॉक्टर से दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ने बात कर उनकी चुनौतियों के बारे में जाना, उन्होंने बताया कि इमरजेंसी में एक पेशेंट के साथ कई बार आधा दर्जन से अधिक तीमारदार आ जाते है। इन स्थिति में ट्रीटमेंट करने में दिक्कत होती है। कई केसों में अब ऐसे की पेन किलर या अन्य दवाएं नहीं दे सकते है। मेडिकल ट्रीटमेंट की जानकारी न होने की वजह से पेशेंट के तीमारदार कभी-कभी पैनिक होते हैं। जिनको समझने की जरूरत है। डॉक्टर के पास कोई जादू की छड़ी नहीं होती है। जिसको घुमाते ही पेशेंट बेड से उतर कर पहले की तरह चलने फिरने लगेगा। पेशेंट की जान की चिंता जितनी उसके तीमारदार को होती है। उससे कई ज्यादा डॉक्टर को होती है। क्योंकि इसी रिकार्ड से नई पीढ़ी के डॉक्टर का भविष्य तय होता है।

समस्या को जान, जड़ से खत्म करना
नई पीढ़ी के डॉक्टर अब जांच के बेस में पेशेंट का ट्रीटमेंट कर रहे है। उनका मानना है कि पेशेंट की तकलीफ के मुताबिक उससे जुड़ी जांच कराने के बाद ही बेहतर ट्रीटमेंट किया जा सकता है, क्योंकि जब तक समस्या पकड़ में नहीं आएगी। तब तक उसका जड़ से उपचार नहीं होगा। बिना जांच के कुछ दवाएं देकर कुछ समय व दिनों के लिए रिलीफ को दी जा सकती है लेकिन जड़ से उसको खत्म नहीं किया जा सकता है, इसलिए पहले जांच उसके बाद ट्रीटमेंट करना ही पेशेंट के लिए बेहतर है।