उन्होंने तंजानिया के सैड मेबेल्वा को सातवें राउंड में शिकस्त दी। हामिद के जीतते ही उनके समर्थक रिंग में घुस आए। ये मुकाबला खास तौर पर बनाए गए एक तम्बू में हुआ था जिनका इस्तेमाल आमतौर पर कबाइली नेताओं की सभा के लिए होता है।

जर्मनी में जन्में हामिद रहीमी का कहना है कि वे इस आयोजन के जरिए अफगानिस्तान के लोगों को करीब लाना चाहते थे। राजधानी काबुल में हुए इस मुकाबले का टेलीविजन पर सीधा प्रसारण अफगानिस्तान के लाखों लोगों ने देखा।

'‏अमन के लिए लड़ाई'

अफगानिस्तान में तालिबान का शासन होता तो ये आयोजन शायद कभी नहीं होता। मुकाबले के लिए सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे। मुकाबला जीतने के बाद रहीमी ने इसे अफगानिस्तान के लिए एक नई शुरुआत बताया। उन्होंने कहा, ''ये आगाज़ है। ये बेल्ट मेरा नहीं, अफगानिस्तान का है, आपका है। मैं आपसे मोहब्बत करता हूं.''

एक ओर जहां लोग अपने घरों में इस मुकाबले का सीधा प्रसारण देख रहे थे, वहीं देश के नेता, मंत्री और दूसरे जानेमाने चेहरे आयोजन स्थल पर मौजूद थे। मुकाबले के आयोजकों ने इसे 'फाइट फॉर पीस' यानि 'अमन के लिए लड़ाई' बताया।

तालिबान और बॉक्सिंग

तालिबान ने अपने शासनकाल के दौरान बॉक्सिंग पर प्रतिबंध लगा दिया था। लेकिन इस मुकाबले का टिकट खरीदने के लिए पूरे देश से लोग काबुल आए थे।

मुकाबला देखने आए एक दर्शक ने बीबीसी को बताया कि वो अपने नौ वर्ष के बेटे के साथ लोगार प्रांत से यहां तक आए और उन्होंने तालिबान के हमले का जोखिम मोल लिया।

वहीं एक पूर्व सासंद और पेशेवर वॉलीबाल खिलाड़ी सबरीना सक़ीब का कहना है कि अफगानिस्तान, सामान्य जनजीवन की ओर लौटने को बेताब है।

वे कहती हैं, ''दुनिया अफगानिस्तान को हमेशा युद्ध के नजरिए से देखती है। इस खेल ने नजरिया बदल दिया है। वैसे तो ये लड़ाई थी लेकिन ये अमन की लड़ाई थी। ये एक बड़ी उपलब्धि है। अफगानिस्तान की युवा प्रतिभावान पीढ़ी शांति और स्थायित्व चाहती है.''

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