कानपुर (ब्यूरो)। डिलीवरी के बाद मातृ मृत्यु का मुख्य कारण अधिक ब्लड लॉस, हाई बीपी व इंफेक्शन होता है। जिसमें बीते वर्षों की अपेक्षा काफी हद तक कमी लाई गई है। लेकिन बीपी अधिक होने के कारण से मातृ मृत्यु दर में कमी नहीं हो रही है। यह जानकारी थर्सडे को जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के गायनिक डिपार्टमेंट की एचओडी प्रो। नीना गुप्ता ने दी। उन्होंने बताया कि हाई बीपी की वजह महिलाओं की प्रेगनेंसी के दौरान मौत हो जाती है। अगर समय से ट्रीटमेंट न मिले तो पेशेंट को झटके आ सकते हैं। फेफड़ों में पानी भर सकता है, दिमाग में खून के थक्के जम सकते हैं, लीवर व किडनी खराब हो जाती है। अंत में पेशेंट की मौत हो जाती है।
समय पर ट्रीटमेंट से बच सकती जान
प्रो। नीना गुप्ता ने कांफ्रेंस के दौरान बताया कि प्रीएक्लेम्पसिया से बचाव का मुख्य तरीका समय से पूर्व इसका निदान करना है। अभी तक समय से पूर्व इसका पता लगाने के लिए बहुत सीमित साधन है। इसको पता लगाने के लिए डिपार्टमेंट की एचओडी प्रो। नीना गुप्ता के नेतृत्व में तीन वर्षों से रिसर्च चल रही है।

जिसमें पेशेंट के टॉयलेट से मिसफोल्डेड प्रोटीन की मात्रा को देखते हैं। बीते दो वर्षों में 196 प्रेगनेंट लेडीज पर रिसर्च में यह पाया गया कि मिसफोल्डेड प्रोटीन की मात्रा जिन प्रेगनेंट महिलाओं का बीपी बढ़ा हुआ था उसमें सिग्निफिकेंटली अधिक पाई गई है। कांफ्रेंस में एचओडी प्रो। नीना गुप्ता, प्रो। सीमा द्विवेदी, एसोसिएट प्रो। ऊरुज जहां आदि मौजूद रहीं।