कानपुर (ब्यूरो)। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के हैलट हॉस्पिटल में अब जेनेटिक डिसीज से ग्रसित न्यू बॉर्न बेबीज को बेस्ट ट्रीटमेंट मिलेगा। थैलीसीमिया, हीमोफीलिया समेत कुछ खतरनाक बीमारियों को छोड़ बीपी, शुगर जैसी आधा दर्जन से अधिक जेनेटिक प्रॉब्लम्स का ट्रीटमेंट बच्चों को मिलेगा। जिससे भविष्य में बच्चों व उनके पैरेंट्स को किसी प्रकार की समस्या फेस न करना पड़े। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल की अगुवाई में गायनिक, पीडियाट्रिक व मेडिसिन डिपार्टमेंट से तीन सदस्यीय डॉक्टर्स की टीम तीन सप्ताह की ट्रेनिंग के लिए लखनऊ स्थित एसजीपीजीआई जाएगा। जिसके बाद अगस्त में हैलट में जेनेटिक डिसीज की ओपीडी शुरू होगी।

29 जुलाई से शुरू हो रहा बैच
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर्स के मुताबिक 29 जुलाई से एसजीपीजीआई में ट्रेनिंग के लिए बैच की शुरुआत होगी। जिसमें हैलट के तीन डॉक्टर्स ट्रेनिंग लेकर अगस्त के लास्ट वीक या फिर सितंबर के फस्र्ट वीक से अपनी सेवाएं हैलट हॉस्पिटल में देंगे। डॉक्टर्स के मुताबिक हैलट में जेनेटिक डिसीज की ओपीडी शुरू करने का उद्देश्य बच्चों में जन्मजात होने वाली जेनेटिक बीमारियों का पता लगाना और उनको रोकना है।

तीन डिपार्टमेंट से एक-एक डॉक्टर

हैलट अस्पताल में ऐसे कई बच्चे आते हैं, जो जेनेटिक बीमारियों से ग्रस्त होते हैं। यह बीमारी बच्चों को उनके माता-पिता से मिलती है। बीमारी गंभीर तभी बनती है, जब उनको नजरअंदाज किया जाए या प्रशिक्षित डॉक्टरों से संबंधित बीमारी का इलाज न हो। कभी-कभी स्थिति बिगडऩे के बाद माता-पिता अपने बच्चों को लेकर हैलट हॉस्पिटल आते हैं। ऐसे में जेनेटिक बीमारियों से ग्रसित बच्चों को बचाने और उनका समय रहते इलाज शुरू करने के लिए ओपीडी का संचालन किया जाएगा। इसके लिए पीडियाट्रिक, गायनिक व मेडिसिन डिपार्टमेंट से एक-एक डॉक्टर को लखनऊ के एसजीपीजीआई में ट्रेनिंग के लिए भेजा जाएगा।

एसजीपीजीआई भेजे जाएंगे सैम्पल

एसजीपीजीआई में डॉक्टर्स को ट्रेनिंग में सिखाया जाएगा कि गर्भ में पल रहे बच्चे को आगे चलकर जेनेटिक बीमारी हो सकती है या नहीं। अगर हो सकती है तो उसका ट्रीटमेंट उसी समय शुरू करना है, ताकि बच्चा आगे चलकर बीमारी से न जूझे। वहीं, कई बीमारियां ऐसी होती हैं, जिनका पूर्ण रूप से इलाज अभी तक नहीं है, ऐसे में प्रेमनेंट महिलाओं को प्रेगनेंसी की शुरुआत में ही सुरक्षित गर्भपात की सलाह दी जाएगी। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल प्रो। संजय काला ने बताया कि जेनेटिक बीमारियों की जांच के लिए गर्भवती महिलाओं की काउंसलिंग की जाएगी। शुरू में जांच के लिए सैंपल एसजीपीजीआई भेजे जाएंगे।

यह रोग ठीक होने की रहती है संभावना

जेनेटिक बीमारियों में हाई बीपी, गठिया, डायबिटीज, मोटापा आदि रोग माता-पिता से जेनेटिक कारणों की वजह से बच्चे को मिलते हैं। जिनके ट्रीटमेंट के माध्यम से ठीक होने की संभावना रहती है। लेकिन थैलीसीमिया, हीमोफीलिया, डाउन सिंड्रोम जैसे गंभीर रोगों का पूर्ण रूप से ट्रीटमेंट अभी नहीं है। ऐसे में अगर शुरुआत में जांच होने पर बीमारी के पता चलने पर बच्चे और उनके माता-पिता को भविष्य में होने वाली समस्या से बचाया जा सकता है।