कानपुर (ब्यूरो)। सर, मेरा बेटा शू कंपनी में नौकरी करता था। शादी के बाद वाइफ से अनबन हो गई। अब वह नौकरी छोडक़र घर पर ही रहता है। पूरे दिन मोबाइल में लगा रहता है। मानसिक रूप से बीमार हो गया है। कुछ कहने पर झगड़े पर उतारू हो जाता है। ये शिकायत पुलिस लाइन के पैरेंटिंग काउंसिलिंग सेल में स्वरूप नगर में रहने वाले वितुल कुमार अग्रवाल ने की थी। जिसके बाद पुलिस ने घर जाकर वितुल की काउंसलिंग की। साथ ही वितुल और उनकी पत्नी सारिका की काउंसिलिंग भी की गई। एक महीने में तीन सिटिंग के बाद बाद वितुल का बेटा बिल्कुल ठीक हो गया है। पैरेंटिंग सेल में इस तरह के 56 मामलों को सॉल्व किया गया। तत्कालीन पुलिस कमिश्नर बीपी जोगदण्ड ने पुलिस लाइन में इस सेल को अगस्त 2023 में शुरू किया था। दिसंबर तक यहां पर 163 शिकायतें आई हैं।

कैसे करते हैं काउंसलिंग
काउंसलर सब इंस्पेक्टर विनोद कुमार त्यागी ने बताया कि शुरुआत में काउंसलिंग के दौरान उन्हें अपमान सहना पड़ता है। जिसकी काउंसलिंग करने जाते हैं, वो अभद्रता करता है। हाइपर होकर कई बार अपशब्द भी बोलता है, लेकिन पीडि़त की मानसिक स्थिति जानने के लिए एक बार तो घर जाना ही पड़ता है। वहीं, काउंसलर लेडी सब इंस्पेक्टर सुनीता वर्मा ने बताया कि जिस व्यक्ति की शिकायत की जाती है, उसे पहले सामान्य करने के लिए पुरानी चीजें याद दिलाई जाती हैैं, जैसे बचपन की फोटो, वीडियो, बचपन के कपड़े, बचपन में क्या पसंद था, बचपन की शैतानियां। धीरे धीरे आगे बढ़ते हैैं।

पॉजिटिव चीजें याद दिलाते
उन्होंने बताया कि काउंसिलिंग के दौरान बचपन से लेकर युवावस्था की चीजें याद दिलाई जाती हैैं। इस दौरान ये याद रखा जाता है कि कोई निगेटिव बात याद न आए। सारी पॉजिटिव बातें याद दिलाते दिलाते एक समय ऐसा आता है कि जब पीडि़त का पेशेंट हाई हो जाता है, उस समय उसको संभालना मुश्किल हो जाता है। बस इस समय ये ध्यान रखना होता है कि किसी भी तरह से पीडि़त को पुरानी यादें न आएं। धीरे धीरे वह सामान्य हो जाता है।

साइकलॉजी में मास्टर डिग्री
काउंसलिंग सेल में एक इंस्पेक्टर, दो महिला सब इंस्पेक्टर, चार पुरुष सिपाही और चार महिला सिपाही हैैं। इन सभी के पास साइकलॉजी में मास्टर डिग्री है। काउंसलर विनय कुमार सिंह ने बताया कि ज्यादातर मामले माता-पिता और बच्चों के बीच होने वाले विवादों के आते हैैं। कुछ मामले ऐसे भी आते हैैं, जिनमेें बच्चे क्राइम की ओर रूख कर लेते हैैं। ऐसे में जेल और परिवार के बीच की कड़ी पुलिस बन जाती है और गलत रास्ते पर चलने वाला युवा ठीक रास्ते पर आ जाता है।

तीन महीने पॉजिटिव चेंज
काउंसलर जटाशंकर ने बताया कि उनके पास परिवार वालों की ऐसी भी शिकायतें आती हैैं कि उनके बच्चे गलत संगत में पडक़र नशा कर रहे हैैं। ऐसे मामलों में सरकारी डॉक्टरों की मदद लेनी पड़ती है। युवाओं का ध्यान नशे या दूसरी परेशानी से हटाकर पॉजिटिव चीजों में लगाना पड़ता है और तीन महीने में पीडि़त की लाइफ में पॉजिटिव चेंज आने लगते हैैं।