एक चीनी सेवानिवृत्त अधिकारी ने अपने लेख में दो टूक शब्दों में चीन को भारत से पाँच अहम सीख लेने की हिदायत दे डाली है। हिंदू अख़बार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक सॉंग जॉंगपिंग ने अपने लिख में कहा है कि भारत की तरह चीन को अपने यहाँ धार्मिक मान्यताओं और लोकतंत्र को बढ़ावा देना चाहिए, संतुलित आर्थिक विकास करना चाहिए और कूटनीति और सॉफ़्ट पावर पर ज़ोर देना चाहिए।

सॉंग जॉंगपिंग चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी में अधिकारी थे और अब वरिष्ठ सैन्य रणनीतिकार हैं। उनका लेख फ़िनिक्स टेलीवीज़न की वेबसाइट पर छपा है और इसे दो लाख 50 हज़ार लोग पढ़ चुके हैं। इस लेख ने चीन में ऑनलाइन पाठकों की बीच बहस छेड़ दी है।

'चाइना शुड बी हंबल और लर्न फ़्रॉम इंडिया' नाम के इस लेख में सॉंग जॉंगपिंग ने लिखा है कि चीन के लिए पहली सीख है कि कैसे भारत धार्मिक मान्यताओं को बढ़ावा देता है।

वे लिखते है, "चीन में पैसे को ही लोग एकमात्र लक्ष्य मानते हैं, हमारा देश आर्थिक विकास को ही प्राथमिकता देता हैबाकी चीज़ों को रास्ते से हटना पड़ता है। नतीजा ये है कि हम नैतिक रूप से कंगाल हो चुके हैं."

'भारत से ख़ुश तो चीन से डरती है दुनिया'

अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने की भारतीय नीति के भी सॉंग जॉंगपिंग कायल नज़र आते हैं। उन्होंने लेख में कहा है, "भारत ने सुनिश्चित किया है कि अरुणाचल प्रदेश पर उसका मज़बूत दावा रहे, जिसे चीन दक्षिणी तिब्बत कहता है। लेकिन चीन ने इस क्षेत्र के 90 हज़ार वर्ग किलोमीटर इलाके पर नियंत्रण खो दिया है."

दूसरे देशों में अपनी शक्ति प्रदर्शन के भारतीय तरीके और नौसेना पर ध्यान देने की नीति की भी चीनी रणनीतिकार ने तारीफ़ की है। उनका कहना है, "साउथ चाइन सी में चीन के पड़ोसी देशों के साथ कई विवाद हैं। जबकि भारतीय उपमहाद्वीप में भारत की बढ़ती मौजूदगी को बेहतर नज़रिए से देखा जा रहा है."

सॉंग जॉंगपिंग का मानना है कि एक ओर भारत अपनी नौसेना का आधुनीकिकरण कर रहा है वहीं चीन में गति धीमी है। उनका कहना है कि कूटनीति और सॉफ़्ट पावर को लेकर चीन भारत से बहुत कुछ सीख सकता है।

अपने लेख में वे कहते हैं, "दुनिया भारत की बढ़ती शक्ति का स्वागत कर रहा है जबकि चीन के विकास को डर की दृष्टि से देखता है। भारत के लोकत्रांतिक मूल्यों के कारण दुनिया भारत को सकारात्मक नज़रिए से देख रही है। अगर चीन को भी पश्चिमी देशों से दोस्ताना व्यवहार रखना है तो उसे भी यही मूल्य अपनाने होंगे." उनके लेख पर बड़ी संख्या में पाठकों ने अपनी प्रतिक्रिया दी है और ज़्यादातर प्रतिक्रियाएँ उनके पक्ष में ही नज़र आ रही हैं।

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