लीबिया में कर्नल गद्दाफ़ी को हटाए जाने के मुहिम के दौरान इस अजायबघर पर ताला लगा दिया गया था। अधिकारियों को संग्रहालय की सुरक्षा की फ़िक्र है जिसकी वजह से यह जगह आम लोगों के लिए फिलहाल बंद रखा गया है। लीबिया के रोमन, ग्रीक और इस्लामी इतिहास की निशानियां फ़िलहाल इस संग्रहालय की गैलरियों में है।

बंद दरवाज़ा

संग्रहालय के दरवाजे़ के बाहर एक दुकान में क्रांतिकारी स्मारिकाएं बिक रही हैं जहां नए लीबिया के काले, लाल औऱ हरे रंग के हार और कलाई के पट्टे सजे हुए हैं। राष्ट्रीय संग्रहालय के दरवाज़ें पर भी 'मुक्त लीबिया' का नारा लिखा है। लेकिन दरवाज़ा मजबूती से बंद है। लीबिया के राष्ट्रीय पुरातत्व विभाग के प्रमुख शोधकर्ता मुस्तफ़ा तुर्जमन का कहना है कि संग्रहालय को सुरक्षा की दृष्टि से बंद किया गया है।

तुर्जमन कहते हैं, "संग्रहालय दोबारा खोलनें में हम अभी सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे हैं। हम नहीं चाहते हैं कि हम इसे खोलकर अपनी कीमती धरोहर को खतरे में डालें। हमें अभी ये भरोसा नहीं है कि हमारी सीमाएं सुरक्षित हो गई हैं। पेशेवर लुटेरे कमज़ोर परिस्थिति का फ़ायदा उठा सकते हैं."

चोरी

गौरतलब है कि मई में एक बैंक से लीबियाई इतिहास के बेशकीमती सिक्के, जवाहरात और मूर्तियों की चोरी हो गई थीं। लीबिया के नए अधिकारी यूनेस्को और इंटरपोल के साथ मिलकर फ़िलहाल इस चोरी की तहक़ीक़ात कर रहे हैं।

किंग्स कॉलेज, लंदन के लीबियाई पुरातत्वशास्त्री हाफ़ेद वाल्दा मानते हैं कि ये चोरी किसी अंदर के आदमी ने ही करवाई होगी। लेकिन वो ये भी कहते हैं कि यह इस तरह की इकलौती घटना है। उनका कहना है कि गद्दाफ़ी को हटाए जाने के दौरान हुई हिंसा के बावजूद लीबिया की लगभग सभी अमुल्य विरासतें सुरक्षित है।

लोगों का सहयोग

गद्दाफ़ी को सत्ता से हटानें की मुहीम के दौरान सिक्कों, जवाहरात और छोटी मूर्तियों को गुप्त दीवारों और दरवाज़ों के पीछे छिपा दिया गया था। बड़ी मूर्तियों को उनकी जगह से हटाया नहीं जा सका था लेकिन उन्हें भी कोई नुकसान नहीं हुआ।

लीबिया की पुरातन विभाग के अध्यक्ष सालेह अल हस्सी बताते हैं कि, "आठ महीने की इस लड़ाई में हमें ज़्यादा नुकसान होने का डर था, लेकिन पुरातन ठिकानों को छुआ भी नहीं गया। यहां तक की जवान और बुढ़ों नें भी इसे बचाने में सहयोग दिया."

नहीं बची गद्दाफ़ी की निशानियां

त्रिपोली में स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय की प्राचीन धरोहर तो लगभग सुरक्षित बची रही लेकिन कर्नल गद्दाफ़ी की पुरानी गाड़ियों को भारी नुकसान पहुंचाया गया है।

मुअम्मर गद्दाफ़ी 1960 में जो बीटल गाड़ी चलाते थे उसके शीशे तोड़ दिए गए। साथ ही साल 1969 में जिस जीप में सवार होकर कर्नल गद्दाफ़ी ने बेनगाज़ी के एक कैंप से क्रांति की घोषणा की थी, उसकी हेडलाइट भी तोड़ दी गई है। संग्रहालय से गद्दाफ़ी की निशानियों को भी हटाया जा रहा है।

दीवारों पर लिखी गद्दाफ़ी की 'ग्रीन बुक' की छंदो को हटा दिया गया है। हालाकि ये संग्रहालय कब खुलेगा यह तय नहीं है। मुस्तफ़ा तुर्जमन कहते हैं, "अभी बहुत जल्दी है। घाव अभी हरे हैं औऱ हम अभी उसे छेड़ना नहीं चाहते."

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