कानपुर (ब्यूरो) वारदात को अंजाम देने वाले इतने शातिर थे कि वे ज्योति को डेफिनिट डेथ देना चाहते थे। इस वजह से उन्होंने ज्योति को रेलवे ट्रैक पर नहीं फेंका। दरअसल रेलवे ट्रैक पर बॉडी कटने से फॉरेंसिक की टीम ब्लड सैैंपल कलेक्ट करती, जिसमें बेहोश करने के एलिमेंट्स मिल सकते थे, जबकि आग लगाने से ये तत्व पूरी तरह से खत्म हो जाते थे। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की पड़ताल में जो तथ्य मिले उससे लग रहा है कि ज्योति की हत्या करने वाला कोई बहुत करीबी है। हालांकि आई नेक्स्ट रिपोर्टर ने जब एक संदिग्ध से बात की तो वह सवालों के आगे बगलें झांकने लगा।

ये उठ रहे सवाल, जिनके नहीं मिले जवाब
- जिस जगह डेड बॉडी मिली, केवल वहीं की घास जली मिली, आसपास की घास सेफ है। जबकि आग लगने पर आदमी गिरता है, जिससे आसपास की घास भी जलनी चाहिए।
- हाथ पैर बांधे जाने के कोई निशान शव के आस पास नहीं मिले, न ही पोस्टमार्टम रिपोर्ट में दिखे और न ही फॉरेंसिक रिपोर्ट में।
- आग लगने पर आदमी तड़पता है और इधर उधर गिरता है। जिससे हड्डियां टूटने की संभावना होती है। जबकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में एक भी हड्डी टूटी नहीं मिली।
- रेलवे ट्रैक से लोगों के घर चंद कदम की दूरी हैैं, जलने के दौरान लोगों को चीख सुनाई देनी चाहिए।
- पुलिस ने कॉल डिटेल रिकार्ड (सीडीआर) की जानकारी परिवार वालों को भी नहीं दी।
- ज्योति हर बाद अपने भाई अमन से शेयर करती थी, जबकि इस तरह की कोई बात शेयर नहीं की।
- जिस दिन ज्योति गुम हुई, उस दिन मोहल्ले में शादी थी। चहल पहल इतनी थी कि कोई देख नहीं पाया कि ज्योति कब आई और कब गई?
- पुलिस ने कॉल सेंटर के सीसीटीवी फुटेज भी नहीं चेक किए, जिससे जानकारी हो कि ज्योति कब आई और कब गई?
कई मामलों में पुलिस का रुख रहा है निपटाने वाला