नक्सलियों को हथियार और कारतूस कानपुर से सप्लाई हो रहे हैं नेशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) की इस सनसनीखेज जानकारी ने जिला पुलिस और प्रशासन की नींद उड़ाकर रख दी है। छत्तीसगढ़ के नक्सली हमले की जांच में जुटी एनआईए को इस मामले में कानपुर की रामदास आर्मरी के इनवॉल्वमेंट का पता चला है। इस जांच में सिटी के कई अन्य गनहाउस शॉप्स और उसके ओनर्स भी खुफिया रडार पर हैं. 
एक से ज्यादा का इनवॉल्वमेंट 
पिछले दिनों छत्तीसगढ़ में कांग्रेसी नेताओं की फ्लीट पर हुए नक्सली हमले की जांच एनआईए कर रही है। अब तक की जांच-पड़ताल में एनआईए को अहम सुराग मिले हैं। इनमें सबसे सनसनीखेज जानकारी नक्सलियों के पास मौजूद हथियारों और कारतूसों से संबंधित है। पता चला है कि नक्सलियों तक हथियारों और कारतूसों का जखीरा कानपुर से पहुंचाया जा रहा है। तफ्तीश में कानपुर की गुरूरामदास आर्मरी के इनवॉल्वमेंट का नाम सामने आया है। एनआईए को शक है कि यह काम अकेले एक गनहाउस का नहीं हो सकता। कुछ और असलहा दुकानें भी इसमें इनवॉल्व हैं. 
ट्रैक रिकॉर्ड भी जान लीजिए 
अब जरा गुरूरामदास आर्मरी की हिस्ट्री भी जान लीजिए। इसका ट्रैक रिकॉर्ड शुरुआत से ही गड़बड़ रहा है। देसी असलहों में फॉरेन वेपन्स के पाट्र्स जोडक़र ऊंचे दामों में बेचने में मुख्य अभियुक्त रहा है इस गनहाउस का ओनर। इस मामले में लखनऊ के नेशनल गन हाउस का इनवॉल्वमेंट भी पाया गया था। पिछले दिनों एटीएस ने छापा मारकर इन दोनों ही गनहाउसेज को सील कर दिया था। पूछताछ में एटीएस को पता चला कि रामदास आर्मरी का ओनर गुरूशरण सिंह और नेशनल गनहाउस का ओनर आपस में रिश्तेदार हैं। इस फर्जीवाड़े में वो कई सालों से संलिप्त थे. 
पटना में दाखिल है आरोप पत्र 
सन 2008 में खुफिया एजेंसियों ने पटना में कुछ प्रतिबंधित संगठनों के आतंकियों को पकड़ा था। एनआईए के अपर पुलिस अधीक्षक राजेश साहनी ने डीएम को जानकारी दी है कि जब इन आतंकियों से पूछताछ की गई तो मालूम हुआ कि उन्हें हथियारों-कारतूसों की सप्लाई कानपुर की गुरूरामदास आर्मरी से भी होती थी। जब एनआईए ने छानबीन की तो मालूम हुआ कि गुरूशरण की आर्मर शॉप से सन 2007-2011 के बीच सबसे ज्यादा कारतूस और शस्त्र बिहार-झारखंड में बेचे गये। जोकि बाद में किसी तरह नक्सलियों, आतंकियों और प्रतिबंधित संगठनों तक पहुंचाए गए। तब इस मामले में आरोपी पर पटना में आरोप पत्र भी प्रेषित किया गया।   
दूसरे संदिग्धों की तलाश भी जारी 
आर्मरी शॉप के दस्तावेजों में गड़बड़ी मिलने के बाद एनआईए काफी अलर्ट है। एजेंसी के रडार पर कुछ और गनहाउस भी शामिल हैं। इसीलिए एएसपी राजेश साहनी ने प्रशासन से कुछ संदिग्ध असलहा दुकानों के बिक्री की रिकॉर्ड बुक अच्छी तरह जांचने को कहा है। जिससे यह मालूम हो सके कि असलहे और कारतूस खरीदने वाले लोगों में सबसे ज्यादा किस स्टेट या डिस्ट्रिक्ट के हैं? बिक्री के दौरान सभी नियमों का पालन किया जा रहा है या नहीं? खरीददार की पर्सनल इनफॉर्मेशन जुटाई गई है या नहीं? 
बनाते हैं सॉफ्ट टारगेट 
कानपुर नक्सलियों के लिए हमेशा से ही शेल्टर प्वाइंट रहा है। यहां रहकर वो फाइनेंशियली वीकर सेक्शन के लोगों को माओवादी विचारधारा से जोडक़र अपना ग्रुप मजबूत करने में जुटे हैं। सिटी में मिलों और कुटीर उद्योगों की बंदी की वजह से फैली बेरोजगारी नक्सलियों को अपने मंसूबो में और कामयाब बना रही है। करीब तीन साल पहले एटीएस ने आठ नक्सलियों को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया था। पूछताछ में नक्सलियों ने पुलिस को बताया था कि वो चाय, पान की दुकानों से क्षेत्र के लोगों के बारे जानकारी हासिल करते हैं। जिसके बाद वे आर्थिक रूप से कमजोर लोगों की मदद कर दोस्ती कर लेते है और फिर घर आना-जाना शुरु कर देते है। वे चाय, पान, परचून आदि की दुकानों पर लोगों को पार्टी के नाम पर घर पर बुलाते हैं। जहां पर वे उनको माओवादियों के इतिहास और नीतियों के बारे में लोगों को बताकर उनको जाल में फंसाते हैं। कुछ दिनों में उनका विश्वास जीतकर उन्हें अपने ग्रुप में शामिल कर लेते हैं। इनमें सबसे उम्रदराज बंशीधर उर्फ चिंतन (75) है। इसके इशारे पर नक्सली सिटी में मूवेंट करते थे। इसे जेल की हाई सिक्योरिटी बैरक (27) में रखा गया है। यह किसी से भी बात कर चंद मिनट में उसका विश्वास जीत लेता है और फिर उसको अपने साथ जोड़ लेता था। इसके पिता सूरज पाल की मौत हो चुकी है। इसको इस फील्ड के बारे में काफी नॉलेज है। सोर्सेज की मानें तो जेल में बंद ये नक्सली अब अन्य कैदियों का ब्रेन वॉश कर उनको माओवादी विचारधारा से जोड़ रहे हैं। सोर्सेज की मानें तो उनकी विचारधारा से प्रभावित क्रिमिनल जेल से छूटने के बाद उनके दल में शामिल हो जाते है. 
कौन-कौन से नक्सली हैं
कानपुर जेल में आधा दर्जन माओवादी बंद हैं। इनमें सिर्फ एक माओवादी बंशीधर उर्फ चिन्तन को हाईसिक्योरिटी बैरक में रखा गया है जबकि अन्य साधारण बैरक में हैं। दो अन्य नक्सली दूसरे स्टेट्स में पेशी पर भेजा गया है। इसमें बच्चा प्रसाद उर्फ बलराज के खिलाफ आंध्रप्रदेश में केस दर्ज है। इसमें पेशी के लिए उसको बी-वारंट पर वहां भेजा गया है। वहीं राजेंद्र उर्फ अरविन्द को 18 मार्च 2010 को बी-वारंट पर तिहाड़ जेल भेजा गया था। तब से उसे वापस नहीं लाया जा सका. 
माओवादी का नाम               बैरक नंबर 
बंधीधर उर्फ चिन्तन                हाई सिक्योरिटी बैरक
शिवराज सिंह उर्फ बगदावल             09
कृपा शंकर उर्फ मनोज उर्फ उदित        13
अमरीश उर्फ राजेंद्र दास उर्फ संतोष      23 सी
नवीन प्रसाद सिंह उर्फ अशोक            22 सी
दीपकराम                                 10
तो नक्सलियों को पहुंचाई जा रही हैं गोलियां (पीडीएफ लगाएं) 
आई नेक्स्ट ने 1 अप्रैल 2012 के इश्यू में ‘दाग दी 2 लाख गोलियां’ हेडिंग के साथ पेज-1 न्यूज पब्लिश की थी। खबर में खुलासा किया गया था कि कानपुर में एक साल में दो लाख से ज्यादा कारतूस दाग दिये गये। हालांकि, यह कारतूस कहां दागे गये और इनके खरीददार कौन हैं? इसका रिकॉर्ड असलहा दुकानदार मेंटेन नहीं रखते ना ही तब के प्रशासनिक अफसरों ने इसकी जांच-पड़ताल ही करने की कोशिश करी। हालांकि, एनआईए की ओर से प्रशासनिक अफसरों को भेजे गए लेटर के बाद इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि यह गोलियां नक्सलियों को पहुंचाई जा रही हैं 
7 दिनों में जांच 
एनआईए ने प्रशासन को 7 दिनों में इस मुद्दे पर जांच रिपोर्ट भेजने के आदेश दिये हैं। एडीएम सिटी अविनाश सिंह ने कहा कि असलहा दुकानों की जांच की जिम्मेदारी सिटी मजिस्ट्रेट को दी गई है। उनसे कहा गया है कि एसीएम के जरिए डिफरेंट एरियाज की असलहा दुकानों की जांच करवाई जाए। रामदास आर्मरी के हथियारों-कारतूसों की बिक्री की रिकॉर्ड बुक दोबारा जांची जाएगी। एडीएम ने बताया कि पत्र में विभिन्न बिंदुओं के बाबत जानकारी मांगी गई है। 7 दिनों में जांच कम्प्लीट करके रिपोर्ट एनआईए को भेज दी जाएगी. 
वर्जन वर्जन  
मुझे थर्सडे को जांच करवाने के आदेश प्राप्त हुए हैं। सिटी मजिस्ट्रेट को जांच अधिकारी बनाया गया है। निर्धारित समय सीमा पर जांच पूरी करवाने के बाद रिपोर्ट संबंधित एजेंसी को भेज दी जाएगी. 
- अविनाश सिंह, एडीएम सिटी 
अभी इस तरह का कोई आदेश हमें मिला नहीं है। अगर एनआईए टीम से जांच का सहयोग मांगेगी तो उनकी मदद की जाएगी. 
- यशस्वी यादव, एसएसपी
नक्सलियों को हथियार और कारतूस कानपुर से सप्लाई हो रहे हैं नेशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) की इस सनसनीखेज जानकारी ने जिला पुलिस और प्रशासन की नींद उड़ाकर रख दी है। छत्तीसगढ़ के नक्सली हमले की जांच में जुटी एनआईए को इस मामले में कानपुर की रामदास आर्मरी के इनवॉल्वमेंट का पता चला है। इस जांच में सिटी के कई अन्य गनहाउस शॉप्स और उसके ओनर्स भी खुफिया रडार पर हैं. 

 

एक से ज्यादा का इनवॉल्वमेंट 

पिछले दिनों छत्तीसगढ़ में कांग्रेसी नेताओं की फ्लीट पर हुए नक्सली हमले की जांच एनआईए कर रही है। अब तक की जांच-पड़ताल में एनआईए को अहम सुराग मिले हैं। इनमें सबसे सनसनीखेज जानकारी नक्सलियों के पास मौजूद हथियारों और कारतूसों से संबंधित है। पता चला है कि नक्सलियों तक हथियारों और कारतूसों का जखीरा कानपुर से पहुंचाया जा रहा है। तफ्तीश में कानपुर की गुरूरामदास आर्मरी के इनवॉल्वमेंट का नाम सामने आया है। एनआईए को शक है कि यह काम अकेले एक गनहाउस का नहीं हो सकता। कुछ और असलहा दुकानें भी इसमें इनवॉल्व हैं. 

ट्रैक रिकॉर्ड भी जान लीजिए 

अब जरा गुरूरामदास आर्मरी की हिस्ट्री भी जान लीजिए। इसका ट्रैक रिकॉर्ड शुरुआत से ही गड़बड़ रहा है। देसी असलहों में फॉरेन वेपन्स के पाट्र्स जोडक़र ऊंचे दामों में बेचने में मुख्य अभियुक्त रहा है इस गनहाउस का ओनर। इस मामले में लखनऊ के नेशनल गन हाउस का इनवॉल्वमेंट भी पाया गया था। पिछले दिनों एटीएस ने छापा मारकर इन दोनों ही गनहाउसेज को सील कर दिया था। पूछताछ में एटीएस को पता चला कि रामदास आर्मरी का ओनर गुरूशरण सिंह और नेशनल गनहाउस का ओनर आपस में रिश्तेदार हैं। इस फर्जीवाड़े में वो कई सालों से संलिप्त थे. 

पटना में दाखिल है आरोप पत्र 

सन 2008 में खुफिया एजेंसियों ने पटना में कुछ प्रतिबंधित संगठनों के आतंकियों को पकड़ा था। एनआईए के अपर पुलिस अधीक्षक राजेश साहनी ने डीएम को जानकारी दी है कि जब इन आतंकियों से पूछताछ की गई तो मालूम हुआ कि उन्हें हथियारों-कारतूसों की सप्लाई कानपुर की गुरूरामदास आर्मरी से भी होती थी। जब एनआईए ने छानबीन की तो मालूम हुआ कि गुरूशरण की आर्मर शॉप से सन 2007-2011 के बीच सबसे ज्यादा कारतूस और शस्त्र बिहार-झारखंड में बेचे गये। जोकि बाद में किसी तरह नक्सलियों, आतंकियों और प्रतिबंधित संगठनों तक पहुंचाए गए। तब इस मामले में आरोपी पर पटना में आरोप पत्र भी प्रेषित किया गया।   

दूसरे संदिग्धों की तलाश भी जारी 

आर्मरी शॉप के दस्तावेजों में गड़बड़ी मिलने के बाद एनआईए काफी अलर्ट है। एजेंसी के रडार पर कुछ और गनहाउस भी शामिल हैं। इसीलिए एएसपी राजेश साहनी ने प्रशासन से कुछ संदिग्ध असलहा दुकानों के बिक्री की रिकॉर्ड बुक अच्छी तरह जांचने को कहा है। जिससे यह मालूम हो सके कि असलहे और कारतूस खरीदने वाले लोगों में सबसे ज्यादा किस स्टेट या डिस्ट्रिक्ट के हैं? बिक्री के दौरान सभी नियमों का पालन किया जा रहा है या नहीं? खरीददार की पर्सनल इनफॉर्मेशन जुटाई गई है या नहीं? 

बनाते हैं सॉफ्ट टारगेट 

कानपुर नक्सलियों के लिए हमेशा से ही शेल्टर प्वाइंट रहा है। यहां रहकर वो फाइनेंशियली वीकर सेक्शन के लोगों को माओवादी विचारधारा से जोडक़र अपना ग्रुप मजबूत करने में जुटे हैं। सिटी में मिलों और कुटीर उद्योगों की बंदी की वजह से फैली बेरोजगारी नक्सलियों को अपने मंसूबो में और कामयाब बना रही है। करीब तीन साल पहले एटीएस ने आठ नक्सलियों को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया था। पूछताछ में नक्सलियों ने पुलिस को बताया था कि वो चाय, पान की दुकानों से क्षेत्र के लोगों के बारे जानकारी हासिल करते हैं। जिसके बाद वे आर्थिक रूप से कमजोर लोगों की मदद कर दोस्ती कर लेते है और फिर घर आना-जाना शुरु कर देते है। वे चाय, पान, परचून आदि की दुकानों पर लोगों को पार्टी के नाम पर घर पर बुलाते हैं। जहां पर वे उनको माओवादियों के इतिहास और नीतियों के बारे में लोगों को बताकर उनको जाल में फंसाते हैं। कुछ दिनों में उनका विश्वास जीतकर उन्हें अपने ग्रुप में शामिल कर लेते हैं। इनमें सबसे उम्रदराज बंशीधर उर्फ चिंतन (75) है। इसके इशारे पर नक्सली सिटी में मूवेंट करते थे। इसे जेल की हाई सिक्योरिटी बैरक (27) में रखा गया है। यह किसी से भी बात कर चंद मिनट में उसका विश्वास जीत लेता है और फिर उसको अपने साथ जोड़ लेता था। इसके पिता सूरज पाल की मौत हो चुकी है। इसको इस फील्ड के बारे में काफी नॉलेज है। सोर्सेज की मानें तो जेल में बंद ये नक्सली अब अन्य कैदियों का ब्रेन वॉश कर उनको माओवादी विचारधारा से जोड़ रहे हैं। सोर्सेज की मानें तो उनकी विचारधारा से प्रभावित क्रिमिनल जेल से छूटने के बाद उनके दल में शामिल हो जाते है. 

कौन-कौन से नक्सली हैं

कानपुर जेल में आधा दर्जन माओवादी बंद हैं। इनमें सिर्फ एक माओवादी बंशीधर उर्फ चिन्तन को हाईसिक्योरिटी बैरक में रखा गया है जबकि अन्य साधारण बैरक में हैं। दो अन्य नक्सली दूसरे स्टेट्स में पेशी पर भेजा गया है। इसमें बच्चा प्रसाद उर्फ बलराज के खिलाफ आंध्रप्रदेश में केस दर्ज है। इसमें पेशी के लिए उसको बी-वारंट पर वहां भेजा गया है। वहीं राजेंद्र उर्फ अरविन्द को 18 मार्च 2010 को बी-वारंट पर तिहाड़ जेल भेजा गया था। तब से उसे वापस नहीं लाया जा सका. 

माओवादी का नाम               बैरक नंबर 

बंधीधर उर्फ चिन्तन                हाई सिक्योरिटी बैरक

शिवराज सिंह उर्फ बगदावल             09

कृपा शंकर उर्फ मनोज उर्फ उदित        13

अमरीश उर्फ राजेंद्र दास उर्फ संतोष      23 सी

नवीन प्रसाद सिंह उर्फ अशोक            22 सी

दीपकराम                                 10

तो नक्सलियों को पहुंचाई जा रही हैं गोलियां  

आई नेक्स्ट ने 1 अप्रैल 2012 के इश्यू में ‘दाग दी 2 लाख गोलियां’ हेडिंग के साथ पेज-1 न्यूज पब्लिश की थी। खबर में खुलासा किया गया था कि कानपुर में एक साल में दो लाख से ज्यादा कारतूस दाग दिये गये। हालांकि, यह कारतूस कहां दागे गये और इनके खरीददार कौन हैं? इसका रिकॉर्ड असलहा दुकानदार मेंटेन नहीं रखते ना ही तब के प्रशासनिक अफसरों ने इसकी जांच-पड़ताल ही करने की कोशिश करी। हालांकि, एनआईए की ओर से प्रशासनिक अफसरों को भेजे गए लेटर के बाद इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि यह गोलियां नक्सलियों को पहुंचाई जा रही हैं 

7 दिनों में जांच 

एनआईए ने प्रशासन को 7 दिनों में इस मुद्दे पर जांच रिपोर्ट भेजने के आदेश दिये हैं। एडीएम सिटी अविनाश सिंह ने कहा कि असलहा दुकानों की जांच की जिम्मेदारी सिटी मजिस्ट्रेट को दी गई है। उनसे कहा गया है कि एसीएम के जरिए डिफरेंट एरियाज की असलहा दुकानों की जांच करवाई जाए। रामदास आर्मरी के हथियारों-कारतूसों की बिक्री की रिकॉर्ड बुक दोबारा जांची जाएगी। एडीएम ने बताया कि पत्र में विभिन्न बिंदुओं के बाबत जानकारी मांगी गई है। 7 दिनों में जांच कम्प्लीट करके रिपोर्ट एनआईए को भेज दी जाएगी. 

मुझे थर्सडे को जांच करवाने के आदेश प्राप्त हुए हैं। सिटी मजिस्ट्रेट को जांच अधिकारी बनाया गया है। निर्धारित समय सीमा पर जांच पूरी करवाने के बाद रिपोर्ट संबंधित एजेंसी को भेज दी जाएगी. 

- अविनाश सिंह, एडीएम सिटी 

अभी इस तरह का कोई आदेश हमें मिला नहीं है। अगर एनआईए टीम से जांच का सहयोग मांगेगी तो उनकी मदद की जाएगी. 

- यशस्वी यादव, एसएसपी