बहस इतनी तीखी और ज़ोरदार नहीं थी जितनी दूसरे राउंड की थी। आज यहाँ विशेषज्ञों की राय ये थी की आखरी राउंड बराक ओबामा के नाम रहा। लेकिन इसका मतलब ये नहीं था की मिट रोमनी की पराजय हुई। विशेषज्ञों के अनुसार मतदाता मिट रोमनी को राष्ट्रपति के पद पर भेजने से घबराएंगे नहीं यानी उन्हें मिट रोमनी पर भरोसा है। पर आम तौर से यहाँ विशेषज्ञों का कहना था कि बराक ओबामा आक्रमण करने आए थे और ऐसा महसूस हुआ कि मिट रोमनी हमले का जवाब हमलों से देने के बजाय राष्ट्रपति से कई मुद्दों पर सहमत नज़र आए।

मिट रोमनी के समर्थकों के अनुसार वो ये जताना चाहते थे की वो अगर राष्ट्रपति बने तो राष्ट्रपति बुश की तरह देशों पर हमले नहीं करेंगे। वो शांति का पैगाम लेकर आए थे। लेकिन बराक ओबामा के समर्थकों का कहना था की मिट रोमनी की विदेश नीतियाँ बदलती रहती हैं।

पाकिस्तान पर सहमति

पाकिस्तान पर ड्रोन हमलों पर मिट रोमनी बराक ओबामा की नीति से सहमत नज़र आए लेकिन मिट रोमनी का कहना था पाकिस्तान का साथ देना अमरीका के लिए ज़रूरी है। उनके अनुसार पाकिस्तान एक दोस्त है और इसे अपना काम निकल जाने के बाद छोड़ना नहीं चाहिए।

आज की बहस विदेश नीतियों पर होनी थी। और बहस से पहले ये कहा जा रहा था की ओबामा विदेशी मुद्दों पर रोमनी पर हावी होंगे। लगभग ऐसा ही हुआ। इस लिए कुछ विशेषज्ञों के अनुसार बहस के दौरान मिट रोमनी जान बूझ कर विदेशी मुद्दों से हट कर घरेलू मुद्दों पर बातें करने में अधिक दिलचस्पी ले रहे थे।

बहस का पहला राउंड मिट रोमनी को गया था जबकि दूसरे राउंड में ओबामा ने आक्रामक रुख अख़्तियार ज़रूर किया लेकिन ये बहस बराबरी पर ख़त्म हुई थी। पहली बहस में फीके पड़ गए ओबामा पर दबाव था कि वो बाक़ी बचे दोनों राउंड में अच्छा प्रदर्शन करें।

बहस का असर

लेकिन यहाँ ये बताना ज़रूरी है की बहस के इन तीन राउंड का चुनाव पर सीधा असर नहीं होगा। अमरीका के नौ राज्यों में अधिकतर लोगों ने अपना मूड नहीं बनाया है कि वो किस उमीदवार को वोट देंगे। दोनों नेताओं की कोशिश ये थी कि ऐसे लोगों को लुभाएँ और उनके वोट हासिल करें।

चुनाव 6 नवम्बर को होगा। हाल में किए गए कई सर्वेक्षणों में क्लिक करें दोनों उम्मीदवार लोकप्रियता में बराबरी पर हैं। शुरूआती दौर में ओबामा रोमनी से काफी आगे थे लेकिन उन्होंने अब इस अंतर को लगभग ख़त्म कर दिया है।

अमरीका में चुनाव से पहले डेमोक्रेटिक पार्टी और रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवारों के बीच टीवी पर बहस का आयोंजन एक परंपरा है जिसकी शुरुआत 1960 में हुई थी। ये चुनावी मुहीम का एक अहम हिस्सा माना जाता है। ये एक अवसर होता है दोनों उम्मीदवारों को मतदाताओं को लुभाने का, ख़ास तौर से उनको जो फैसला नहीं कर पाते हैं कि वोट किस उम्मीदवार को दें।

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