कानपुर (ब्यूरो)। कैंसर का नाम सुनते ही इंसान के हांथ पांव फूल जाते हैैं। क्योंकि जितनी खतरनाक इसका नाम है उतना ही डैैंजर इसका टेस्टिंग प्रोसेस भी है। इसकी टेस्टिंग के लिए यूज की जाने वाली टेक्निक्स में रेड्यूस होने वाले रेडिएशन और केमिकल के यूज से पेशेंट को कई तरह की परेशानियां होती हैं। इसके अलावा कैंसर न होने पर जांच मात्र से ही पेशेंट परेशान हो जाता है। ऐसे में आईआईटी कानपुर ने एक ऐसी डिवाइस को डेवलप किया है जो बिना रेडिएशन और केमिकल का यूज किए ओरल कैंसर का पता लगाएगी। आईआईटी के केमिकल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट की ओर से डेवलप की गई डिवाइस का नाम &मुख परीक्षक: ए नॉन इंवेसिव हैैंड हेल्ड ओरल कैंसर टेस्टिंग डिवाइस&य रखा गया है। इसके इंवेंटर केमिकल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के प्रोफेसर जयंत के सिंह और उनकी टीम है।

ऐसे काम करेगी डिवाइस
यह एक हैैंडहेल्ड डिवाइस है जो कि एक स्पेशल लाइट और कैमरे की मदद से रियल टाइम डाइग्नोसिस करती है। इसके बाद मशीन लर्निंग प्रोसेस से ओरल म्यूकोसा इमेज से नार्मल, प्रीमैलिग्नेंट या मैलिग्नेंट कंडीशन को बताता है। इसके रिजल्ट को आप स्मार्टफोन एप या क्लाउड सर्वर पर ले सकते हैैं। यह अभी तक की देश मेें चल रही सबसे लेटेस्ट ओरल कैंसर डिटेक्शन टेक्निक है। बताते चलें कि यह डिवाइस पोर्र्टेबल है, जिसको कहीं भी लेकर जाया जा सकता है। इस इनवेंशन आईआईटी कानपुर के टेक ट्रांसफर नाम के एक्स एकाउंट पर भी शेयर किया गया है।

लाइसेंसिंग के लिए तैयार
आईआईटी के केमिकल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट की ओर से तैयार की गई यह डिवाइस टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के लिए तैयार है। इसके लिए किसी कंपनी या स्टार्टअप आदि को आईआईटी के टेक्नोलॉजी ट्रांसफर आफिस में संपर्क करना होगा। इस डिवाइस के टीआरएल को जानने के लिए सात पायलट डिमांस्ट्रेटेड किए जा चुके हैैं।

टॉप में है ओरल कैंसर प्राब्लम
ओरल कैंसर की बात करें तो ग्लोबल लेवल पर टॉप कैंसर प्राब्लम्स में से एक है। अगर आंकड़ों की बात करें तो वल्र्ड में टोटल कैंसर के मामले में से 40 परसेंट मामले ओरल कैंसर के ही सामने आते हैैं। ऐसे में यह डिवाइस बिना किसी नुकसान के जल्द से जल्द रिजल्ट देगी। इससे सबसे बड़ा बेनीफिट यह होगा कि प्राइमरी स्टेज पर ही कैंसर का पता चल जाएगा, जिससे ओरल कैंसर से होने वाली मौतों की संख्या में कमी आएगी।

यह हैैं ओरल कैंसर होने की वजह
अगर ओरल कैंसर होने के कारणों की बात करें तो स्मोकिंग, टोबैको और अल्कोहल के सेवन से इसके होने की संभावनाएं प्रबल होती हैैं। यह होंठ, जीब या मुंह के किसी भी हिस्से को प्रभावित करता है। शुरुआती स्टेज में दाने या कट आदि के होने का सिम्टम सामने आता है। अगर शुरुआती स्टेज में ही इसको डिटेक्ट कर लिया जाए तो इसके खतरनाक होने की संभावना कम रहती है। टेस्टिंग में देरी कराने से यह दिन पर दिन डेवलप होकर खतरनाक रुप धारण करता है। अधिकतर मौत के मामलों की बात करें तो देरी से ट्रीटमेंट शुरु होने के कारण मौत होती हैैं। ऐसे में अगर मुंह में कोई प्राब्लम हो तो तत्काल टेस्टिंग कराएं।