भारत की सरकार से ये सवाल पूछ रहे बीस भारतीयों के एक दल ने भारत प्रशासित कश्मीर की राजधानी श्रीनगर से इम्फ़ाल (मणिपुर) तक की अपनी यात्रा को ' इरोम शर्मिला बचाओ जन-कारवां ' नाम दिया है।

दस साल से अनशन कर रही 37 वर्षीया इरोम को नाक के रास्ते जबरन तरल आहार दिए जाने के बावजूद उनका वज़न घटकर अब मात्र 35 किलोग्राम रह गया है और वो मरणासन्न दिखने लगी हैं।

मानवाधिकार के लिए संघर्षरत इरोम पूर्वोत्तर राज्यों में लागू ' सशस्त्र बल विशेषाधिकार क़ानून ' के कथित दुरूपयोग के मद्देनज़र इस क़ानून को निरस्त करने की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर हैं।

इसे गांधीवादी उसूलों वाला सत्याग्रह और अहिंसक प्रतिरोध मानने वालों में से 20 लोगों का एक जत्था इरोम के समर्थन में ' जन-चेतना ' जगाने 16 अक्तूबर को निकला है। यह दल 23 अक्टूबर को पटना में था।

इस मुहिम के संयोजक फ़ैसल ख़ान ने पटना में पत्रकारों को बताया कि 27 अक्तूबर को उनका यह दल इम्फ़ाल पहुँच कर इरोम से मिलेगा और उन्हें बताएगा कि देश के तमाम ऐसे लोग उनके साथ हैं, जो नफ़रत की गोली से नहीं, अमन की बोली से इस देश को एकजुट रखना चाहते हैं।

उन्होंने कहा- '' सम्बंधित क़ानून को सही या ग़लत बताकर उसे ख़त्म करने की मांग करने हम नहीं निकले हैं, हमारी मांग सिर्फ़ ये है कि सरकार इरोम से खुले और सच्चे मन से पहले बात तो करे ! गाँधी के इस देश में अहिंसक प्रतिरोध करती हुई एक अमन-पसंद लड़की को बचा लेने का आख़री मौक़ा भी कहीं हाथ से ना निकल जाय, हमारी मूल चिंता यही है। ''

दस राज्यों से जुड़े लोगों का यह दल जब पटना में शांति-सद्भाव के गीत गाता हुआ और इरोम के लिए शुभकामनाएं बटोरता हुआ सड़कों पर निकला तो उसके साथ कई आम आदमी,महिलाएं और स्कूली-बच्चे भी जुड़ गए।

' सेव शर्मिला सोलिडेरिटी कैम्पेन ' नामक संगठन की तरफ़ से चलाए जा रहे हस्ताक्षर अभियान में भी यहाँ के लोगों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया।

इस पूरे आयोजन की सबसे ख़ास बात ये थी कि इसमें शामिल सभी सीधे-सादे लोग थे और बिना किसी तड़क-भड़क के, बिल्कुल सादगी के साथ इरोम शर्मिला के प्रति भावुक समर्थन व्यक्त किया गया।

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