फिर खुलेगी नई सडक़ के &पहलवानों&य की फाइल
कानपुर (ब्यूरो)। गैंग्स आफ वासेपुर फिल्म तो आपने देखी होगी। जिसमें कुरैशियों और सरदार खान के बीच खूनी लड़ाई पर्दे पर आयी थी। वर्चस्व के लिए सडक़ों पर खून बहा, गोलियों की तड़तड़ाहट, बम धमाकेइतना सब इस दुश्मनी में कई पीढिय़ों तक चला। बताते हैं कि ये एक असल कहानी पर बनी फिल्म थी। ऐसी ही असल कहानी कानपुर शहर से भी जुड़ी है। जहां नई सडक़ पर पहलवानों की लड़ाई से शुरू हुआ खून खराबा कई दशकों तक चला। जिसमें दोनों ओर से मिलाकर 80 से ज्यादा लोगों की हत्या हुई। वर्चस्व की इस जंग में नई सडक़ को खूनी सडक़ के नाम से भी जाना जाने लगा। इस फिल्म का नाम &बाबर&य था। इस गैैंग के कुछ सदस्यों के नाम अपराध की दुनिया के &आका&य दाऊद से भी जुड़े थे। जिसकी वजह से इस गैैंग को डी-2 नाम दिया गया।

नई सडक़ उपद्रव में आया कनेक्शन
इंटरनेशनल गैैंग्स लिस्टेड किए गए और इस गैैंग को आई एस-2 के नाम से जाना जाने लगा। गैैंग के ज्यादातर सक्रिय पहलवान पुलिस एनकाउंटर में मारे गए, कुछ जेल चले गए। इसके बाद इस गैैंग की फाइल ठंडे बस्ते में डाल दी गई। कुछ महीने पहले शहर में हुए बड़े उपद्रव में इस गैैंग का कनेक्शन जुड़ गया तो इसके बाद पुलिस सतर्क हुई। इंटेलीजेंस एक्टिव हुई तो शासन के कान खड़े हो गए। फाइलों का आदान प्रदान और शासन और कमिश्नरेट पुलिस के बीच तमाम सूचनाओं का आदान प्रदान हुआ, जिसके बाद इस गैैंग की फाइल निष्क्रिय ड्राïअर से निकाल कर नए बदमाशों की इंट्री शुरू कर दी गई है।

70 के दशक में शुरू हुई थी खूनी जंग
मुंबई के अंडरवल्र्ड की मेकिंग के दौरान ही कानपुर में शुरू हुई रक्तपात की इस कहानी को जानना भी बेहद जरूरी है। जिसकी शुरुआत 70 के दशक से होती है। तीन जून 2022 को शहर में भाजपा नेता नुपूर शर्मा के विवादित बयान को लेकर नई सडक़ इलाके में हिंसा हुई थी। इसके बाद कई दिनों तक तनाव बरकरार रहा। नई सडक़ कानपुर के बेहद संवेदनशील इलाकों में शामिल है। इसके साथ ही इस सडक़ से जुड़ा एक इतिहास भी है जोकि खूंरेजी और वर्चस्व से जुडा है।

बाबू पहलवान और दुन्नू पहलवान के बीच
नई सडक़ कानपुर में बेकनगंज और मूलगंज थानों के बीच की एक सडक़ है। ये शहर के मुख्य व्यापारिक इलाकों से गुजरते हुए रेलवे स्टेशन तक जाती है। कहानी शुरू होती है 70 के दशक में बाबू पहलवान और दुन्नू पहलवान से। इन दोनों के बीच इलाके में वर्चस्व को लेकर लड़ाई शुरू होती है। इसके बाद दूसरी पीढ़ी आती है जिसमे वासेपुर के सरदार खान के जैसे ही एक किरदार फहीम पहलवान की एंट्री होती है। एक तरफ फहीम पहलवान और दूसरी तरफ से शम्मू कुरैशी। आगे चल कर दो गैंग बनते हैं।

कानपुर से मुंबई तक धाक
पहला गैंग फहीम पहलवान का होता है तो दूसरा डी-2 गैंग बनता है। दोनों गैंग रंगदारी, चरस गांजा की बिक्री, सुपारी किलिंग के काम करते हैं। जिसमें वर्चस्व को लेकर इनके बीच खूनी लड़ाई होती है। 70 के दशक में ही कानपुर के फूल वाली गली इलाके में करीम लाला की भी काफी धाक जम चुकी होती है। जिसकी आगे चल कर फहीम गैंग से भी अदावत होती है। लाला से जुड़े अतीक अहमद और शफीक ने ही डी-2 गैंग की नींव डाली थी।

90 के दशक में पहलवान की बोलती थी तूती
फहीम उर्फ अतीक पहलवान के खिलाफ कानपुर के अलग अलग थानों में तीन दर्जन से ज्यादा मुकदमे दर्ज थे। 90 के दशक में फहीम की तूती कानपुर में बोलती थी। फहीम ने कइयों का खून बहाया और इसी के कारण चमनगंज स्थित एक सडक़ का नाम खूनी सडक़ पड़ा। स्थानीय लोग बताते हैं कि फहीम उर्फ अतीक ने बचपन से ही पहलवानी के दांव पेंच सीखे और कई पहलवानों को अखाड़े में चित भी किया। इस दौरान उसने अपराध की दुनिया में भी कदम रखा।

मई 2012 तक चली खूनी जंग
फहीम उर्फ अतीक पहलवान और फिर डी-2 गैंग के बीच चली खूनी जंग में हत्याओं का सिलसिला 70 के दशक से शुरू होकर मई 2012 तक चला। जब इस दुश्मनी में फहीम पहलवान के बेटे फरहान का कत्ल हुआ , लेकिन फहीम पहलवान की मौत किसी खूंरेजी में नहीं बल्कि हार्ट अटैक की वजह से 2019 में हुई। वह डायबिटीज का मरीज था। राशन घोटाले में सजा काटने के बाद वह जेल से छूटा था। उसके घर पर इसी खुशी में पार्टी रखी गई थी। बताया जाता है कि वहां उसकी मौत रसगुल्ला खाते वक्त आए हार्ट अटैक आने से हुई। फहीम मौत से पहले 15 साल तक मुस्लिम एसोसिएशन का अध्यक्ष भी रहा और उसने सियासत की तरफ भी कदम बढ़ाए। मेयर के चुनाव में एक पार्टी से दावेदारी भी पेश कर दी थी।

डी- टू गैैंग का है ये इतिहास
इस बीच आपको थोड़ी जानकारी उस डी-2 गैंग के बारे में भी दे दें। जिससे फहीम पहलवान गैंग की अदावत चलती थी। इस गैंग का इतिहास भी 40 साल पुराना है। एक वह दौर भी रहा जब इस गैंग से जुड़े बदमाश दाउद इब्राहिम से मिले। इसके बाद इस गैंग ने कानपुर से निकल कर पहले यूपी फिर मुंबई, आंध्र प्रदेष, दिल्ली, प। बंगाल में भी अपनी जड़ें जमा लीं। एक दौर था कि इस गैंग के शूटर्स मुंबई अंडरवल्र्ड के लिए भी काम करते थे।

सुपारी किलिंग के लिए इन्हें बुलाया जाता था। यूपी एसटीएफ के निशाने पर ये गैंग भी रहा। डीजीपी रहे विक्रम सिंह 3 साल तक कानपुर के भी एसएसपी रहे। यही वो दौर था जब उन्होंने इन गैंग्स पर नकेल कसना शुरू किया। कई पेशेवर अपराधियों के एनकाउंटर किए। इस दौरान एनकाउंटर स्पेशलिस्ट के तौर पर उभरे ऋ षिकांत शुक्ला ने कानपुर में 22 से ज्यादा एनकाउंटर किए।