कानपुर (ब्यूरो)। डॉ। सरोज चूड़ामणि गोपाल का नाम उन महिलाओं में लिया जाता है, जिन्होंने करियर में आगे बढऩे के लिए कई मिथों को तोड़ा। उन्होंने डॉक्टर बनने के लिए परिवार की रूढि़वादी सोच बदली। अब 79 वर्ष की उम्र में भी उनके कदमों में कोई ठहराव नहीं आया है। जिस उम्र में लोग रिटायर होकर आराम फरमा रहे होते हैं, उस उम्र में डॉ। सरोज चूड़ामणि गोपाल एक नए सफर पर चल पड़ी हैं। उन्होंने आईआईटी कानपुर के पीएचडी प्रोग्राम में एडमिशन लिया है। पद्मश्री डॉ। सरोज चूड़ामणि गोपाल का यह नया सफर असंख्य महिलाओं के लिए प्रेरणा है।

बच्चों में पैराप्लेजिया का ट्रीटमेंट ढूंढेंगी
बच्चों में लाइलाज बीमारी पैरेप्लेजिया का अभी तक सस्टेनेबल ट्रीटमेंट नहीं है। इस लाइलाज बीमारी का ट्रीटमेंट पद्म श्री डॉक्टर सरोज चूरामणि गोपाल खोजेंगी। इस काम के लिए उन्होंने आईआईटी कानपुर के बायो साइंस एंड बायो इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट में पीएचडी में रजिस्ट्रेशन कराया है। 79 साल की डॉक्टर सरोज के पीएचडी सुपरवाइजर प्रोफेसर अशोक कुमार होंगे। इन्होंने 8 जनवरी को आईआईटी कैंपस आकर रजिस्ट्रेशन की फॉर्मेलिटी को पूरा किया है। खास बात यह भी है कि सरोज आईआईटी कानपुर के इसी डिपार्टमेंट की विजिटिंग फैकल्टी भी हैं।

3डी प्रिंटिंग से ठीक की जा रही स्पाइनल कॉर्ड सर्जरी
बीएसईबी डिपार्टमेंट के प्रोफेसर अशोक कुमार ने बताया कि स्पाइनल कॉर्ड में इंजरी से पैरालिसिस होता है। बच्चों में इस बीमारी (पैराप्लेजिया) का कोई ट्रीटमेंट नहीं है। आईआईटी कानपुर रीजेनरेटिव मेडिसिन पर काम करता है। हमने रिसेंटली 3डी प्रिंटिंग से स्पाइनल कॉर्ड इंजरी को ठीक करने पर काम किया है। इसमें हम पॉलीमरीक मैटेरियल से 3डी ट्रांसप्लांट बनाते हैं।

इंप्लांट को बनाएंगी पावरफुल
फ्रोफेसर अशोक कुमार का कहना है कि आईआईटी में रिसर्च के दौरान डा। सरोज चूरामणि आईआईटी द्वारा डेवलप स्पाइनल कॉर्ड के 3डी इंप्लांट को पावरफुल बनाने पर काम करेंगी। इसको पावरफुल बनने के लिए बोन मैरो के स्टेम सेल के फंक्शनल मॉलिक्युल्स का यूज किया जाएगा। चूंकि डॉक्टर सरोज पीडियाट्रिक सर्जन हैं, ऐसे में उनका काम बच्चों पर रहेगा।

एम्स की पीडियाट्रिक सर्जन हैं डॉक्टर सरोज
डॉ। सरोज चूरामणि गोपाल , एक भारतीय डॉक्टर, चिकित्सा शिक्षाविद् हैं। देश में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) नई दिल्ली की पहली महिला एमसीएच पीडियाट्रिक सर्जन मानी जाती हैं। वह वर्तमान में नेशनल एकेडमी ऑफ मेडिकल साइंसेज (भारत) की अध्यक्ष हैं। मेडिकल एंड मेडिकल एजुकेशन के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें 2013 में भारत सरकार द्वारा चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से सम्मानित किया गया।
इनका जन्म 25 जुलाई 1944 को मथुरा में हुआ था। 1966 में आगरा के सरोजिनी नायडू मेडिकल कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और 1969 में उसी कॉलेज से एमएस किया। इनका करियर 1973 में चिकित्सा विज्ञान संस्थान, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के फैकल्टी में शामिल होने से शुरू हुआ, जहां उन्होंने 2008 में अपने रिटायरमेंट तक मेडिकल कॉलेज अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक और मेडिकल फैकल्टी के डीन के रूप में काम किया। उस वर्ष, उन्हें किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू), लखनऊ के वीसी के रूप में चुना गया, वह केजीएमयू का नेतृत्व करने वाली पहली महिला बनीं।

आसान नहीं थी डॉक्टरी की राह
डॉ। सरोज ने जब घर पर मेडिकल की पढ़ाई करने की इच्छा जताई तो उनके घरवालों ने साफ मना कर दिया था। फिर 5 दिनों तक भूख हड़ताल पर रहने के बाद उनके घरवाले इस शर्त पर मान गए कि वह आगरा के सरोजिनी नायडू मेडिकल कॉलेज से ही पढ़ाई करें। इसके बाद वह जनरल सर्जरी में पोस्ट ग्रेजुएशन करना चाहती थीं, जिसके लिए भी उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा। उन्होंने आगरा कॉलेज और एम्स, दिल्ली से डॉक्टरी की पढ़ाई की है। डॉ। सरोज ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के चिकित्सा विभाग में बतौर लेक्चरर, मेडिकल सुपरिंटेंडेंट और डीन अपनी सेवाएं दी हैं।