कानपुर (ब्यूरो) पांच दिवसीय स्वर संगम घोष में शामिल होने सैटरडे रात राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर संघचालक डा। मोहन भागवत शहर आए। संडे को नानाराव पार्क में आयोजित महर्षि वाल्मीकि जयंती को संबोधित करते हुए यह बात कही। डॉ। भागवत ने ङ्क्षहदुओं की एकजुटता की कार्ययोजना वाल्मीकि समाज के लोगों को समझाई। कहा कि अपने मन में सत्य, प्रेम व करुणा लाएं। जैसे महर्षि वाल्मीकि ने माता सीता व लव-कुश को संरक्षण दिया, उसी तरह वर्तमान समाज में आप सब अपनों की ङ्क्षचता करें। संपूर्ण समाज व भारतवर्ष अपना है और सदैव रहेगा। इसकी ङ्क्षचता सभी को करनी होगी। जैसे महर्षि वाल्मीकि जी ने संपूर्ण ङ्क्षहदू समाज के लिए काम किया। संघ ठीक उसी तरह अपनेपन का काम कर रहा है

स्वयंसेवकों से मित्रता करिए
सर संघचालक जोश भरते हुए कहा कि विश्वास रखें, कोई भी हालात हो हमें थकना नहीं, हारना नहीं और आगे बढ़ते रहना है। खुद योग्य बनना है और समाज को योग्य बनाना है। देश भर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सबके साथ ताकत से खड़ा है। अपने शहर-गांव की शाखा में जाइए, स्वयंसेवकों से मित्रता करिए, जीवन बदल जाएगा।
विश्वास करके साथ खड़े हों
महर्षि वाल्मीकि ने राम-रावण युद्ध पर रामायण में लिखा है कि रावण पर विजय मिलने से पहले सिर्फ राम व वानर थे। रावण रथी विरथ रघुवीरा, लेकिन जब कुंभकरण के मरने के बाद लोगों को विश्वास हो गया कि वह जीत सकते हैं तो फिर सब साथ आ गए। वैसे ही वर्तमान में संघ पर विश्वास करके साथ खड़े हों। इस एकजुटता को हर कोई याद रखेगा।

राष्ट्र हर किसी के लिए है
सर संघचालक ने कहा कि महर्षि वाल्मीकि ही थे जिन्होंने प्रभु श्रीराम का महात्म्य दुनिया को बताया। वह और उनकी रामायण नहीं होते तो शायद हमें कुछ पता ही नहीं होता। वह प्रभु श्रीराम का चरित्र समाज के सामने लाए, जिससे आदर्श स्थापित हुआ। उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम में श्रीराम सबके आदर्श बने। उनके नाम का जाप किया जाता है, हर घर प्रतिष्ठित होते हैं। इसलिए वाल्मीकि जी का ठीक वैसे ही स्मरण किया जाना चाहिए, जैसे राम के साथ हनुमान का होता है। यह संपूर्ण समाज, राष्ट्र हर किसी के लिए है।

देशी घी की मिठाई नहीं बतासा
समारोह के मंच पर सर संघचालक मोहन भागवत, वाल्मीकि विकास परिषद के संस्थापक किशन लाल सुदर्शन व मोतीझील मेला कमेटी के महामंत्री अनिल समुद्रे बैठे थे। संचालन सामाजिक समरसता मंच के कानपुर प्रांत संयोजक डा रतन लाल कर रहे थे। किशन लाल ने संबोधन में संघ चालक को लेकर कहा कि जहां शुद्ध देशी घी की मिठाई रखी हो तो बाकी को कोई क्या देखे। इसके बाद जब संघ प्रमुख ने अपने संबोधन की शुरुआत करते हुए कहा कि अभी उन्हें देशी घी की मिठाई कहा जा रहा था, लेकिन वह बताशा ही बने रहना ठीक समझते हैं, क्योंकि वह हर किसी की पहुंच में है।

पहली बार ऐसे कार्यक्रम में आए
महर्षि वाल्मीकि जयंती समारोह आयोजन समिति व सामाजिक समरसता मंच की ओर से आयोजित कार्यक्रम में सर संघचालक ने कहा, वह पहली बार सार्वजनिक वाल्मीकि जयंती समारोह के आयोजन में आए हैं। उन्होंने बताया कि नागपुर के पहले वाल्मीकि मंदिर के उद्घाटन में वह गए थे

वृक्ष सद्पुरुष जैसे होते
सर संघचालक ने बहेलिए के पक्षी का शिकार करने की कहानी से वाल्मीकि जी के मन में पैदा हुई संवेदना और क्षोभ से सबको जोड़कर कहा कि बिना संवेदना मनुष्य पशुओं की तरह है। करुणा चार भाव में से एक है। खजूर के पेड़ का उदाहरण देकर कहाकि ऐसी ऊंचाई क्या, जो न फल दे सके और न ही छाया। वृक्ष सद्पुरुष जैसे होते हैं, जो अपना सब कुछ बांट देते हैं। मनुष्य के मन मे आकांक्षा होती है। वह आगे बढऩा चाहता है। च्ह अच्छा बने। करुणा का भाव रखें, क्योंकि इसके बिना धर्म पूरा नहीं होता।

कर्तव्य से ही सब कुछ नहीं
सर संघचालक ने समझाया कि राम व सीता कभी नहीं बिछड़े, जब रावण माता सीता को ले गया तब भी उनके मन एक रहे। राजा बनने के बाद जब माता सीता का त्याग राम ने किया तो वह यंत्रवत हो गए। उनके जीवन में रस नहीं रहा। रस भगवान का स्वरूप है। केवल कर्तव्य से ही सब कुछ नहीं। उन्होंने उदाहरण दिया कि फाइव स्टार होटल में कितना भी ठंडा पानी मिले, लेकिन उसकी घर के जल से बराबरी नहीं हो सकती।

इमली के पत्ते पर नौ लोग
संघ प्रमुख ने वाल्मीकि समाज के लोगों से संवाद करते हुए कहा कि संविधान में ऐसी व्यवस्था करनी है कि हर कोई आगे बढ़े। राजा कानून बनाकर काम कर रहा है। डॉ। बाबा साहब आंबेडकर ने दलित-पिछड़े आगे बढ़ें। इसकी व्यवस्था दी थी। व्यवस्था के साथ मन बनाना होगा तभी सामाजिक समरसता आएगी। 1925 से दूसरे डाक्टर साहब ने नागपुर से सामाजिक समरसता लाने की शुरुआत की। वही संघ है, जो अपनेपन का काम कर रहा। उन्होंने बंगाली कहावत भी सुनाई और कहा कि अपनापन हो तो सब एक हो सकते हैं, जैसे कहावत कहती है कि इमली के पत्ते पर नौ लोग बैठ सकते हैं।

संघचालक के चार महत्वपूर्ण संदेश
-कानून-व्यवस्था पर विश्वास के साथ अपने समाज को शिक्षित व संस्कारवान बनाएं।
-अपने अंदर संवेदना लाएं और नशामुक्ति के साथ खराब आदतें भी छोड़ें।
-समाज में च्मलजुल कर स्वच्छता का पालन करो, संपूर्ण मानव कल्याण के सिपाही सब बनेंगे।
-अपना दुख सबका दुख। अपना सुख सबका सुख सच्झें, तभी सब अच्छे होंगे और आगे बढ़ेंगे।