उनका संबंध ज़िला रावलपिंडी के तालुक़ा गोजर ख़ान के इलाके मंदरा से है और जब सिंध प्रांत में सिंचाई व्यवस्था शुरु हुई थी तो उनका परिवार सिंध के ज़िले सांघड़ में आबाद हो गया था। राजा परवेज़ अशरफ का 1950 में सांघड़ में जन्म हुआ और उन्होंने प्राथमिक शिक्षा भी वहीं प्राप्त की।

बाद में उन्होंने सिंध विश्वविद्यालय से ग्रैजूएशन की डिग्री हासिल की और अपने पैतृक गाँव गोजर ख़ान आ गए। उन्होंने शुरु में जूते बनाने का कारख़ाना बनाया लेकिन बाद में प्रॉपर्टी का व्यापार करने लगे।

राजा परवेज़ अशरफ के चचा पूर्व सैन्य शासक अयूब ख़ान के मंत्रिमंडल में रह चुके हैं। फिर उन्होंने भी राजनीति में कदम रखा। 1988 से वे पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के लिए रावलपिंडी की राजनीति में काफी अहम भूमिका अदा करते रहे हैं।

वे 1990, 1993 और 1997 के आम चुनावों में विपक्षी पार्टी मुस्लिम लीग नवाज़ और धार्मिक दल जमात-ए-इस्लामी के उम्मीदवारों के हाथों हार गए। 2002 के आम चुनावों के बाद पहली बार वे संसद तक पहुँचे और संसद के निचले सदन राष्ट्रीय ऐसेंबली के सदस्य बने। उसके बाद 2008 के आम चुनावों में उन्हें कामयाबी मिली और राष्ट्रीय ऐसेंबली के सदस्य बने।

वर्ष 2008 के आम चुनाव के बाद जब यूसुफ़ रज़ा गिलानी ने प्रधानमंत्री पद संभाला तो उनको पानी और बिजली का मंत्रालय सौंपा गया। पद संभालते ही उन्होंने दिसंबर 2009 तक देश से बिजली की कटौती को ख़त्म करने की घोषणा की जो उन के लिए काफी मंहगी साबित हुई। जिसके बाद उन्होंने 09 फरवरी 2011 को अपने पद से इस्तिफा दे दिया।

जब वे पानी और बिजली के केंद्रीय मंत्री थे तब उन पर भ्रष्टाचार का मामला सामने आया और वह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। राजा परवेज़ अशरफ़ पर आरोप है कि उन्होंने रेन्टल पॉवर प्रॉजेक्ट में भारी भ्रष्टाचार किया।

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