- गंगा का जलस्तर गिरने से सप्लाई के लिए भेजे जाने वाले रॉ वाटर में निकल रहे कीड़े

- जलकल जीएम ने डीएम के साथ पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड को लेटर लिखकर मांगी मदद

- वाटर ट्रीटमेंट का खर्च बढ़कर दोगुना हुआ, कानपुराइट्स की सेहत खतरे में

KANPUR: गंगा का जलस्तर लगातार गिरने से शहर में पेयजल का संकट खड़ा होने लगा है। यह बात तो आप पहले से जानते हैं लेकिन अब बात इससे आगे बढ़ गई है। गंगा से वॉटर सप्लाई को भेजे जाने वाले पानी में कीड़े निकल रहे हैं। यानि हमला सीधा आपकी सेहत पर है। यह किसी का आरोप या पब्लिक का दावा नहीं है बल्कि खुद जलकल विभाग के जीएम ने यह जानकारी दी है। उन्होंने स्थिति को गंभीर देखते हुए डीएम के साथ रीजनल पॉल्यूशनल कन्ट्रोल बोर्ड के ऑफिसर्स को इस बारे में लेटर लिखकर मदद मांगी है। हालांकि रिमाइंडर के बाद भी पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने अब तक कोई स्टेप नहीं लिया है।

सप्लाई का सबसे बड़ा सोर्स

सिटी में वाटर सप्लाई का सबसे बड़ा सोर्स गंगा रीवर है। भैरोंघाट इंटेक प्वाइंट के जरिए जलकल रोजाना 200 एमएलडी रॉ वाटर लेता है। बेनाझावर हेडक्वार्टर में ट्रीट करके विभिन्न मोहल्लों में बने 38 जोनल पम्पिंग स्टेशंस को पानी भेजा है। फूलबाग, स्वरूप नगर, फजलगंज, गोविन्द नगर, किदवई नगर, बगाही, डिफेंस कालोनी, मूलगंज, हंसपुरम आदि में बने इन पम्पिंग स्टेशनंस से घरों तक भेजा है। इससे आधे शहर की प्यास बुझती है।

लाल रंग के कीड़े

फरवरी से ही गंगा का जलस्तर गिरना शुरू हो गया था। बीते फ्राईडे को तो जलस्तर 365.1 फीट पर पहुंच गया था। इसकी वजह से भैरोघाट इंटेक प्वाइंट तक पानी लाने के लिए गंगा रीवर में जलकल को 4 ड्रेजर उतारने पड़े। यही नहीं गंगा बैराज के 2 और गेट तक खुलवाने पड़े थे। इधर ड्रेजर्स के जरिए खींचकर लाए जा रहे पानी का रंग भूरा हो गया। शोधन के लिए जब यह पानी जलकल में वॉटर ट्रीटमेंट प्लान्ट में आया तो उसमें लाल रंग के लार्वा भी तैरते नजर आए। प्लान्ट के अधिकारियों ने इस बारे में जीएम आरएस सलूजा को जानकारी दी। जीएम ने इंस्पेक्शन करने के बाद यूपी पॉल्यूशन कन्ट्रोल बोर्ड के रीजनल ऑफिसर को लेटर भेजा है। लेटर में बताया गया कि भैरोघाट से ड्रेजिंग किए पानी का रंग भूरा होने के साथ उसमें कीड़े आ रहे हैं।

परवाह नहीं की

लगता है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को इसकी परवाह नहीं है, तभी तो उसने जलकल जीएम के लेटर पर कोई एक्शन नहीं लिया। लगभग 10 दिन बीत चुके हैं और लगातार वैसा ही कच्चा पानी आ रहा है। इस पर फिर एक बार जलकल जीएम ने दोबारा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी को लेटर भेजा है। साथ ही यह भी बताया कि जो पानी आ रहा है, उसको शोधित (फिल्टर) करने का खर्च भी दोगुना हो गया है। इस लेटर की कॉपी डीएम कौशलराज शर्मा को भी भेजी है।

गंगा जल में कीड़े कैसे पड़ गए?

मान्यता है कि गंगा के जल में कीड़े नहीं पड़ते, लेकिन इस वक्त कई शहरों में ड्रेनेज, फैक्ट्रियों और टेनरीज का पानी सीधे गंगा में गिरने से प्रदूषण का स्तर हाई हो जाने से अब गंगा जल में भी कीड़े पड़ने लगे हैं। इस संबंध में जलकल जीएम आरएस सलूजा का कहना है कि गंगा जल में कीड़े आना एक चिंता का विषय है। इसके पहले कभी ऐसा नहीं हुआ।

बढ़ गया है जल शोधन का खर्च

भैरोघाट से ड्रेजिंग करके जो पानी भेजा जा रहा है। उसे पीने लायक बनाने के लिए जलकल विभाग का जल शोधन खर्च दोगुना हो गया है। कच्चे पानी को साफ करने के लिए फिटकरी व क्लोरीन का प्रयोग किया जाता है। पानी को साफ करने में औसतन दिन भर में 4-5 टन फिटकरी के अलावा 7 किलो क्लोरीन प्रति घंटे लगती है। इस वक्त यह खर्च दोगुना होकर 10 टन फिटकरी व 14 किलो क्लोरीन का हो गया है।

'वर्जन वर्जन'

' करीब 15 दिन से भैरोघाट से मिल रहे कच्चे पानी का रंग भूरा व लाल रंग के कीड़े आ रहे हैं। इस समस्या पर पहले भी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को लेटर लिखा, लेकिन कोई कार्रवाई न होने पर दूसरी बार फिर लेटर भेजा है.'

आरएस सलूजा, जीएम जलकल