वोटों की गिनती के बाद निवर्तमान प्रधानमंत्री अपिसित वेचाचीवा ने विपक्षी दल की नेता यिंगलक चिनावाट की पार्टी के हाथों अपनी हाथ स्वीकार कर ली है। यिंगलक चिनावाट अब देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनने जा रही हैं। उन्होंने कहा है कि उनके सामने कई कठिन चुनौतियाँ हैं।

वर्ष 2006 में टकसिन चिनावाट का तख़्ता पलट कर दिया गया था। यिंगलक उनकी छोटी बहन हैं।

आम चुनाव के सभी मतों की गिनती हो चुकी है। यिंगलक चिनावाट की फ़ू थाई पार्टी को 265 सीटें मिली हैं और इस तरह से 500 सीटों वाले संसद में उनकी पार्टी को बहुमत हासिल हो गया है। निवर्तमान प्रधानमंत्री अपिसित वेचाचीवा की पार्टी को 159 सीटें मिली हैं।

सरकारी टेलीविज़न पर अपने संबोधन में अपिसित वेचाचीवा ने कहा, "अब तक के चुनाव परिणामों से स्पष्ट हो गया है कि फ़ू थाई पार्टी ने चुनाव जीत लिया है और डेमोक्रेटिक पार्टी अपनी हार स्वीकार करती है."

उन्होंने कहा, "मैं यिंगलक चिनावाट को पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में सरकार बनाने का मौक़ा दूंगा। मैं चाहता हूँ कि देश में एकता और सांमजस्य का माहौल बने। डेमोक्रेटिक पार्टी विपक्ष में बैठने को तैयार है."

'कठिन चुनौतियाँ'

अपिसित वेचाचीवा की ओर से पराजय स्वीकार कर लेने के बाद यिंगलक टकसिन ने सतर्कता के साथ प्रतिक्रिया व्यक्त की है और कहा है कि वे अधिकृत रूप से चुनाव परिणाम घोषित होने की प्रतीक्षा करेंगीं।

उन्होंने पार्टी मुख्यालय में कहा, "मैं यह नहीं कहना चाहती कि ये मेरी या फ़ू थाई पार्टी की जीत है लेकिन जनता ने हमें एक मौक़ा दिया है और मैं अपनी पूरी क्षमता के साथ लोगों की सेवा करुंगी."

यांगलिक चिनावाट ने कहा, "मैं दोहराना चाहूँगी कि हम उन सभी नीतियों पर अमल करेंगे जिसका वादा हमने चुनावों के दौरान किया है। हमारे सामने कठिन चुनौतियाँ हैं."

उन्होंने कहा कि उनके पार्टी के नेता चार्ट थाई पट्टना पार्टी के साथ चर्चा कर रहें जिससे कि उनके साथ मिलकर एक गठबंधन सरकार का गठन किया जा सके। उनका कहना है कि संभावना है कि और कई दल फ़ू थाई पार्टी के साथ मिलकर काम करेंगे।

बैंकॉक में बीबीसी संवाददाता रैचल हार्वे का कहना है कि परिणामों से साफ़ है कि लोगों ने थाई राजनीति में सेना के हस्तक्षेप को नकार दिया है और ये अभिजीत के लिए बहुत निराशाजनक परिणाम हैं।

यिंगलक चिनावाट के बारे में विश्लेषकों का कहना है कि वे राजनीति में नई हैं और उनको मिली लोकप्रियता में उनके भाई टकसिन चिनावाट की नीतियों का बड़ा योगदान है जिसके आधार पर उन्होंने चुनाव प्रचार किया था। बहुत से लोग मानते हैं कि फ़ू थाई पार्टी के असली नेता तो टकसिन चिनावाट ही हैं।

'बदलाव के लिए वोट'

उधर अपनी मर्ज़ी से दुबई में निर्वसन का जीवन व्यतीत कर रहे पू्र्व प्रधानमंत्री टकसिन चिनावाट ने कहा है कि थाई नागरिकों ने बदलाव के लिए अपने मतों का उपयोग किया है।

टकसिन चिनावाट ने बीबीसी के न्यूज़ आवर कार्यक्रम में उन्होंने कहा, "लोग सामंजस्य चाहते हैं और हम भी सामंजस्य चाहते हैं." अब सभी दलों को इन नतीजों का आदर करना चाहिए।

सेना के हस्तक्षेप के बाद वर्ष 2006 में टकसिन चिनावाट की सरकार का तख़्ता पलट दिया गया था। उन्होंने कहा कि सेना को भी समझना चाहिए कि जनता क्या कहना चाहती है। ये पूछे जाने पर कि क्या वे थाईलैंड लौटेंगे, उन्होंने कहा, "मैं जल्दी में नहीं हूँ."

उनका कहना था, "मैं चाहता हूँ कि पहले देश में सामंजस्य स्थापित हो। मैं हल का हिस्सा बनना चाहता हूँ किसी समस्या का नहीं." विश्लेषकों का कहना है कि टकसिन चिनावाट भ्रष्टाचार के मुक़दमों से बचने के लिए दुबई में निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं।

अस्थिरता

पिछले कुछ सालों में थाईलैंड में कई बार सड़कों पर प्रदर्शन हुए हैं, हवाई अड्डों को बंद करना पड़ा है और दो प्रमुख राजनीतिक दलों के बीच झड़पें हुई हैं।

पिछले साल प्रदर्शनकारियों ने सरकार से इस्तीफ़े की मांग को लेकर बैंकॉक के कई हिस्सों को दो महीनों तक बंद कर रखा था। प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए आख़िर में सेना ने कार्रवाई की थी और राजधानी में हुई हिंसक झड़पों में कम से कम 91 लोग मारे गए थे।

संवाददाताओं का कहना है कि इसकी वजह से देश की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से लड़खड़ा गई है और वहाँ लोकतंत्र पर सवाल उठ खड़े हुए हैं। हालांकि चुनावों से अब सरकार की स्थापना का रास्ता साफ़ हो गया है लेकिन विश्लेषक मानते हैं कि अब सबकी नज़र सेना पर होगी।

थाईलैंड में 1932 में लोकतंत्र की स्थापना होने के बाद से 18 बार सफल-असफल सैन्य विद्रोह हो चुके हैं। हालांकि पिछले गुरुवार को सेना प्रमुख जनरल प्रयुथ चान-ओचा ने ज़ोर देकर कहा था कि वो तटस्थ बने रहेंगे।

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