15 करोड़ की ठगी की शातिरों ने

3 लोगों को किया गया गिरफ्तार

26 लाख छात्रों का अनाधिकृत डाटा बरामद

- एमबीबीएस और मेडिकल पीजी में दाखिले के नाम पर फर्जीवाड़ा

- एसटीएफ ने बीएमएस डॉक्टर समेत तीन लोगों को दबोचा

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रुष्टयहृह्रङ्ख : एमबीबीएस और मेडिकल पीजी में दाखिला दिलाने के नाम पर करोड़ों की ठगी करने वाले तीन लोगों को एसटीएफ ने विजयंत खंड गोमती नगर से गिरफ्तार किया है। इसमें एक बीएमएस डॉक्टर भी है। आरोपितों ने करीब 15 करोड़ रुपये हड़पने की बात कबूली है। इनके पास से 26 लाख छात्रों का अनधिकृत डाटा बरामद किया गया है।

साइबर टीम को लगाया गया

एसटीएफ के प्रभारी एसएसपी अनिल कुमार सिसोदिया के मुताबिक इस गिरोह के बारे में काफी समय से सूचना मिल रही थी, जिसके बाद साइबर टीम को लगाया गया था। पड़ताल के दौरान मूलरूप से समस्तीपुर बिहार निवासी सौरभ कुमार गुप्ता, सेक्टर-19 इंदिरानगर निवासी डॉक्टर अभिजात मिश्र और स्वप्नलोक कॉलोनी चिनहट निवासी विकास सोनी को गिरफ्तार किया गया।

खोल ली अपनी कंपनी

पूछताछ में राइज ग्रुप प्राइवेट लिमिटेड के नाम से विराटखंड तीन में कंसल्टेंसी कंपनी चलाने वाले सौरभ ने बताया कि वह कुछ मेडिकल कॉलेज के स्टाफ के साथ मिलकर गिरोह चलाता था। सौरभ ने छात्रों को एमबीबीएस व मेडिकल पीजी में दाखिला दिलाने का झांसा देकर करोड़ों रुपये हड़पे थे। इसके बाद वहां से विजयंत खंड आ गया और आफिस खोलकर दोबारा फर्जीवाड़ा शुरू कर दिया। वर्ष 2014 में उसने बीटेक करने के बाद अगले साल आईसीएल कॉलेज आफ इंजीनिय¨रग में रीजनल डायरेक्टर एडमिशन के पद पर बिहार व झारखंड ज्वाइन किया था। एक साल काम करने के बाद उसने खुद की कंपनी राइज ग्रुप शुरू की।

अभिजात देता था नीट के छात्रों का डाटा

सौरभ ने बताया कि डा। अभिजात उसे नीट की परीक्षा देने वाले छात्रों का डाटा उपलब्ध कराता था। इस डाटा के आधार पर सौरभ अपने आफिस से छात्रों को फोन करवाकर उन्हें अपने आफिस बुलवाता था। इसके बाद अपनी कंपनी के जनरल मैनेजर विकास के साथ मिलकर छात्रों व उनके घरवालों से धोखे से लोन एग्रीमेंट साइन करवा लेते थे। सर्विस चार्ज के नाम पर छात्रों से पांच से छह लाख रुपये वसूले जाते थे।

मेडिकल कॉलेजों में होती थी काउंसिलिंग

फर्जीवाड़े की जड़ें मेडिकल कॉलेजों में भी फैली थीं। विभिन्न कॉलेजों के स्टाफ से मिलीभगत कर छात्रों को वहां काउंसिलिंग के लिए ले जाया जाता था। इससे छात्र भरोसे में आ जाते थे। इसके बाद उनसे दोबारा रकम मांगी जाती थी। समय बीतने के बाद जब छात्रों का एडमिशन नहीं होता था और वह रुपये वापस मांगते थे तो उन्हें आरोपित धमकी देते थे। आरोपित छात्रों को रिश्वत देने के आरोप में उनका करियर खराब होने की धमकी देकर चुप करा देते थे।

खड़ा कर देते थे फर्जी डायरेक्टर

जिन मेडिकल कॉलेजों में आरोपितों की सेंटिंग नहीं होती थी, वहां वह फर्जी डायरेक्टर खड़ा कर छात्रों से उनकी मुलाकात कराते थे। इसमें डॉ। अभिजात मिश्र, मुंबई के प्रत्यूष कुमार और भोपाल के रितेश सिंह समेत अन्य शामिल हैं।

इन लोगों से हुई ठगी

छानबीन में सामने आया है कि आरोपितों ने वर्ष 2020 में रायबरेली निवासी अशोक सिंह से पांच लाख, आजमगढ़ निवासी पवन यादव से नौ लाख, पटना निवासी संजीव पांडेय से 20 लाख, एटा निवासी ममतेश शाक्य से छह लाख व विमलेश, कैलाश और अनिल से भी लाखों रुपये हड़पे थे।

बिहार से ली थी बीएमएस की डिग्री

अभिजात ने बताया कि वर्ष 2007 में उसने मुजफ्फरपुर बिहार से बीएमएस की डिग्री ली और 2008 में अपनी कंपनी बना ली। वर्ष 2016 में नीट की परीक्षा शुरू होने पर उसने टीएस मिश्र मेडिकल कॉलेज लखनऊ में एडमिशन एडवाइजर के पद पर नौकरी ज्वाइन की। 2019 में केएम मेडिकल कॉलेज मथुरा में एडमिशन डायरेक्टर रहा। आरोपित ने सुलतानपुर निवासी डॉ। डीएस मिश्रा से पीजी में दाखिले के लिए 90 लाख, कर्नाटक की शशिधर से 80 लाख, बेंगलुरु के संदीप से 65 लाख और विश्वनाथ समेत अन्य से करोड़ों रुपये लिए थे।

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दर्ज कराई थी एफआईआर

पटना निवासी कुमार शैलेंद्र मणि ने विभूतिखंड थाने में आरोपितों के खिलाफ बेटी का एमबीबीएस में दाखिला दिलाने के नाम पर छह लाख की ठगी की एफआईआर विभूतिखंड थाने में दर्ज कराई थी। 2018 में थाना गोमतीनगर, थाना मुफलिस समस्तीपुर बिहार, पूणे, कोलकाता व बेंगलुरु में गिरोह के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई थीं। गिरोह के तार दिल्ली, बिहार, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश समेत अन्य राज्यों में फैले हैं। आरोपितों के पास 26 लाख छात्रों का डाटा कहां से आया, इसके बारे में एसटीएफ छानबीन कर रही है।