लखनऊ ब्यूरो: माहे रमजान का मुकद्दस महीना शुरू हो चुका है। जहां रोजा रखना वाजिब है, अगर कोई ऐसा नहीं करता है तो वो गुनाह का भागीदार बनता है। धर्मगुरुओं का कहना है कि कुरान में रोजा रखना फर्ज है, लेकिन कुछ रियायत भी दी गई है। जहां कोई बीमार व्यक्ति या सफर करने वाले को रोजा में छूट दी गई है। वहीं डाक्टर्स भी कहना है कि रोजे के दौरान 12 घंटे से ज्यादा भूखा-प्यासा रहना होता है। ऐसे में गंभीर बीमार लोगों को रोजा रखने से परहेज करना चाहिए।

सुन्नी सवाल-जवाब

सवाल : रोजे की फिदये की मिकदार क्या है।

जवाब : एक किलो छह सौ इक्कयान्नवे ग्राम गेहूं, अगर मिसकीन को खाना खिलाना हो तो उसको दो वक्त पेट भर के खाना खिलाएं।

सवाल : क्या पेशाब के दौरान खून निकलने से रोजा टूट जाएगा।

जवाब : जी नहीं, रोजा नहीं टूटेगा।

सवाल : क्या जकात की रकम से कब्रिस्तान की बाउंड्री बनवा सकते हैं।

जवाब : नहीं बनवा सकते हैं।

सवाल : क्या रोजे की हालत में दिल और पेट का आप्रेशन करा सकते हैं।

जवाब : करा सकते हैं।

सवाल : अगर तरावीह की कुछ रकातें छूट जाएं तो क्या पढ़े हुए कुरान का लौटाना जरूरी है।

जवाब : जरूरी है कि लौटाले ताकि तरावीह में कुरान मुकम्मल हो जाए।

शिया सवाल-जवाब

सवाल : यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर वैकल्पिक हालत में रोजा नहीं रखता है, तो उसके लिए शरीयत का क्या नियम है।

जवाब : जो व्यक्ति जानबूझ कर रोजा छोड़े उस पर कफ्फारा वाजिब होगा।

सवाल : क्या कोरोना के मद्देनजर वुजू के बाद सेनेटाइजर लगा कर नमाज पढ़ी जा सकती है।

जवाब : कोरोना से सुरक्षित रहने के लिए वुजू के बाद सेनेटाइजर लगा कर नमाज पढ़ी जा सकती है।

सवाल : यदि कोई बीमार या बुजुर्ग व्यक्ति पूरे एक महीने तक रोजा नहीं रख सकता है, तो क्या वह एक बार में तीस दिन का एक साथ फिदया दे सकता है।

जवाब : यदि वह समझता कि वह पूरे एक महीने तक रोजा नहीं रख पाएगा, तो रोजा का कफ्फारा यानी फिदया एक बार में दे सकता है।

सवाल : रमजान उल मुबारक के महीने मे मरहूमीन का फातेहा एवं नजर हो सकती है।

जवाब : रमजान उल मुबारक के महीने में फातेहा एवं नजर हो सकती है और अधिक मरहूमीन के इसाले सवाब के लिए अधिक से अधिक नेक कार्य करना बेहतर है।

सवाल : अगर किसी व्यक्ति को पेशाब आने की बीमारी हो एक एक बूंद निकलता हो तो क्या उसका रोजा सही होगा।

जवाब : रोजा रख सकता है और रोजा सही होगा लेकिन नमाज के लिए पाक होना जरूरी है।