लखनऊ (ब्यूरो)। आजकल की बदलती जिंदगी में बच्चों का बचपना कहीं पीछे छूट गया है। बच्चे पढ़ाई, कॉम्प्टीशन, कंपेरिजन के दबाव में आ रहे हैं, जिसकी वजह से उनकी मेंटल हेल्थ पर बुरा असर पड़ रहा है। एक्सपर्ट्स की माने तो बच्चों की अच्छी मेंटल हेल्थ के लिए पैरेंट्स को उन्हें अपने बचपन के दौर का माहौल देना होगा। जहां वे अपने दोस्तों संग खेलने के साथ-साथ घर का हेल्दी खाना खाएं।

टीचर और पैरेंट्स दे रहे प्रेशर
केजीएमयू में साइकियाट्री विभाग के एचओडी और चाइल्ड साइकियाट्रिस्ट डॉ। विवेक अग्रवाल ने बताया कि आजकल स्कूलों में बच्चों को ज्यादा स्ट्रेस और प्रेशर दिया जा रहा है और पैरेंट्स घर में प्रेशर दे रहे हैं। नंबर अधिक लाने और दूसरों से कम्पेरिजन का दबाव बच्चों पर हावी हो रहा है। हर बच्चा एक जैसा नहीं होता है। हमें केवल नंबरों पर फोकस नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से उनमें टेंशन और एंग्जायटी बढ़ने लगती है।

पुराने दौर का बचपन सबसे बेहतर
डॉ। विवेक अग्रवाल आगे बताते है कि बच्चों को मेंटली स्ट्रांग बनाने के लिए एकबार फिर पुराने दौर के बचपन वाली चीजें करनी चाहिए। इसमें सबसे महत्वूपर्ण है कि अपने दोस्तों के साथ 1-2 घंटा बाहर जाकर खेलें, ताकि उनमें सोशल रिलेशनशिप डेवलप हो सकें। जब बच्चे आपस में मिलते हैं तो उनका दिमाग भी खुलता है। बच्चों में केवल नंबर और पढ़ाई ही नहीं बल्कि ओवरआल डेवलपमेंट पर फोकस करना चाहिए। इसके अलावा उनमें कोई क्रिएटिविटी हो तो उसे उभारने का काम करें जैसे सिंसिंग, आर्ट बनाना, गार्डनिंग, पेंटिंग आदि।

पैरेंट्स और बच्चों में कम्युनिकेशन गैप न हो
इसके अलावा, पैरेंट्स और बच्चे के बीच कम्यूनिकेशन गैप न हो। बच्चा अपनी बात उनसे कह ही नहीं पा रहा है, क्योंकि आजकल दोनों काम कर रहे होते हैं और घर पर होने पर वे मोबाइल व लैपटॉप आदि में लगे होते हैं। बच्चों से बातचीत करें, उनसे उनके स्कूल और दोस्तों के बारे में पूछें, उनके साथ समय निकाल गेम्स खेलें, आउटिंग पर जाएं ताकि बच्चा आपसे एक कनेक्ट फील करे। कम्युनिकेशन गैप से बच्चा कई बार बातें छुपाने लगता है, जो आगे चलकर बच्चों के लिए डिप्रेशन का कारण बनती है। अगर पैरेंट्स ये करें तो बच्चों में बढ़ रहीं आत्महत्या की घटनाओं को रोका जा सकता है। इसके अलावा छोटी सी उम्र में बच्चों को मोबाइल न दें और उनका स्क्रीन टाइम सीमित रखें।

बच्चों में चीनी का सेवन कम करें
संजय गांधी पीजीआई में डायटीशियन डॉ। शिल्पी त्रिपाठी ने बताया कि अध्ययनों से पता चलता है कि पोषण वयस्कों की तुलना में बच्चों के मस्तिष्क के विकास और मानसिक स्वास्थ्य को अधिक प्रभावित करता है। जो बच्चे अधिक फलों और सब्जियों के साथ अधिक पौष्टिक आहार खाते हैं, उनका मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण बेहतर होता है। जो सीधे चिंता के स्तर और नींद के पैटर्न आदि को प्रभावित कर सकता है। शोध से पता चला है कि चीनी का कम सेवन न केवल बच्चों में चिंता और अवसाद के लक्षणों में सुधार कर सकता है, बल्कि एकाग्रता के स्तर को भी बढ़ा सकता है। कैंडी, सोडा, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ और सफेद ब्रेड में पाई जाने वाली साधारण शर्करा से बचें।

अनहेल्दी स्नैक्स से बचें
बच्चों में हेल्दी खानपान की आदतों को प्रोत्साहित करें। बच्चों को अधिक साबुत और कम से कम नॉन प्रिजरवेटिव भोजन खाना चाहिए। घर पर अधिक भोजन पकाएं, रेस्तरां और बाहर ले जाने वाले भोजन में अधिक चीनी और अस्वास्थ्यकर वसा होती है इसलिए घर पर खाना पकाने से आपके बच्चों के स्वास्थ्य पर भारी प्रभाव पड़ सकता है। बच्चों को स्वस्थ नाश्ता उपलब्ध कराएं। खूब सारे फल, सब्जियां और स्वस्थ पेय पदार्थ जैसे पानी, दूध, शुद्ध फलों का रस अपने पास रखें ताकि बच्चे सोडाच चिप्स और कुकीज जैसे अनहेल्दी स्नैक्स से बचें। कॉम्प्लेक्स कार्ब्स आमतौर पर पोषक तत्वों और फाइबर से भरपूर होते हैं और धीरे-धीरे पचते हैं। जिससे लंबे समय तक चलने वाली ऊर्जा मिलती है।

स्वस्थ आहार बेहद जरूरी
स्वस्थ आहार का मतलब ऐसे खाद्य पदार्थों से है, जो विटामिन, कैल्शियम और प्रोटीन जैसे पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। प्रोटीन के लिए मांस और पोल्ट्री, अंडे, सेम, मटर, सोया उत्पाद और अनसाल्टेड नट और बीज चुनें। अपने बच्चे को विभिन्न प्रकार के ताजे फल खाने के लिए दें। डिब्बाबंद या जमी हुई सब्जियों का चयन करते समय उन सब्जियों की तलाश करें जिनमें सोडियम कम हो। इसके अलावा साबुत अनाज चुनें, जैसे साबुत गेहूं की ब्रेड या पास्ता, दलिया, पॉपकॉर्न, क्विनोआ या भूरा या जंगली चावल। बच्चे को दूध, दही और पनीर जैसे वसा रहित या कम वसा वाले डेयरी उत्पाद खाने और पीने के लिए प्रोत्साहित करें।

8 घंटे में पूरा पोषण नहीं मिल सकता
डॉ। शिल्पी बताती हैं कि बच्चा 7-8 घंटा सोने और इतना ही समय स्कूल में बिताता है। ऐसे में उसके पास 8 ही घंटा बचता है। पर इतने कम समय में उसे पूरा पोषण नहीं दिया जा सकता, इसलिए बच्चा जब स्कूल जाये तो सुबह ब्रेकफास्ट जरूर दें। साथ ही स्कूल के लिए तीन टिफिन दें जिसमें एक में फ्रूट्स, एक में ड्राई फ्रूट्स और एक में लंच के लिए अनाज से बना खाना दें। वापसी पर चिक्की, मूंगफली या ग्लूकोज वाली चीजें दें, ताकि बच्चे में एनर्जी बनी रहे। ग्लूकोज की कमी से बच्चों में हाइपो ग्लाइसेमिक हेडेक की समस्या होने लगती है, जिससे वे चिड़चिड़े हो जाते हैं।

पुराने दौर के बचपन की एक्टिविटी को वापस लाना होगा। दोस्तों के साथ बाहर खेलना, बातें करना और घर का खाना खाना आदि बहुत जरूरी है। हर बच्चा एक जैसा नहीं होता। यह बात पैरेंट्स और टीचर्स को समझनी होगी।
-डॉ। विवेक अग्रवाल, चाइल्ड साइकियाट्रिस्ट, केजीएमयू

बच्चों को बैलेंस्ड डायट देना बेहद जरूरी है, ताकि उनका अच्छा मेंटल और फिजिकल डेवलपमेंट हो सके। इसके लिए मोटा अनाज, फल आदि दें। वहीं, जंक फूड से दूर रहना होगा।
-डॉ। शिल्पी त्रिपाठी, डायटीशियन, पीजीआई