लखनऊ (ब्यूरो)। पीडियाट्रिक आर्थोपेडिक विभाग की स्टडी के अनुसार कोरोना महामारी के दौरान 2020 में जिन बच्चों का पहले से क्लबफुट का इलाज चल रहा था, उनके फॉलोअप केस में 30 फीसद की गिरावट देखने को मिली है। इतना ही नहीं क्लबफुट मामलों को लेकर जो रजिस्ट्रेशन हुए उनमें 80 फीसद लोकल केस शामिल है जबकि 2018 में 58 फीसद और 2019 में 54 फीसद रजिस्ट्रेशन लोकल स्तर के थे। इतना ही नहीं 2019 के मुकाबले 2020 में क्लबफुट के इलाज और सर्जरी के मामलों में भी 90 फीसद की गिरावट देखने को मिली है। इसकी वजह से क्लबफुट प्रोग्राम को काफी नुकसान पहुंचा है।

बच्चों में समस्या हो रही गंभीर
पीडियाट्रिक आर्थोपेडिक विभागाध्यक्ष प्रो अजय सिंह ने बताया कि कोरोना का असर अन्य प्रोग्रामों खासतौर पर बच्चों को लेकर हो रहे प्रोग्राम पर क्या असर हुआ है इसको लेकर स्टडी की गई थी। यह देखने को मिला कि जिन बच्चों का पहले से इलाज चल रहा था, वो कोरोना की वजह से रुक गया। खासतौर पर क्लबफुट प्रोग्राम के बच्चों में समस्या ज्यादा रही क्योंकि पहले जो इलाज महज प्लास्टर चढ़ाकर ही हो सकता था। वो गंभीर होने की वजह से सर्जरी करनी पड़ रही है, जिसका असर उनके ओवरऑल डवलपमेंट पर भी पड़ रहा है।

बनाई नई रणनीति
प्रो अजय सिंह के मुताबिक इलाज में गैप आने से न केवल इलाज का समय लंबा हो रहा है। बल्कि बच्चों की उम्र बढऩा, बड़ी सर्जरी करना, रिसोर्स का नुकसान होना समेत करीब 30 फीसद का नुकसान हुआ है। ऐसे में इस प्रोग्राम को लेकर नए स्तर पर रणनीति बनाई गई है। उम्मीद है कि क्लबफुट प्रोग्राम को लेकर नई रणनीति को अनुमति मिलने से बच्चों को बेहतर इलाज मिल सकेगा।


कोरोना का असर कई तरह के प्रोग्राम पर भी हुआ है। खासतौर पर क्लबफुट प्रोग्राम में बच्चों में समस्या गंभीर हो रही है, जिसकी वजह से सर्जरी तक करनी पड़ रही है। ऐसे में नई रणनीति बनाई गई है।
प्रो अजय सिंह, केजीएमयू