लखनऊ (ब्यूरो)। माधोटांडा, पीलीभीत से निकलकर जौनपुर में गंगा में मिलने वाली गोमती नदी की 960 किमी की यात्रा में सबसे ज्यादा प्रदूषण लखनऊ शहर में ही मिलता है। राजधानी में गोमती के नाला बनने के पीछे की बड़ी वजह इसमें गिरने वाले 30 से अधिक नाले हैं। इन नालों की गंदगी नदी के पानी में घुल कर उसको जहरीला बना रही है। उत्तर प्रदेश पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (यूपीपीसीबी) की हालिया रिपोर्ट भी इस प्रदूषण की पुष्टि करती है। शहर में अकेले 33 नाले गोमती में गिरते हैं, जिनमें से महज 15 नालों को टैप किया गया है। गोमती की सफाई पर करोड़़ों रुपये खर्च करने के बाद भी इसका प्रदूषण खत्म नहीं हो रहा है।

नालों को टैप न करने से समस्या

गोमती में फीकल कोलिफॉर्म व टोटल कोलिफॉर्म की मात्रा बहुत अधिक है। कई जगह पर स्थिति यह है कि पानी खतरनाक स्तर तक प्रदूषित है। बीबीएयू के प्रो। डॉ। वेंकटेश दत्ता का कहना है कि हाउसहोल्ड वेस्टेज के साथ-साथ गोमती को प्रदूषित करने की सबसे बड़ी वजह सीवेज वेस्टेज है। उनका कहना है कि शहर में करीब 33 नाले गोमती में गिरते हैं। इनमें से महज 15 को ही डायवर्ट करके एसटीपी में भेजा जा रहा है। बाकी नाले सीधे गोमती में गिर रहे हैं। अगर रोजाना के सीवेज वेस्टेज की बात करें तो 761 मिलियन लीटर प्रतिदिन एमएलडी में से 438 एमएलडी सीवेज वेस्टेज को ही ट्रीट किया जाता है। बाकी बचे हुआ सीवेज वेस्टेज रोजाना गोमती में सीधे गिरता है।

सहायक नदी में मिलते हैं 51 नाले

गोमती की 26 सहायक नदियों में सबसे अहम है कुकरैल नदी है, जो खुद नाले में बदल चुकी है। बीकेटी के अस्ती गांव से निशातगंज पेपर मिल कॉलोनी तक 16 किमी की कुकरैल नदी में 51 नाले गिरते हैं। यह नदी गोमती में मिलती है। डॉ। वेंकटेश दत्ता का कहना है कि जब सहायक नदी में पहले से ही इतने नाले गिर रहे हैं और वह फिर गोमती में आकर मिलती है, ऐसे में उसका सीवेज वेस्टेज गोमती के सीवेज वेस्टेज के साथ मिलकर गोमती के पानी को शहर में और प्रदूषित कर देता है। आप देख पाएंगे कि कई जगह जैसे गऊघाट के आसपास गोमती में केवल सीवेज का पानी ही रह जाता है। कई जगह पर यह पानी काला हो गया है और कई जगह पर पानी से बदबू की भी शिकायत आती है।

आसपास के जिलों में नाले से बढ़ा प्रदूषण

गोमती की 960 किमी की लंबाई में यह नदी सीतापुर से लगाकर जौनपुर तक 628 किमी तक प्रदूषण का दंश झेल रही है। गोमती पर काम कर रहे एक्सपट्र्स के मुताबिक, लखनऊ के अलावा गोमती में जौनपुर में 14 नाले, सुल्तानपुर में 7 नाले, बाराबंकी में 2 नाले, इस तरह अलग-अलग कुल 68 नाले इस नदी में गिरते हैं। इन नालों से 86.5 करोड़ लीटर सीवेज व इंडस्ट्री का खराब पानी गोमती में रोजाना बहाया जा रहा है। इसके अलावा महज 44.3 करोड़ लीटर सीवेज के पानी को ही ट्रीट किया जा रहा है। ये आंकड़े साल 2014 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के सामने रखे गए थे, जिन्हें गोमती की सफाई के लिए साल 2019 में यूपीपीसीबी के एक्शन प्लान में शामिल किया गया था।

सीवर ज्यादा, एसटीपी कम

शहर से निकलने वाले नालों के गंदे पानी को साफ करने के लिए दो सीवेज प्लांट चालू हैं। इनमें से एक भरवारा व दूसरा दौलतगंज में है। तीसरा एसटीपी लोहिया पथ हैदर कैनाल पर बन रहा है। 120 एमएलडी का एक और एसटीपी चालू होने के बाद गंदे पानी को ट्रीट करने की क्षमता 558 हो जाएगी, लेकिन इसके बाद भी 192 एमएलडी सीधे नदी में ही गिरेगा। ऐसे में और एसटीपी बनाने की जरूरत है।

करनी होगी नालों की टैपिंग

यूपीपीसीबी के एक्सपट्र्स ने बताया कि गोमती में प्रदूषण का बड़ा कारण सीवेज वाटर है। इसके अलावा हाउसहोल्ड वेस्टेज भी इसमें अहम रोल निभा रहा है। सबसे पहले तो इस वेस्ट को नदी में जाने से रोकना होगा। इसके लिए 18 नाले जिनमें सेे आंशिक टैप्ड हैं और 7 नाले अनटैप्ड हैं उनकी टैपिंग करनी होगी। वहीं, एसटीपी की संख्या और उनकी क्षमता बढ़ाने की जरूरत है, ताकि वाटर को ट्रीट किया जा सके।

ये कदम उठाए जाने जरूरी

-बरीकला में एक एमएलडी का एसटीपी बनाया जाए

-दौलतगंज में 39 एमएलडी का नया एसटीपी और 56 एमएलडी के पुराने एसटीपी की मरम्मत हो

-भरवारा में 64 एमएलडी का नया एसटीपी बने

-घैला में 22 एमएलडी के एसटीपी का हो निर्माण

-बिजनौर क्षेत्र में 80 एमएलडी का एसटीपी बने

गोमती नदी को साफ करने में 22 साल में पांच हजार करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। बड़ी परियोजनाओं के नाम पर गोमती रिवर फ्रंट, भरवारा एसटीपी शामिल है, लेकिन जमीन पर गोमती की हालत बद से बदतर हो चुकी है। गोमती को साफ ही करना है तो सबसे पहले उसके अंदर जमा सिल्ट को निकाला जाए। इसके अलावा नाले को एसटीपी में डायवर्ट किया जाए। साथ ही शारदा नहर का पानी गोमती में छोड़ा जाए।

-रिद्धि किशोर गौड़, पर्यावरणविद