- 50 हजार से एक लाख फीस सालाना वसूल रहे प्ले स्कूल

- 50 हजार औसत फीस क्लास 1 से 10 तक की

- 30 हजार से 65 हजार अधिकतम इंजीनियरिंग कॉलेज की फीस

- इन स्कूलों की मनमानी फीस पर डीआईओएस ने जांच को बनाई टीमें

- फीस मानकों और दूसरी चीजों को लेकर होगी जांच

LUCKNOW :

हमारे पड़ोस का एक घर जो महीनों से खाली पड़ा था, अचानक से उसका कमर बच्चों की धमाचौकड़ी से गुलजार हो उठता है। चौराहे पर रातों-रात बड़ा सा बोर्ड लग जाता है, जिस पर बड़े कलरफुल लेटर में आपके नन्हे मुन्नों के ओवरऑल पर्सनाल्टी डेवलपमेंट के दावे लिखे होते हैं। कुछ ऐसी ही शुरुआत राजधानी में ज्यादातर प्ले स्कूल्स की होती है। बस थोड़े से स्पेस का इंतजाम किया और ओपन हो गया प्ले स्कूल। ना प्रॉपर इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत और ना ट्रेन्ड मैनपावर की। बात राजधानी की करें, तो यहां भी ऐसे प्ले स्कूल्स की भरमार है। गवर्नमेंट की ओर से अभी तक इनके लिए कोई रेग्यूलेशन नहीं हैं। इसी का फायदा उठाकर यह प्ले स्कूल धड़ल्ले से राजधानी के हर कोने में खुल रहे हैं। वहीं शासन व प्रशासन नेशनल अर्ली चाइल्डहुड केयर एंड एजुकेशन पॉलिसी के इंतजार में इन स्कूलों पर अभी तक कार्रवाई करने से बच रहा है।

नर्सरी क्लास से महंगी है इन स्कूलों की पढ़ाई

राजधानी के इन प्ले स्कूलों व प्री नर्सरी स्कूलों में बच्चों का खेलना उनकी पढ़ाई से महंगा हो चुका है। यहां नर्सरी क्लास की जो फीस देनी पड़ रही है, वह डीपीएस, सेंट फ्रांसिस, ला-मार्टीनियर व दूसरे स्कूलों ज्यादा है। इन स्कूलों में सालाना फीस 50 हजार रुपयों से लेकर एक लाख रुपये तक है जबकि कई नामचीन प्ले स्कूलों की फीस तो ढाई लाख रुपए सलाना से भी अधिक है। सिटी के टॉप स्कूलों में गिने जाने वाले कई स्कूलों में क्लास 1 से लेकर 10 तक पढ़ने वाले बच्चों की सालाना फीस औसतन 50 हजार रुपये के करीब है। वहीं कुछ प्ले स्कूलों की फीस को लेकर विवाद पुलिस और शिक्षा विभाग तक भी पहुंचा। इसके बाद भी शिक्षा विभाग के अधिकारी इस पर खामोश हैं। राजधानी के निजी स्कूलों में न्यूनतम 10 हजार रुपये से लेकर एक लाख 25 हजार रुपये तक नर्सरी और पहली कक्षा की फीस है जबकि इंजीनियरिंग कॉलेज में न्यूनतम 30 हजार से लेकर अधिकतम फीस 57 हजार से लेकर 65 हजार रुपये प्रति वर्ष है, लेकिन इन प्ले स्कूलों में औसतन 50 हजार रुपए फीस सालाना ली जा रही है।

बिन रजिस्ट्रेशन रन कर रहे ज्यादातर प्ले स्कूल

अधिकांश प्ले स्कूल बिना रजिस्ट्रेशन के ही चल रहे हैं। इसके बाद भी इन स्कूलों में दाखिला और पढ़ाई के नाम पर मनमानी फीस वसूली जा रही है। यहां नर्सरी और प्रेप में बच्चों के एडमिशन के लिए 50 हजार से लेकर एक लाख रुपए फीस तय की गई है। खास बात है कि रजिस्ट्रेशन अनिवार्य न होने के कारण यह स्कूल खुलेआम उल्लंघन कर रहे हैं, लेकिन कोई एक्शन नहीं लिया जा रहा है।

आखिर क्यों जरूरी है प्री.स्कूलिंग

सिटी के मेन स्ट्रीम स्कूलों में क्लास नर्सरी से लेकर 1 तक में एडमिशन के लिए प्री स्कूलों की एक साल की पढ़ाई के नाम पर पैरेंट्स को धोखा दिया जाता है। इन प्ले स्कूलों का दावा होता है कि वह बच्चों को बड़े स्कूलों में एडमिशन के लिए होने वाले टेस्ट के लिए तैयार कराते हैं। इसका फायदा उठाते हुए प्री क्लासेज के लिए मनमानी रकम मांगी जा रही है। 10 से 15 बच्चों के लिए एक शिक्षिका व एक आया मैडम रखने का दावा करते हुए स्कूलों में अभिभावकों से लाखों रुपये वसूले जा रहे हैं।

अब इन स्कूलों पर कार्रवाई की तैयारी में शिक्षा विभाग

बेसिक शिक्षा विभाग इन प्ले स्कूलों पर कार्रवाई करने के लिए तैयारी कर रहा है। विभाग ने इन स्कूलों की जांच के लिए एक कमेटी का गठन किया है। इसके लिए डीआईओएस से भी मदद ली जाएगी। यह कमेटी राजधानी के सभी प्ले स्कूलों का औचक निरीक्षण कर, वहां के मानकों की जांच करेगी ताकि इन स्कूलों की बढ़ रही संख्या और यहां पर होने वाले हर क्रिया कलापों की सही जानकारी विभाग के पास हो।

खेल और प्रतिस्पर्धा ऐसी, जहां होती है कमाई

खासकर निजी प्ले स्कूलों में फीस की मनमानी को रोकने के लिए कोई नियम नहीं है। आलम यह है कि स्कूल प्रबंधक अब फीस के साथ-साथ बस किराया के अलावा यूनिफॉर्म, बुक्स, स्टेशनरी, कम्प्यूटर क्लास, फैंसी ड्रेस कंप्टीशन, समर वेकेशन, सेलिब्रिटी, गेम्स ट्रेनर, स्कूल बैच, फोटोग्राफी, पेंटिंग कंप्टीशन, टूर, आनंद मेला और कूपन के नाम पर भी शुल्क एठ रहे हैं। यहां खेल और प्रतियोगिताएं ऐसी होती हैं, जिसके लिए अभिभावकों से वसूली की जा सके।

प्ले स्कूलों में इन नियमों का होना जरूरी

- 03 वर्ष से कम उम्र के बच्चों का नहीं होगा एडमिशन

- 20 बच्चों पर एक टीचर का रहना होगा कंप्लसरी

- नए के साथ पुराने प्ले स्कूलों का हो रजिस्ट्रेशन

- स्कूलों में बाउंड्रीवॉल और रेस्ट रूम की अनिवार्यता

- सरकार के स्तर से निर्धारित फीस महीने अथवा तीन महीने में लेने का प्रावधान

- लड़के लड़कियों के अलावा दिव्यांगों के लिए चाइल्ड फ्रेंडली टॉयलेट जरूरी

- जरूरत के हिसाब से पैंट्री जबकि आवश्यक रूप से शुद्ध पेयजल, सीसीटीवी, फायर सेफ्टी, फ‌र्स्ट एड मेडिसिन किट का रखना होगा

- सभी बच्चों के फ्री रिकॉर्ड के अलावा शैक्षणिक तथा गैर शैक्षणिक कर्मचारियों का रखना रिकॉर्ड

- पैरेंट्स-टीचर्स एसोसिएशन का गठन होगा जरूरी

नहीं है कोई गाइडलाइन

शिक्षक नेता डॉ। आरपी मिश्रा ने बताया कि बच्चों के बेहतर से बेहतर एजुकेशन देने और कॉम्पटीटिव माहौल तैयार करने की पैरेंट्स की सोच ने प्ले स्कूल्स को बिजनेस का बड़ा रूप दे दिया है, लेकिन क्या ये सभी प्ले स्कूल आपके बच्चे को बेहतर गाइडेंस प्रोवाइड करने में सक्षम हैं। क्या इन प्ले स्कूल्स में बच्चों को वो सुविधाएं प्रोवाइड कराई जाती हैं, जो उनके डेवलपमेंट के लिए जरूरी हैं। अगर हर गली मोहल्ले में खुले प्ले स्कूल्स पर नजर डालें तो जवाब है ना। इसकी सबसे बड़ी वजह है प्ले स्कूल्स के लिए गर्वनमेंट द्वारा कोई रेग्यूलेशन का ना होना। प्ले स्कूल्स केलिए स्टैंडर्ड फिक्स करने और उसके रेग्यूलेशन के लिए फिलहाल स्टेट में कोई व्यवस्था नहीं है।

प्ले स्कूलों का केवल हम अपने यहां पर एक रजिस्ट्रेशन कराते हैं। इसके बाद वह अपना स्कूल ओपन कर सकते हैं, लेकिन राजधानी के ज्यादातर प्ले स्कूल बिना हमारी जानकारी के चल रहे हैं। अब इन पर कार्रवाई की तैयारी शुरू की गई है। जब तक नियमावली नहीं बनती यह स्कूल हमारी निगरानी में ही संचालित होंगे। नियमावली न होने के कारण इन पर सख्त कार्रवाई नहीं हो पाती है।

डॉ। अमरकांत सिंह, बीएसए