लखनऊ (ब्यूरो)। राजधानी का विस्तारीकरण तेजी से हो रहा है। एक तरफ जहां क्षेत्रफल बढ़ रहा है, वहीं दूसरी तरफ जनसंख्या का आंकड़ा भी साल दर साल बढ़ता जा रहा है। इसके बावजूद संसाधनों और सुविधाओं के डेवलप होने की रफ्तार बेहद सुस्त है। अभी तक विस्तारित इलाकों तक डेवलपमेंट की रोशनी नहीं पहुंच सकी है। मेडिकल, सुरक्षा (पुलिस) और शिक्षा सेक्टर में कुछ सुधार जरूर हुआ, पर अभी काफी काम किया जाना बाकी है। वादे और योजनाएं तो हर विभाग द्वारा तैयार किए जाते हैं, लेकिन वर्तमान जनसंख्या के मुकाबले जो भी सुविधाएं डेवलप की जाती हैैं, वे ऊंट के मुंह में जीरे के समान हैं। पेश है बढ़ती आबादी के बीच संसाधनों और सुविधाओं की तस्वीर बयां करती डीजे आईनेक्स्ट टीम की स्पेशल रिपोर्ट

नगर निगम

568 वर्ग किमी। क्षेत्र बढ़ा, सुविधाएं 310 वर्ग किमी। तक ही सिमटीं

राजधानी की आबादी लगातार बढ़ती जा रही है। पिछले दस से बारह सालों की बात करें तो निगम के क्षेत्र में तीन गुना विस्तार हुआ है। इसके बावजूद संसाधनों की बात की जाए तो अभी तक विस्तारित एरियाज में डेवलपमेंट नहीं पहुंच सका है। जिसकी वजह से यहां रहने वाली जनता को खासी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

वार्डों की संख्या 110

नगर निगम के वार्डों की संख्या में तो कोई वृद्धि नहीं हुई है, लेकिन वार्डों में रहने वाली जनता की आबादी दो से तीन गुना बढ़ गई है। वहीं, नए परिसीमन के बाद आधा दर्जन से अधिक वार्डों का एरिया तीन से चार किमी तक बढ़ गया है। ऐसे में पहले जिन लोगों का मकान पंचायत क्षेत्र में आता था, अब ये सभी नगर निगम क्षेत्र में आ गए हैैं। पर अभी तक यहां पर रोड, सफाई और पेयजल की सुविधा नहीं पहुंच सकी है।

नए इलाकों में ये सुविधाएं नदारद

1-पेयजल लाइन

2-सीवरेज सिस्टम

3-डोर टू डोर वेस्ट कलेक्शन

4-हर गली में स्ट्रीट लाइट कनेक्टिविटी

5-जलनिकासी के इंतजाम

6-सफाई व्यवस्था

एलडीए

प्राधिकरण के क्षेत्र में भी खासा इजाफा

अब अगर एलडीए के क्षेत्र की बात की जाए तो प्राधिकरण के क्षेत्र में ही खासा इजाफा हुआ है। पिछले दस सालों में एलडीए ने बसंतकुंज, मोहान रोड, सुल्तानपुर रोड तक अपनी आवासीय और कॉमर्शियल योजनाओं को लांच किया है, जबकि बाराबंकी बॉर्डर तक नई योजनाओं की संभावनाएं तलाशी जा रही हैैं।

हैैंडओवर कॉलोनियों में समस्या

दस साल से अधिक का समय गुजर चुका है, लेकिन अभी तक उन कॉलोनियों में डेवलपमेंट नहीं पहुंच सका है, जो नगर निगम और एलडीए के बीच उलझी हुई हैं। जानकीपुरम विस्तार, गोमतीनगर विस्तार योजना कहने को तो नगर निगम को हैैंडओवर की जा चुकी हैैं, लेकिन अभी तक इन एरियाज में सीवरेज सिस्टम और पेयजल सिस्टम सुविधा को डेवलप नहीं किया जा सका है। जिसके चलते बड़ी आबादी परेशान हो रही है।

एजुकेशन

स्कूलों की संख्या बढ़ी, लेकिन सुविधाएं नहीं

आबादी के मुकाबले एजुकेशन सिस्टम की बात की जाए तो स्कूलों की संख्या में विस्तार तो हुआ है, लेकिन अभी तक कई ऐसे स्कूल हैैं, जहां स्टूडेंट्स को शत प्रतिशत सुविधाएं नहीं मिल सकी हैैं। शहर में राजकीय स्कूलों की संख्या दस साल पहले 10 के अंदर थी। जो मौजूदा समय में बढ़कर 50 से अधिक हो गई है। पर एडेड विद्यालयों की संख्या में कोई बदलाव नहीं हुआ है। पहले की ही तरह मौजूदा समय में भी 98 ही एडेड विद्यालय हैं। हालांकि, इन दस सालों में निजी स्कूलों की संख्या में जरूर इजाफा हुआ है। इनकी संख्या एक हजार के करीब पहुंची है। इनमें से 625 यूपी बोर्ड के स्कूल हैं, जबकि अन्य स्कूल सीबीएसई व सीआईएससीई बोर्ड के हैं।

एलयू से जुड़े छात्र

हायर एजुकेशन की बात करें तो एलयू से इस समय करीब 18 हजार स्टूडेंट्स जुड़े हैं और 550 एफिलिएटेड कॉलेज हैं, जबकि 2013 में एलयू में पांच हजार के करीब छात्र थे। जिसमें से ग्रेजुएशन के 3310 स्टूडेंट्स थे। हालांकि, अभी तक विभागों की संख्या में कोई खास इजाफा नहीं हुआ है।

मेडिकल

एक कैंसर संस्थान और कई नए विभाग खुले

राजधानी ने मेडिकल के क्षेत्र में लगातार तरक्की की है। इस समय यहां 4 मेडिकल कॉलेज, 8 जिला स्तरीय अस्पताल, 8 अर्बन सीएचसी हैं। बीते दस वर्षों में राजधानी को 1250 बेड का कैंसर संस्थान, 200 बेड का लोहिया मातृ-शिशु रेफरल, पीजीआई में इमरजेंसी और रेनल ट्रांसप्लांट डिपार्टमेंट शुरू हुआ है। वहीं, राजधानी में निजी अस्पतालों की संख्या बढ़कर 1200 से अधिक हो गई है। पहले यह 500 के आसपास थी।

बेडों में भी हुई बढ़ोतरी

चिकित्सा संस्थानों में बीते दस सालों में बेडों की संख्या में भी इजाफा हुआ है। पीजीआई में 558 नए बेडों के साथ कुल बेडों की संख्या बढ़कर 2167 हो गई है। जिसे बढ़ाकर 3100 तक करना है। कैंसर संस्थान की शुरुआत 50 बेडों की साथ हुई थी, जो अब बढ़कर 200 होने वाली है। इसमें 1250 बेड तक बढ़ाने की क्षमता है। केजीएमयू में करीब 700 बेड बढ़ने के साथ कुल बेडों की संख्या बढ़कर 4 हजार से अधिक हो गई है, जबकि यहां 60 विभाग संचालित हो रहे हैं। वहीं, लोहिया में 200 नए बेडों के साथ कुल 1100 बेड हो चुके हैं, जबकि लोकबंधु की शुरुआत 100 बेडों के साथ हुई थी, जो बढ़कर 318 हो गई है। वहीं, सिविल अस्पताल में 401 और बलरामपुर अस्पताल में 776 बेड हैं, जबकि कई अस्पतालों में सीटी स्कैन की सुविधा शुरू हो चुकी है। जल्द ही बलरामपुर और लोकबंधु में एमआरआई की सुविधा मिल सकेगी।

ओपीडी पर बोझ

अब अगर सरकारी अस्पतालों की ओपीडी की बात की जाए तो दस साल पहले किसी भी अस्पताल की ओपीडी में औसतन 500 से 600 मरीज एक दिन में आते थे, वहीं अब यह संख्या दो हजार के पार पहुंच गई है। पहले एक चिकित्सक की ड्यूटी आठ घंटे रहती थी, लेकिन अब चिकित्सकों की कम संख्या के कारण उन्हें 12 से 14 घंटे तक मरीजों को देखना पड़ जाता है।

पुलिस

राजधानी में पुलिसकर्मियों की संख्या में भी लगातार इजाफा हो रहा है। 2013 में यहां 7,500 पुलिसकर्मी थे, 2023 में बढ़कर 10,560 पुलिस कर्मी हो गये। वहीं, 2013 में राजधानी में 35 थाने थे, जो 2023 में बढ़कर 54 हो चुके हैं। वहीं, एक थाने में औसत 70 पुलिसकर्मी तैनात रहते है। हालांकि, अभी जनसंख्या के हिसाब से पुलिसकर्मियों का अनुपात शत प्रतिशत नहीं है।

ट्रैफिक और फायर विभाग में भी सुधार

राजधानी में ट्रैफिक और फायर विभाग में भी बढ़ोतरी हुई है। जहां 2013 में ट्रैफिक के महज 450 कर्मी थे। जो 2023 में बढ़कर 660 हो गये हैं। वहीं, 2023 में फायर विभाग में संख्या बढ़कर 320 हो गई है। हालांकि, अभी तक फायर विभाग के पास हाईटेक इक्विपमेंट का अभाव है।

नंबर गेम

वर्ष थाने

2013 35

2015 44

2020 47

2023 54