लखनऊ (ब्यूरो)। शारदीय नवरात्र के नौ दिनों तक मां की पूजा-उपासना की जाती है। दसवें दिन उनकी विदाई होती है। सभी भारी मन से मां को विदा करते हुए अगली बार फिर से आने की मंगलकामनाएं करते हैं। वहीं, मां की विदाई से पहले महिलाएं खासकर बंगाली समाज की महिलाएं मां को सिंदूर लगाकर मंगलकामना की आकांक्षा करती है। जिसे सिंदूर खेला भी कहा जाता है। मां को भोग लगाकर उनका आशिर्वाद पा लेना चाहती हैं, ताकि मां उनके सुहाग की हर संकट और विपदा के समय रक्षा करें। दशमी के अवसर पर विभिन्न दुर्गा समितियों द्वारा ढोल-नगाड़ों संग पूरे धूमधाम के साथ मां की प्रतिमा का विसर्जन गोमती तट पर किया।

सिंदूर खेला का हुआ आयोजन

ऐसा माना जाता है कि नवरात्र के नौ दिन मां अपने मायके आती है और दसवें दिन मां वापस चली जाती हैं। इसी को देखते हुए मंगलवार को पूरे शहर में दुर्गा समितियों द्वारा मां की प्रतिमा का विसर्जन किया गया। बंगाली समाज की महिलाएं वर्षों से चली आ रही मां की विदाई से पहले उन्हें सिंदूर लगाने के बाद एक दूसरे को सिंदूर लगाने की परंपरा, सिंदूर खेला को निभाया।

गाए गए मंगल गीत

इस दौरान महिलाएं सिंदूर लगाने के साथ मंगल गीत भी गाती हैं। इस दौरान पूरा माहौल खुशी और उत्साह से भर उठता है। जहां ट्रांसगोमती दशहरा एवं दुर्गा पूजा समिति, बंगाली क्लब, विद्यांत कॉलेज, मॉडल हाउस, रवींद्रपल्ली, भूतनाथ, कैंट दुर्गा पूजा समिति, शशिभूषण डिग्री कॉलेज समेत अन्य जगहों पर ढाक की थाप और धुनुचि आरती के बीच सिंदूर खेला हुआ। इस दौरान पुलिस सुरक्षा के लिए पूर तरह से मुस्तैद रही।

मूर्तियों का हुआ विसर्जन

मूर्ति विसर्जन के लिए झूलेलाल घाट के पास व्यवस्था की गई। जहां समितियों द्वारा ढोल-नगाड़ों की धुन और अबीर-गुलाल उड़ाते हुए चले जा रहे थे। इस दौरान हर कोई जगत जननी की भक्ति से सराबोर नजर आ रहा था। पूरे रास्ते मां के भक्त नाचते-गाते हुए जा रहे थे।